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आजीवन


फिर मिले
फिर किया वादा
फिर मिलेंगे।


बहुत दूर
इतनी दूरी से नहीं कह सकते
जो कुछ भी कहना चाहिए

होते करीब तो कहते वह सब
जो नहीं कहना चाहिए

आजीवन ढूँढते रहेंगे
वह दूरी
सही सही जिसमें कही जाएँगी बातें।

(साक्षात्कार- मार्च १९९७)


मुझे बार बार लग रहा है कि यह कविता मैं पहले पोस्ट कर चुका हूँ। अगर सचमुच की हो तो? बाप रे, पिटाई हो सकती है। चलो काफी दिनों तक पिटाई हुई नहीं (मसिजीवी के उल्टे सवालों को पिटाई थोड़े ही कहेंगे!) हो भी जाए तो क्या!

Comments

मुझे तो यह कविता रीपोस्‍ट नहीं लगी।

वैसे बंधु अब इतना भी बदनाम न करो। पिटते तो हम हैं। रोजाना केनन से (कहना न होगा केनन का प्रतिनिधित्‍व इस दुनिया में तो प्रोफेसरों से बंहतर कोई नहीं करता) ;)
लाल्टू जी, नमस्कार !
आप उच्च-शिक्षा से जुडे हुए हैं, अनेकानेक सामाजिक गतिविधियों से जुडे हुए हैं और बहुमुखी प्रतिभा के धनी हैं | इसलिये आपसे बडी उम्मीदें हैं | मेरी इच्छा, शिक्षा और उससे जुडे भारतीय विषयों पर आपके विचार पढने की है | अनेक विचारक ऐसी राय जाहिर करते पाये जाते हैं कि सूचना-क्रान्ति के इस युग में शिक्षा सबसे महत्वपूर्ण है | इस कारण मेरा यह निवेदन और अधिक महत्व रखता है |
अनुनाद,
बहुत अच्छा लगा कि आपने लिखा।
लिखूँगा। ज़रुर लिखूँगा। नई जगह की व्यस्तताएँ हैं और कुछ निजी परेशानियाँ हैं, इसलिए जितना चाहता हूँ उतना लिख नहीं पाता। धीरे धीरे लिखूँगा।

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