Skip to main content

तेरे दामन से जो आएँ उन हवाओं को सलाम

स्कूल वालों ने शाना को देशभक्ति पर शोध करने का काम दिया है। आम तौर पर इस तरह का गृहकार्य रुटीन तरीके से समेट लिया जाता है, पर शाना इस पर गंभीर है। चार महीने पहले भाषण प्रतियोगिता में देशभक्ति की आलोचना कर बड़ी सारी ट्राफी जीती थी।

फ़ोन पर मैंने बतलाया कि मैं देशभक्त हूँ क्योंकि मुझे भारत की उन हवाओं से प्यार है जो पाकिस्तान भी आती जाती हैं। भारत की चिड़ियों से तो प्यार होगा ही क्योंकि वे चीन भी आती जाती हैं। वैसे शाना के शब्दकोष में 'पिता' का अर्थ बेतुकी बातें कहकर चिढ़ाने वाला शख्स जैसी कोई संज्ञा होगी, पर इस बार उसने साफ कहा यह सब देशभक्ति नहीं है। फिर मैंने एक पुराना अमरीकी लोकगीत गाकर सुनाया (यानी दो लाइन, मुझे हर गीत की दो लाइनें ही याद रहती हैं), 'दिस लैंड इज़ योर लैंड, दिस लैंड इज़ माई लैंड, फ्रॉम कैलिफोर्निया रेडवुड्स, टू न्यू यार्क आईलैंड्स, दिस लैंड इज़ मेड फॉर यू ऐंड मी'। वुडी गथरी का गाया क्लासिक गीत है, जिसे बाद में पीट सीगर, जोन बाएज़ जैसे कइयों ने गाया है।

शाना का जवाब था - मुझे कंट्री म्युज़िक पसंद नहीं है। अब मेरे शब्दकोष में किशोरी पुत्री का अर्थ क्या होगा, आप कल्पना कर सकते हैं। बहरहाल, मुझे मन्ना दे* का गाया 'काबुलीवाला' वाला वह गीत देशभक्ति का सबसे बढ़िया गीत लगता है: ऐ मेरे प्यारे वतन, ऐ मेरे बिछुड़े चमन, तुझ पे दिल कुर्बान। इसमे जब वो लाइन आती है - माँ का दिल बनकर कभी सीने से लग जाता है तू - तो मुझे रोना आ जाता है। मैं यह गीत गा भी लेता हूँ (अमूमन मेरा गायन मौलिक होता है ः-)

अब मैं क्या करूँ कि देशभक्ति का सबसे बढ़िया हिंदी गाना एक काबुलीवाला गाता है। गाने को एक भारतीय आत्मा का मुझे फेंक देना वनमाली भी गा ही लेता हूँ, पर उसे बराबर दर्जे की देशभक्ति नहीं मान पाता। जब सामरिक खाते में बजट वृद्धि की खबर पढ़ता हूँ, तो लगता है इस वक्त सच्ची देशभक्ति इन जनविरोधी सरकारों के खिलाफ आवाज उठाने की प्रवृत्ति ही हो सकती है। शिक्षा में दोस्तो जो पिछले सालों में सेस लगा था उसकी बदौलत रोटी का टुकड़ा थोड़ा बड़ा हुआ है, अन्यथा लोगों को मरवाने वाले इन जंगी गद्दारों ने देश के लोगों का खून पसीना लुटाते ही रहना है।

*तरुण की टिप्पणी के बाद संशोधित

Comments

Anonymous said…
ye geet shayad manna de ne gaya hai
सचमुच मैं कैसे भूल गया।
चलो इसी बहाने झट से नेट देखा तो पाया कि मन्ना दे का असली नाम प्रबोध चंद्र दे है।
धन्यवाद तरुण और गलती के लिए सबसे मुआफी। मैं संशोधन कर रहा हूँ।

Popular posts from this blog

फताड़ू के नबारुण

('अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) 'अक्सर आलोचक उसमें अनुशासन की कमी की बात करते हैं। अरे सालो, वो फिल्म का ग्रामर बना रहा है। यह ग्रामर सीखो। ... घिनौनी तबाह हो चुकी किसी चीज़ को खूबसूरत नहीं बनाया जा सकता। ... इंसान के प्रति विश्वसनीय होना, ग़रीब के प्रति ईमानदार होना, यह कला की शर्त है। पैसे-वालों के साथ खुशमिज़ाजी से कला नहीं बनती। पोलिटिकली करेक्ट होना दलाली है। I stand with the left wing art, no further left than the heart – वामपंथी आर्ट के साथ हूँ, पर अपने हार्ट (दिल) से ज़्यादा वामी नहीं हूँ। इस सोच को क़ुबूल करना, क़ुबूल करते-करते एक दिन मर जाना - यही कला है। पोलिटिकली करेक्ट और कल्चरली करेक्ट बांगाली बर्बाद हों, उनकी आधुनिकता बर्बाद हो। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है, सिवाय अपनी बेड़ियों और पोलिटिकली करेक्ट होने के।' यू-ट्यूब पर ऋत्विक घटक पर नबारुण भट्टाचार्य के व्याख्यान के कई वीडियो में से एक देखते हुए एकबारगी एक किशोर सा कह उठता हूँ - नबारुण! नबारुण! 1 व्याख्यान के अंत में ऋत्विक के साथ अपनी बहस याद करते हुए वह रो पड़ता है और अंजाने ही मैं साथ रोने लगता हू...

मृत्यु-नाद

('अकार' पत्रिका के ताज़ा अंक में आया आलेख) ' मौत का एक दिन मुअय्यन है / नींद क्यूँ रात भर नहीं आती ' - मिर्ज़ा ग़ालिब ' काल , तुझसे होड़ है मेरी ׃ अपराजित तू— / तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। /  इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूँ ' - शमशेर बहादुर सिंह ; हिन्दी कवि ' मैं जा सकता हूं / जिस किसी सिम्त जा सकता हूं / लेकिन क्यों जाऊं ?’ - शक्ति चट्टोपाध्याय , बांग्ला कवि ' लगता है कि सब ख़त्म हो गया / लगता है कि सूरज छिप गया / दरअसल भोर  हुई है / जब कब्र में क़ैद हो गए  तभी रूह आज़ाद होती है - जलालुद्दीन रूमी हमारी हर सोच जीवन - केंद्रिक है , पर किसी जीव के जन्म लेने पर कवियों - कलाकारों ने जितना सृजन किया है , उससे कहीं ज्यादा काम जीवन के ख़त्म होने पर मिलता है। मृत्यु पर टिप्पणियाँ संस्कृति - सापेक्ष होती हैं , यानी मौत पर हर समाज में औरों से अलग खास नज़रिया होता है। फिर भी इस पर एक स्पष्ट सार्वभौमिक आख्यान है। जीवन की सभी अच्छी बातें तभी होती हैं जब हम जीवित होते हैं। हर जीव का एक दिन मरना तय है , देर - सबेर हम सब को मौत का सामना करना है , और मरने पर हम निष्क्रिय...

 स्त्री-दर्पण

 स्त्री-दर्पण ने फेसबुक में पुरुष कवियों की स्त्री विषयक कविताएं इकट्टी करने की मुहिम चलाई है। इसी सिलसिले में मेरी कविताएँ भी आई हैं। नीचे उनका पोस्ट डाल रहा हूँ।  “पुरुष कवि : स्त्री विषयक कविता” ----------------- मित्रो, पिछले चार साल से आप स्त्री दर्पण की गतिविधियों को देखते आ रहे हैं। आपने देखा होगा कि हमने लेखिकाओं पर केंद्रित कई कार्यक्रम किये और स्त्री विमर्श से संबंधित टिप्पणियां और रचनाएं पेश की लेकिन हमारा यह भी मानना है कि कोई भी स्त्री विमर्श तब तक पूरा नहीं होता जब तक इस लड़ाई में पुरुष शामिल न हों। जब तक पुरुषों द्वारा लिखे गए स्त्री विषयक साहित्य को शामिल न किया जाए हमारी यह लड़ाई अधूरी है, हम जीत नहीं पाएंगे। इस संघर्ष में पुरुषों को बदलना भी है और हमारा साथ देना भी है। हमारा विरोध पितृसत्तात्मक समाज से है न कि पुरुष विशेष से इसलिए अब हम स्त्री दर्पण पर उन पुरुष रचनाकारों की रचनाएं भी पेश करेंगे जिन्होंने अपनी रचनाओं में स्त्रियों की मुक्ति के बारे सोचा है। इस क्रम में हम हिंदी की सभी पीढ़ियों के कवियों की स्त्री विषयक कविताएं आपके सामने पेश करेंगे। हम अपन...