मसिजीवी को लंबे समय से छेड़ा नहीं।
अब टिप्पणी आई तो मन हुआ कि लिख दें - अरुणा राय, लाल सलाम!
मैं जब कालेज में था तो अक्सर दोस्त बाग मुझे छेड़ा करते थे। कभी कभी मैं भी छेड़ देता था। मैंने अक्सर पाया है कि कुछ लोग छेड़ना सह नहीं पाते। याद आता है कि कई बार गालियाँ सुनी हैं, एकबार तो निंबोरकर नामक एक बंधु मुझे चौथी मंज़िल की खिड़की से भी धक्का मारकर फेंकने वाला था। मैं अपनी कक्षा में सबसे कम उम्र का था और अच्छे बच्चे से कब शरारती बच्चे में तबदील हो चुका था पता ही नहीं था। स्वभाव से अब भी शरारती हूँ, पर अब नाराज़ होने वालों की संख्या कम और प्यार करने वालों की बढ़ गई है। पर जो नाराज़ हैं वे भयंकर नाराज़ हैं। चलो, कभी कोई तरकीब निकालेंगे कि प्रकाश की गति से ज्यादा तेजी से पीछे की ओर दौड़कर पुरानी घटनाओं को बदल डालें ताकि नाराज़ लोग भी मुझपर खुश हो जाएँ।
बहरहाल पिछली बार मैंने प्रसंग के आधार पर समझ की बात की थी। पिछले महीने मेरे मित्र राकेश बिस्वास ने, जो डॉक्टर है और इनदिनों मलयेशिया में कहीं है, एक रोचक उदाहरण भेजा था। पता तो मुझे अरसे से था, पर देखा पढ़ा मैंने भी पहली बार ही है। जरा नीचे लिखे उद्धरण को पढ़िएः जरा तेजी से पढ़िएः
Cdnuolt blveiee taht I cluod aulaclty uesdnatnrd waht I was rdanieg. The phaonmneal pweor of the hmuan mnid, aoccdrnig to rscheearch at Cmabrigde Uinervtisy, it deosn't mttaer in waht oredr the ltteers in a wrod are, the olny iprmoatnt tihng is taht the frist and lsat ltteer be in the rghit pclae. The rset can be a taotl mses and you can sitll raed it wouthit a porbelm. Tihs is bcuseae the huamn mnid deos not raed ervey lteter by istlef, but the wrod as a wlohe. Amzanig huh? yaeh and I awlyas tghuhot slpeling was ipmorantt!
है न मजेदार। पढ़ लेने के बाद समझ में नहीं आता कि पढ़ा कैसे।
अब टिप्पणी आई तो मन हुआ कि लिख दें - अरुणा राय, लाल सलाम!
मैं जब कालेज में था तो अक्सर दोस्त बाग मुझे छेड़ा करते थे। कभी कभी मैं भी छेड़ देता था। मैंने अक्सर पाया है कि कुछ लोग छेड़ना सह नहीं पाते। याद आता है कि कई बार गालियाँ सुनी हैं, एकबार तो निंबोरकर नामक एक बंधु मुझे चौथी मंज़िल की खिड़की से भी धक्का मारकर फेंकने वाला था। मैं अपनी कक्षा में सबसे कम उम्र का था और अच्छे बच्चे से कब शरारती बच्चे में तबदील हो चुका था पता ही नहीं था। स्वभाव से अब भी शरारती हूँ, पर अब नाराज़ होने वालों की संख्या कम और प्यार करने वालों की बढ़ गई है। पर जो नाराज़ हैं वे भयंकर नाराज़ हैं। चलो, कभी कोई तरकीब निकालेंगे कि प्रकाश की गति से ज्यादा तेजी से पीछे की ओर दौड़कर पुरानी घटनाओं को बदल डालें ताकि नाराज़ लोग भी मुझपर खुश हो जाएँ।
बहरहाल पिछली बार मैंने प्रसंग के आधार पर समझ की बात की थी। पिछले महीने मेरे मित्र राकेश बिस्वास ने, जो डॉक्टर है और इनदिनों मलयेशिया में कहीं है, एक रोचक उदाहरण भेजा था। पता तो मुझे अरसे से था, पर देखा पढ़ा मैंने भी पहली बार ही है। जरा नीचे लिखे उद्धरण को पढ़िएः जरा तेजी से पढ़िएः
Cdnuolt blveiee taht I cluod aulaclty uesdnatnrd waht I was rdanieg. The phaonmneal pweor of the hmuan mnid, aoccdrnig to rscheearch at Cmabrigde Uinervtisy, it deosn't mttaer in waht oredr the ltteers in a wrod are, the olny iprmoatnt tihng is taht the frist and lsat ltteer be in the rghit pclae. The rset can be a taotl mses and you can sitll raed it wouthit a porbelm. Tihs is bcuseae the huamn mnid deos not raed ervey lteter by istlef, but the wrod as a wlohe. Amzanig huh? yaeh and I awlyas tghuhot slpeling was ipmorantt!
है न मजेदार। पढ़ लेने के बाद समझ में नहीं आता कि पढ़ा कैसे।
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