Friday, July 19, 2019

मैं वही हूँ




पाँच कविताएँ

1

जाते हुए अच्छा या चलूँ जैसा कुछ कहा था तुमने

आने वाले तूफानों से अंजान वह लम्हा था

हम अलग-अलग यात्राओं पर निकल पड़े थे

मैंने ज़हन में सँभाल रख ली थीं तुम्हारी नाज़ुक भंगिमाएँ



तुम्हारे चुप-चुप नयन मेरे हर तज़ुर्बे में साथ चलते थे

मेरी आँखों में हसरत बस गई थी

हर मंज़र में ख़ून दौड़ता था

हर सिम्त तुम्हारी महक थी



दरख्तों के पत्तों में बेसब्र सिहरन थी

हर पल लगता था कि कहीं से देख रही हो मुझे

कि मुझे धरती पर खुला छोड़ने के लिए बेताब हो तुम

जितना कि मैं तुमसे बँधा रहना चाहता था



या कि तुम भी मुझे बाँध रखना चाहती थी

और मैं तुम्हें पँखुड़ियों सा खोलना चाहता था



(तुम्हारी चुप आँखें कह रही हैं मुझे कि मैं वही हूँ

कितना चाहा था मैंने तुम्हें इसका हिसाब लगा रहा हूँ)



2


कल शाम देर तक बिजली कड़कती रही

दूर चट्टानों पर बादल बिछ गए थे

गीली हवा थी और मैं प्यासा था

तुम्हारे बिन मेरा बदन बेजान-सा फर्श पर टिका था



गरज-गरज बादल अँधेरे की चुप्पी तोड़ रहे थे

हवा के साथ बौछारें आ-आ मुझे भिगोती रहीं



छुअन की याद थी या वह सचमुच अगन थी

प्यास थी या बिजली की चाह थी कि मुझमें से गुजर कर धरती को चूमे

झुलस जाऊँ, तुम्हारे स्वाद-गंध के तीखेपन में हुलस जाऊँ

उन अकेले ग़लत लम्हों में झूठ-सच सब कुछ पिघल रहा था

कायनात भर में फैला भारी एहसास था कि तुम मेरे पास नहीं थी


3


बादल लिपटे हुए हैं आपस में

दूर कहीं उनमें से कोई धरती को चूम रहा है

आसन्न रति की उमंग में लाल हो चुकी है पीठ

अनजाने ही बादल उमड़-घुमड़ रहा है



जैसे मेरे खयाल हैं बार-बार तुम्हें ढूँढते

बादल के बदन में धरती चुभोती है काँटे

हवा साँय-साँय मुझ तक ले आती है सुखभरी पीर

एक टिमटिमाता तारा वक्त से पहले ही मुस्कुरा उठता है



आह बहार के आखिरी और ग्रीष्म के पूर्वाभासी मेघ

क्या तुम मेरे मेघदूत हो?

आषाढ़ से पहले ही पूछ रहे

मेरे छंदहीन संवाद जो ढो कर ले जाने हैं तुमने



जाओ कह देना उसे कि चट्टानों में देखता हूँ उसे

तड़पता हूँ पर जानता हूँ कि तुम्हारी तरह उत्शृंखल है वह भी

इसीलिए डूबा रहता हूँ जो है नहीं पूर्णता के एहसास में कि

वह है तो सभी मौसम मेरे पूरे हैं



वह है तो मेरे दिन और रात हैं

ले आना उसे अपने साथ

आषाढ़ के मत्त घुमड़ में

उसकी चुभन के इंतज़ार में जीता हूँ बसंत और ग्रीष्म।




4



जुलूसों में मजलूमों के बीच

भरी दीर्घाओं में समागमों में

हर कहीं जहाँ कहीं जाता हूँ

तुम साथ होती हो



ज़ुल्मों के पहाड़ खड़े हैं हर ओर

हमारे पास इतनी ही ताकत है कि हम साथ हैं

अकेले में भी सभी बंद दरवाजे हमारे लिए खुल जाते हैं

कुदरत को मालूम है कि हम जामे-फना पी चुके हैं

हमारी हर साँस साथ-साथ चलती है

और धरती पर पौधा-पौधा खिलखिला उठता है

जहाँ कहीं भी तुम हो

जानता हूँ कि साथ गा रही हो तराना

कि दुनिया में हर किसी को प्यार मिले

खत्म हो जाएँ कौमों के बीच दुश्मनी

हर कोई ज़िंदगी की जीत गाए

हर कोई जन्नत है प्रीत गाए।



5


तुम नदी हो, आस्मां हो

बादल, दरख्तों के बीच से गुजरती हवा हो

छाया-सी हो मुझे अपने अंदर समेटती

मुझमें समा जाती

खालिस अगन हो

ख़ून हो मुझमें बहता हुआ

मुझमें असंख्य दीप जलाती चिंगारी हो



मैं खरबों साल पहले लिखा गया समीकरण हूँ

तुम आई और मेरी सरहदें खुल गईं

जाने कितने परिंदे आ बस गए मुझमें

मैं उड़ चला अनंत असीम की ओर।

(मधुमती -2019)

Wednesday, July 17, 2019

चंद्रयान के बहाने कुछ बातें


चंद्रयान-II
(16 जुलाई 2019 को 'राष्ट्रीय सहारा' में छपा लेख)
आधुनिक विज्ञान के व्यापक अध्ययन और शोध के क्षेत्रों में से एक अंतरिक्ष-विज्ञान है। पुराने जमाने में धरती पर से ग्रहों-नक्षत्रों को देखते हुए ज्योतिर्विज्ञानियों ने अंतरिक्ष के बारे में जानकारी पाने की कोशिशें कीं। बीसवीं सदी तक इतनी जानकारी मिल चुकी थी कि इंसान अंतरिक्ष में छलाँग लगाने के लिए तैयार हो गया। पिछले सात दशकों से पहले रुस, अमेरिका और अब कई और मुल्कों में धरती से निकल कर अंतरिक्ष में जा कर शोध करने की कोशिशें जारी हैं। चाँद पर पहली बार अमेरिकी यान अपोलो 11 उतरा था। चाँद पर कदम रखने वाले पहले इंसान नील आर्मस्ट्रॉंग ने इसे एक इंसान का छोटा कदम और मानवता की लंबी छलाँग कहा था। भारत में अंतरिक्ष शोध संस्थान ने पिछली सदी में मौसम की जानकारी के लिए रॉकेट-यानों को आकाश में भेजा और इस सदी में चाँद और मंगल तक यान भेजे गए। हाल में चाँद तक जाने के लिए चंद्रयान-II को तैयार किया गया है। इसे रविवार 14 जुलाई को आकाश में भेजा जाना था, पर कुछ खामियों की वजह से भेजने में कुछ और देर का निर्णय लिया गया है।

सूक्ष्म से स्थूल तक कुदरत के हर कतरे पर तरह-तरह के सवाल करते हुए जानकारी इकट्ठी करना विज्ञान का मकसद है। अंतरिक्ष इसी का एक पहलू है। पर आम लोग इसे अंतरिक्ष में साहसी अभियान की तरह और राष्ट्रीय गौरव के साथ जोड़ कर देखते हैं। चाँद या अंतरिक्ष में दीगर ग्रहों-नक्षत्रों के बारे में हमें काफी जानकारी दूसरे मुल्कों द्वारा भेजे यानों से मिल चुकी है। हर कोशिश कुछ और नई जानकारी लाती है। 2008-09 में भेजे पहले चंद्रयान की खोजों से चाँद की मिट्टी में धातुओं की मौजूदगी के अलावा कहीं पानी (बर्फ) होने की संभावना का पता चला है। यह यान आज भी 250 कि.मी. की ऊँचाई पर धरती के चक्कर काट रहा है, हालाँकि अब इससे कोई जानकारी नहीं मिलती है। तक़रीबन पौने चार टन वजन के चंद्रयान-II को श्रीहरिकोटा द्वीप के सतीश धवन अंतरिक्ष केंद्र से उछाला जाएगा। इसके एक हिस्से का चाँद के दो बड़े गड्ढों के बीच उतरना तय है। उतरते ही एक छोटी गाड़ी चल पड़ेगी, जिसे रोवर कहते हैं। यह रोवर घूम-फिर कर चाँद की मिट्टी के नमूने इकट्ठे करेगा। इस बार भी हमें चाँद की मिट्टी में मौजूद रसायनों और ज़मीन-हवा के बारे में बेहतर जानकारी मिलेगी। बर्फ है या नहीं, है तो कितनी है, इस पर फिर से खोज चलेगी। रोवर के अलावा सौ कि.मी. की ऊँचाई से चाँद के चक्कर लगाता ऑरबाइटर फोटो लेता रहेगा। इस जानकारी को धरती पर तमाम वैज्ञानिकों को भेजा जाएगा।

अंतरिक्ष अभियानों से जो जानकारी आती है, उसे लेकर वैज्ञानिकों में कुतूहल रहता है, शोध में तरक्की होती है, जैसा कि दीगर और विषयों में होता है। पर आम लोगों को महज यह बतलाया जाता है कि अब भारत सॉफ्ट लैंडिंग या बिना किसी झटके के चाँद पर उतरने वाला चौथा मुल्क बन गया है। चंद्रयान-II पर कुल खर्च करीब 1000 करोड़ रुपए का लगा है। करोड़ों रुपए खर्च कर ऐसे अभियानों में हमें शिरकत करनी चाहिए या नहीं, इस पर काफी बहस चलती रहती है। अभियान को राष्ट्रीय गौरव के साथ जोड़ना अपने आप में विरोधाभास है, क्योंकि दरअसल विज्ञान का मकसद सारी मानवता की भलाई है। भारत के संविधान में वैज्ञानिक सोच बढ़ाने की बात कही गई है, जिसका आधार सवाल करते रहना है। ऐसी सोच से समाज के निहित स्वार्थों को खतरा है, क्योंकि सवालों का सिलसिला कुदरत से होते हुए समाज तक आ पहुँचता है। संकीर्ण राष्ट्रवाद की सोच आज भी धरती के तमाम मुल्कों में हावी है और विज्ञान की जगह तक्नोलोजी पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है, जिसके साथ विज्ञान का सीमित संबंध है।

देश के तीन-चौथाई बच्चे आज भी ऊँची तालीम यानी कॉलेज तक नहीं पहुँच पाते हैं। जो पहुँचते हैं, उनमें से एक चुनिंदा छोटे हिस्से को विज्ञान पढ़ने और शोध की ट्रेनिंग का मौका मिलता है। जाहिर है कि इस तरह ज्यादातर प्रतिभावान बच्चे विज्ञान की तालीम लेने से छूट जाते हैं। हाल ही में केंद्रीय विज्ञान मंत्री ने कहा है कि देश में हजारों वैज्ञानिकों के पद खाली पड़े हुए हैं। सरकार के वायदों के विपरीत शोध अनुदानों में कटौती की गई है और शोध करने वालों को पहले से अनुमोदित पैसे भी अक्सर महीनों या सालों बाद मिलते हैं। राजनैतिक नेता समाज में फैले गैर-वैज्ञानिक माहौल को बढ़ाते रहते हैं और अक्सर पेशेवर वैज्ञानिक या तो योग्यता के अभाव से या समझौतापरस्ती से इसमें मदद करते हैं। हर बार अंतरिक्ष में कोई रॉकेट या यान भेजने से पहले शोध संस्थान के निर्देशक तिरुपति पहँच कर पूजा करते हैं। इस बार भी मौजूदा निर्देशक के. शिवन ने ऐसा ही किया। ऐसा करना ग़लत नहीं है, क्योंकि धर्म-संस्कृति हमारी पारंपारिक जीवन-शैली का हिस्सा है, पर ऐन यान भेजने से पहले ऐसा करते हुए इसे राष्ट्रीय चर्चा का विषय बनाना यह दिखलाता है कि जान-बूझकर विज्ञान से इतर कर्मकांड को विज्ञान के साथ जोड़ा जा रहा है।

अंतरिक्ष हो या कुदरत का और कोई भी पहलू हो, ऊँचे स्तर का शोध चलते रहना चाहिए। जब तक तालीम के खित्ते में गैरबराबरी रहेगी, यह संभव नहीं है। लोगों को झूठे राष्ट्रीय गौरव में उलझाए रख कर सरकारें अपना गोरखधंधा चलाती रहती हैं, पर इससे देश का नुक्सान ही होता है। समाज में विज्ञान की जागरुकता कैसे फैले, इस पर सोचना ज़रूरी है। राष्ट्रीय स्तर के हर अखबार में कम से कम हफ्ते में एक बार विज्ञान की खोजों पर पन्ना निकलना चाहिए। आज आम पत्रकारिता में अक्सर ग़लत जानकारियाँ ही आती रहती हैं और समाज को वैज्ञानिक सोच के विपरीत अंधविश्वासों की ओर धकेला जाता है।

जल्दी ही चंद्रयान-II को अंतरिक्ष में भेज जाएगा और नियत समय पर वह चाँद पर पहुँच जाएगा। यह पूरी तरह से भारतीय अभियान तो नहीं होगा, क्योंकि इसके पीछे रूसी मदद भी है। ऐसा कोई भी अभियान किसी एक मुल्क का नहीं हेता है। अमेरिकी अंतरिक्ष शोध-संस्था नासा में भी दुनिया भर से पढ़-लिख कर आए सैंकड़ों वैज्ञानिक काम करते हैं, जिनमें कई भारतीय भी हैं। उम्मीद यही है कि चंद्रयान-II को भी चाँद पर भारत का झंडा फैलाने के नज़रिए तक सीमित न रख कर इसे मानवीय मेधा और तरक्की के कदम की तरह देखा जाएगा।

Tuesday, July 16, 2019

बहता है आब-ए-हयात हमेशा नीचे की ओर


रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में

ताज़िंदगी इंतज़ार रहा कि कभी रोशनी होगी
कारवां गुजरता रहा बीहड़ों से
लहरें कभी स्थिर कभी उमड़ती रहीं
धरती के हर छोर पर घूमा कि रोशनी होगी

रोशनी मिली अपने ही अँधेरे में
देर बहुत हुई यह जानने में कि यही रोशनी है
कि वक्त का तीर वाकई इकतरफा है
बहता है आब--हयात हमेशा नीचे की ओर

क्या कुछ होना था कौन जानता है
जो हुआ वही है
यही रोशनी है कि अँधेरे में रहे अब तक
कि जहाँ भी सुकून था उसे छोड़ बेकरारी में जिए

रोशनी की लहरें आती है
कि जो है वह सब अँधेरे में है।
- (पहल - 2019)

I found light in my own darkness

I waited all my life for it to be light
We traveled through wilderness
Waves came around calm at times and turbulent
elsewhile
I went to all corners of the world to seek light

I found light in darkness within me
It took a long while to see that it was light
That the arrow of time is indeed directed
That the waters of life always flow downhill

Who knows what was to happen
What has happened is for real
This is what light is that darkness prevailed until now
That I strayed from comforts to live restlessly

Waves of light arrive to show
That what is there it is in the darkness.

Saturday, July 13, 2019

ऐसी बातें लिखा करो


मिट जाएँ लफ्ज़

ऐसा लिखो कि लोग लड़ें तो बच्चों की तरह लड़ें
आज लड़ें तो कल फिर दोस्त बन जाएँ
लिखो कि फ़र्क देश धर्म के नहीं रहे
खत्म है जंगों का कारोबार
और सिपाहियों की भर्ती हो रही विभाग में जिसका नाम है प्यार

क्यों लिखते हो कि कोई किसी को प्यार करने से रोकता है
लिखो ताज़ा खबर कि खाप पंचों ने कह दिया है
खुले आम प्यार करेंगे नौजवान

कि स्त्रियों का अपमान करने वालों को कानूनी सजा के अलावा
कठिनतम संस्कृत श्लोक रटने पड़ेंगे एक दर्जन

मत लिखो कि बजरंगियों से हो गए दुखी
लिखो कि दंगाई हुक्काम ने रोती माँओं से है माफी माँग ली
और कि अवाम ने उन्हें
तीन जन्मों तक सियासत न करने की सजा दे दी

ऐसी बातें लिखा करो कि
निकल आए हर कट्टरपंथी के अंदर छिपा माइकेल जैक्सन
और पेश करे भँगड़ा नाचन
कि सियासी पार्टियों के मुंडे
ताज़ा कविताएँ पढ़ते हुए रोने लगें पकड़कर कान
और एकजुट होकर गाएँ अजान

ऐसा ही लिखो कि प्यार जो उमड़ता है ज़हन में
बना डाले एक नई दुनिया
मिट जाएँ सरहदें और
स्कूलों में मास्टर लग जाएँ फौज के सिपाही
मिट जाएँ लफ्ज़ हत्या और हत्यारा तुम्हारी कविता से। 
(पहल-2019)

Such Words Must Disappear

Do write that when people fight they must do it like children
They may fight today and become friends again tomorrow
Write that there is no more hostility between religions and Nations
That the war industry has died
And that soldiers are being recruited in a department called Love

Why write that someone prevents others from loving
Do write that the khaap bodies have declared
That young people will publicly display affection

That those who hurt women will in addition to legal penalties
Have to memorise a dozen of most difficult shlokas in Sanskrit

Do not write that you are depressed with the rise of the Right
Do write that the ruling goon has asked for forgiveness from weeping mothers
And that people have sentenced him
To stay away from politics for three lives

Such is what you must write
That Michael Jackson comes out from innards of a fundamentalist
And performs Bhangra dance
That the rowdies of political outfits
Cry out with fingers on their ears while reading new poetry
And they all get together to sing prayers

Write such stuff of love that rises in your mind
That may create a new world
Erasing borders
And that inspires soldiers to get teaching jobs in schools
Such words like killing and killers must disappear from your poems.



Friday, July 12, 2019

शहर-दर-शहर भटकता हूँ


सब मेरे हो सकते थे

वह गाँव मेरा हो सकता था
घर जो बिक गया
उसके पास खड़ा मैं
रो सकता था
कहीं तो दर्ज होगा
कि हजार साल पहले उस घर में किसके वीर्य में
रचा गया मेरे गुणसूत्रों का इतिहास

अंबो को मैंने ज़िंदा देखा (*अंबो = दादी)
उसकी मौत की खबर सुनी थी
और बापू को रोते देखा था
अकेले में चली गई वह
छोड़कर हफ्ते भर का अखंड पाठ
जो उसकी मौत के कुछ पहले भी एक बार हो चुका था

वह गाँव अक्सर मेरे पास आ खड़ा होता है
किसी को कहता हूँ तो पता चलता है
कि मेरी कविताओं में संस्मरण बढ़ने लगे हैं
क्या मैं वक्त से ज्यादा जी चुका हूँ

ऐसे सवाल अंबो के ज़हन में नहीं आते थे
गाँव की ज़िंदगी की खासियत थी यह

बिक गया वह घर
जो अकेला कभी नहीं हो सकता था
इसलिए लुका-छिपी खेलते हुए
हमें वह छिपा लेता था पड़ोस के घरों में
वे सब मेरे हो सकते थे

आँगन में आम और बबूल के
परस्पर हमेशा नाराज़ खड़े पेड़
उपलों की महक
पिछवाड़े कबूतरबाज मुकुंदा
सब मेरे हो सकते थे

शहर-दर-शहर भटकता हूँ
सुनता अँधेरी रातों में साँसों का चढ़ना-उतरना
गुनगुनाना मच्छरों के साथ
कि सब मेरे हो सकते थे।
(पहल - 2019)

Monday, July 01, 2019

एक धुन ज़मीं से उठेगी


धरती मेरे अश्क पी जाएगी


मैंने दरख्तों से खूब बातें की हैं
हवा के साथ बहता मैं छू आया हूँ पत्तों को बार-बार
यह धरती मुझे प्यारी है; बार-बार इस पर लोटता हूँ
जो कुछ जानना ढूँढना है, इसी के सीने पर मुझे मिला है
ज़हन के हर तिलिस्म में समाई हुई है मेरी धरती
यही जानो-तन मेरी, वतन मेरी, मेरी धरती।


किसी भी दिन मैं चला जाऊँगा
तो जा कर भी यहीं रहूँगा
कायनात के अंजान कोनों से चल कर
खुदा मुझसे मिलने आएगा मर्सिया पढ़ने
मैं कहूँगा कि मेरे माँ-बाप पुरखे सारे
इसी धरती की गोद में चले गए


उनसे विरासत में मिली मुझे मेरी धरती
पंछी नहीं कोई पास तो क्या
सारे पंछी मेरे साथ ही चले गए
दरख्तों को मेरी हर बात याद है
वे झूमते रहेंगे अनंत काल तक
कि मैं उनसे बातें करने आया था

अब मैं जरा रो लूँ
सपनों में रोऊँ या जागकर
धरती मेरे अश्क पी जाएगी
अकेला नहीं रहूँगा अपने सुख में
रोएगी धरती साथ-साथ
एक धुन ज़मीं से उठेगी
साँसों की, धड़कनों की, प्यार की,
मेरा जाना धरती में समाना। 

(पहल - 2019)

The Earth Will Swallow My Tears
I have talked a lot with the trees
I have flown with the wind and touched the leaves many times
This Earth I love, I lie and frolic on it again and again
Whatever I have to discover and know, I found it  on its chest
My Earth is there in every magic mystery of my brains
This my heart and soul, my land, my Earth.

I will be gone any day
And yet after leaving I will be here
From unseen ends of the creation
the Lord will come to read requiem for me
I will tell him that my forefathers,
they all went in this Earth's lap

I inherited from them my Earth
If no bird is around, so be it
All birds are gone with me
The trees remember everything about me
They will dance endlessly
remembering my conversations with them

Let me now cry a bit
I will cry in my dreams or maybe awake
The Earth will swallow my tears
I will not be alone in my joy
The Earth will weep together with me
A sound of music will rise from the ground
Of my breath, of heart-beats, of love
As I go and dissolve in Earth.