Wednesday, January 15, 2020

फरमान जारी हुआ है


नेता का तोहफा
आओ मुल्क के लोगो
काश्मीर से कन्यकुमारी तक
लाइन लगाओ
महान नेता का हुक्म है

कि मुल्क की सारी समस्याएँ बस तुम्हारे होने से है

फरमान जारी हुआ है
कि कन्याकुमारी में आखिरी छोर पर खड़े नागरिक के पाछे
बाँधा जाएगा देशभक्त वैज्ञानिकों द्वारा आविष्कृत नव्यतम बम

परमाणु, लेज़र वगैरह बहुत कुछ है इस बम में
बत्ती लगाते ही पल में सबको पाकिस्तान भेजा जाएगा
वहाँ जाकर लोकतंत्र की माँग करना
यह नेता का तोहफा है
आज रात बारह बजे यह शुभकार्य संपन्न होगा

दुनिया भर के हुक्काम रीस से भर गए हैं
कि हिंदुस्तान के शहंशाह ने यह कारनामा दिखलाना है
अलग-अलग ज़ुबानों में खबरें सुनाई जा रही हैं 
कहीं नई जंगें छिड़ गई हैं कि
कौन पहले हमारे नेता को गले लगाता है

लाइन में खड़े होने वाले हर किसी को बार-बार राष्ट्रगान सुनाया जाएगा
बाबा श्यामदेव को नाभि के नीचे उत्तेजना के लिए बुलाया जाएगा

सब पाकिस्तान चले जाएँगे और
बस हमारा नेता
गटर-गैस की चाय-बू में सराबोर
श्यामदेव के साथ अर्द्ध-पद्मासन करता अकेले रह जाएगा
इस तरह मुल्क एक बार फिर विश्वगुरू बन जाएगा।
(नया पथ - 2020)

Monday, January 13, 2020

मलंगों की ज़िंदगी में बदलाव


मुल्क की माली हालत सुधारने का फॉर्मूला
मलंगों को बाँध रखने की नई तकनीक आ गई है। केंद्र खोले गए हैं जहाँ चौबीस घंटे जिस्म के पोर दिखाए जाएँगे, जिनकी खोज हाल में हुई है। मलंग इनको देखकर नाचते हैं और कभी नहीं रुकते। नाचते हुए वे टट्टी-पानी करते हैं, चाय नाश्ता करते हैं और हुक्काम की जै-जैकार करते हैं। बेशक यह मलंगों की ज़िंदगी में बड़ा बदलाव है। वे दौड़ते आते हैं और अंदर जाने की माँग करते हैं। कुछ पोस्टर लिए खड़े होते हैं, जिनपर लिखा है - हाइल हिटलर, हाइल हमारा नेता, जै गोमाता। केंद्र से बाहर खड़े होकर काँच की दीवारों से वे अंदर के मंज़र देखते हैं। तरह-तरह के जिस्मानी पोर देखते झूमते हैं। खुद पर चाबुक बरसाते हैं। रति-अतिरेक जैसी चीखें गूँजती हैं। उनको सँभालने आए सिपाही उनके उल्लास में शामिल हो जाते हैं। नाचते हुए ताप के एहसास से वे वर्दियाँ खोल डालते हैं। कुछ जाँघिए पहने नाचते हैं।

यह तकनीक मुल्क की माली हालत सुधारने का फॉर्मूला है। हुक्मरान अपने-अपने इदारों में हर कारिंदे को मलंग-नाच में शामिल होने के लिए कहते हैं। लोग सुबह लंबी कतारों में खड़े होते हैं और शाम को नाच रहे होते हैं। कौन कितनी देर किन पोरों को देखता-सूँघता नाचेगा, इस पर बहस होती है। सिपाही अलग-अलग नाचते गुटों में शामिल होकर कहते हैं कि वे न्याय-शृंखला के काम में लगे हैं।
एक वक्त था, जब मलंग अदब की राह ढूँढने निकले थे। वे एक दूसरे को पुराने अदीब की कहानियाँ सुनाते रहे, जिसने कहा था कि 'चाँद का मुँह टेढ़ा है'। एक-एक कर सभी नाच में शामिल होने लगे। अब उन पर माता चढ़ आई है। धूप-धूनी में नीमबेहोशी में खोए वे कविताएँ पढ़ते हैं और परंपरा का जयगान गाते हैं। नेता की तोंद उनको देखकर खिलखिलाती है। हुक्म जारी होता है कि नए जिस्मानी पोरों को सूँघने वाले सब का नाम बदल कर देशभक्त हो गया है।
(नया पथ - 2020)

Saturday, January 11, 2020

हर शहर प्रतिरोध हर कहीं इंसान


जब तक चाँद देख पाता हूँ, खुद को आज़ाद रखूँगा
उस शाम एक खेत के किनारे सड़क पर खड़े मैंने आस्माँ में चाँद देखा। चाँद घूमने निकला था। हम अपने तय रास्ते पर नहीं चल रहे थे। चाँद हमारी भटकन देख रहा था। शाम धुँधली-सी थी और हम बज़िद इस ओर चले आए थे।

पास छोटा शहर था। यहाँ की अजान और मंदिरों की घंटियाँ किसी भी छोटे शहर के अजान और मंदिर की घंटियाँ थी। यहाँ इंकलाब के सपनों का स्मारक धरती पर कहीं का भी इंकलाब के सपनों का स्मारक था। नीले-से फैल रहे अँधेरे में शहर का नाम प्रतिरोध था। पास से तरह-तरह के वाहन गुजर रहे थे, जो शहर की ओर आ-जा रहे थे।

मैंने सोचा कि धरती पर चारों ओर आ-जा रहे लोग गुलाम हैं जिनको धरती का संतुलन बनाए रखने का काम दिया गया है। एहसास हुआ कि मैं गुलाम हूँ, पर मैंने तय किया कि मैं धरती को गतिकक्ष में बाँध नहीं रखूँगा। जब तक चाँद को देख पाता हूँ, खुद को आज़ाद रखूँगा। पैर गुलामी करते हुए थक चुके थे। मैं ज़मीं पर बैठ गया और मिट्टी पर लकीरें खींचने लगा।

ढलती शाम के अँधेेरे में जागते हुए एक सपना देखा। सपना मुझसे थोड़ी दूर खड़ा था। वक्त के पैमाने पर वह मुझसे पचास साल पीछे से मेरे साथ था। सपने में नारों की गूँज थी। सपने में बहुत सारी औरतें और बच्चे एक सपने के साथ थे, जिसका नाम आज़ादी था। सपने में औरतें गिर रही थीं, उनकी पुष्ट टाँगों से ख़ून बहने लगा था। मैं सपने में चीख पड़ा।

मैंने सोचा कि पंक्चर ठीक होते ही मैं उन औरतों को एक-एक कर अस्पताल ले जाऊँगा। वहाँ फरिश्ते उन पर पट्टियाँ लगाएँगे। चारों ओर आज़ादी के गीत गुनगुनाती आवाज़ें थीं। अँधेरा बढ़ चुका था और कहीं से अंधड़ सा उठ खड़ा हुआ था। पास कहीं से केतली और कुल्हड़ लिए एक चाय वाला हमें चाय पिलाने आया था। हम अंदाज़ा लगा रहे थे कि कितनी देर में बारिश आ सकती है। उस वक्त धरती पर हर शहर का नाम प्रतिरोध था और हम हर कहीं के इंसान थे।
(नया पथ - 2020)