Sunday, September 16, 2018

वे हमारी आँखों से देख रहे हैं

आज यह पुरानी कविता दुबारा देखी। याद नहीं कि पहले पोस्ट की है या नहीं। ढूँढने पर देखा कि अक्तूबर 2015 में एक बार पहली चार लाइनें सेरा टीसडेल की कविता के अनुवाद के साथ पोस्ट की हैं। 
आज पूरी कविता पोस्ट कर रहा हूँ। 


देखो, हर ओर उल्लास है

1
पत्ता पत्ते से

फूल फूल से

क्या कह रहा है



मैं तुम्हारी और तुम मेरी आँखों में

क्या देख रहे हैं



जो मारे गए

क्या वे चुप हो गए हैं?



नहीं, वे हमारी आँखों से देख रहे हैं

पत्तों फूलों में गा रहे हैं

देखो, हर ओर उल्लास है।



2



बच्चा सोचता है

कुछ कहता है

देखता है प्राण बहा जाता



चींटी से, केंचुए से बातें करता है

उँगली पर कीट को बैठाकर नाचता है कि

कायनात में कितने रंग हैं

यह कौन हमारे अंदर मौजूद बच्चे का गला घोंट रहा है

पत्ता पत्ते से

फूल फूल से पूछता है

मैं और तुम भींच लेते हैं एक दूजे की हथेलियाँ



जो मारे गए

क्या वे चुप हो गए हैं?



नहीं, वे हमारी आँखों से देख रहे हैं

पत्तों फूलों में गा रहे हैं

देखो, हर ओर उल्लास है।



3



लोग हँस खेल रहे हैं

ऐसा कभी पहले हुआ था



जानने में बहुत देर लगी कि मुल्क कैदखाने में तब्दील हो गया है

धरती पर बहुत सारे लोग तकलीफ में हैं

कि कैसे वे यादों की कैद से छूट सकें

जिनमें उनके पुरखों ने हँसते-खेलते मुल्क को कैदखाना बना दिया था



इसलिए देखो

हमारी हथेलियाँ उठ रही हैं साथ-साथ

मनों में उमंग है

अब हर कोई अखलाक है

हर कोई गौरी, कलबुर्गी, अभिजित रॉय है

हर कोई दमिश्क, अंकारा में है

हर शहर दादरी और बगदाद है

हर प्राण फिलस्तीन है



हमारी मुट्ठियाँ तन रही हैं साथ-साथ

देखो, हर ओर उल्लास है।




 
4



हवा बहती है, मुल्क की धमनियों को छूती हवा बहती है

खेतों मैदानों पर हवा बहती है

लोग हवा की साँय-साँय सुनने को बेताब कान खड़े किए हैं

हवा बहती है, पहाड़ों, नदियों पर हवा बहती है

किसको यह गुमान कि वह हवा पर सवार

वह नहीं जानता कि हवा ढोती है प्यार



उसे पछाड़ती बह जाएगी

यह हवा की फितरत है



सदियों से हवा ने प्यार ढोया है



जो मारे गए

क्या वे चुप हो गए हैं?



नहीं, वे हमारी आँखों से देख रहे हैं

पत्तों फूलों में गा रहे हैं

देखो, हर ओर उल्लास है।



                                        (जनसत्ता 2015)