Tuesday, April 19, 2011

बड़े लोगों की बचकानी बातें



दो दिनों के लिए दफ्तरी काम से कोलकाता गया तो टी वी पर वाद विवाद का स्तर देख कर आश्वस्त हुआ कि मेरा शहर अभी भी अपना स्तर बनाए हुए है। फिर भी कुछ न कुछ ऐसी बातें सुनीं जो बिलकुल गलत थीं और आश्चर्य हुआ कि समझदार लोग ऐसी बातें कैसे कर सकते हैं। एक उदहारण के बतौर बच्चों को अंग्रेज़ी भाषा कब से सिखाई जाए इस पर शांवोली मित्र का बयान सुन कर दंग रह गया। शांवोली बांग्ला रंगमंच की बाघराना प्रतिष्ठित शख्सियत हैं और हाल में कई राजनैतिक मुद्दों पर सजग नागरिक की भूमिका में चर्चित हुई हैं। उनका कहना था कि जैसे कुछ मुल्कों में बच्चों को कम उम्र में ही पानी में उतार दिया जाता है ताकि वे जल्दी तैरने लग जाएं, इसी तरह भाषा सीखने के लिए किसी उम्र की प्रतीक्षा नहीं करनी चाहिए। एक और तर्क था कि वे ऐसे कई परिवारों को जानती हैं जहां परिवार में विभिन्न भाषा के लोग होने की वजह से बच्चे को छोटी उम्र से ही एकाधिक भाषा सीखने में कोई दिक्कत नहीं हुई। मुझे सचमुच आश्चर्य हुआ कि न केवल शांवोली देश के बहुसंख्यक बच्चों की शिक्षा संबंधी समस्याओं से पूरी तरह नावाकिफ हैं, उनमें इतना घमंड भी है कि विश्व भर के शिक्षाविदों की बच्चों की शिक्षा के बारे में जो समझ है उसे वे पूरी तरह नकार रही हैं!बहरहाल, ऐसे ही वापस लौट कर राष्ट्रीय टी वी चैनेल पर मधु किश्वर को हरयाणा में जाति समाज से जुडी हत्याओं के बारे में बोलते हुए सुन कर लगा। पुरुषों की कायरता के बारे में उनका बयान ठीक लगा पर यह कहना कि खाप पंचायत का हरयाणा की ह्त्या की घटनाओं से कुछ लेना देना नहीं, यह सुनकर अवाक रह गया। काश कि ऐसा ही होता। उनका एक तर्क था कि हज़ारों सालों से चलती आ रही खाप पंचायत व्यवस्था (उन्होंने इसे सिविल सोसाइटी का नाम दिया) की परम्परा को हमें बुरा नहीं कहना चाहिए। हत्यारा खाप का सदस्य है मात्र। और कुछ नहीं। बढ़िया। धन्यवाद यह जान कर कि हरयाणा के शहरों में खाप व्यवस्था के खिलाफ लड़ रहे साथियों (जिनमें कई स्वयं जाट है) की जानकारी भरोसे योग्य नहीं है और हूडा की सरकार जो कह रही है वही ठीक है। और क्या कहें।
वैसे नकली बातों से अलग सचमुच की खुशी तो बिनायक के छूटने की है। पूरी छूट भी निश्चित है। सही है कि अभी अनगिनत और बिनायक सींखचों के पीछे हैं। संघर्ष जारी है।

Sunday, April 03, 2011

भारत स्वाभिमान में जुट जाओ


सवा सौ करोड़ लोगों वाले एक मुल्क ने एक दो करोड़ जनसंख्या के एक मुल्क को अपने आधे लाख लोगों के हल्ले के बीच ज़रा से फर्क से पछाड़ दिया और आधी रात के बाद मेरे अध्यापक साथियों के परिवार के लोग पटाखे फटाने निकले। युवाओं को तो जैविक छूट है कि वे जुनून का कारण बतलाने को मजबूर नहीं हैं। पर एक ऐसी संस्था में जहां युवाओं से लगातार कहा जाता है कि आधी रात के बाद जागो मत, वहाँ मध्य वय और उससे भी बड़े लोग अपने नन्हे मुन्नों को लेकर रात बारह से एक बजे तक देश के कानूनों का उल्लंघन कर पटाखे फटाने चलते हैं, इसको किस तरह समझा जा सकता है। मैं इसे महज एक सामंती दंभ मानता हूं, जो अपनी अवस्था के दंभ में सामान्य शिष्टाचार को भी ताक में रख देता है। खेल में मैं भी अपनी ही टीम का पक्ष लेता हूं, खुशी मुझे भी होती है कि भारत की टीम जीती। पर सीना चौड़ा कर सामंती दंभ से उछल रहे लोगों के लिए मुझे यही कहना है कि असली हिन्दुस्तान को भी जानो, वह जो बहुल है, वह हमेशा अदृश्य नहीं रहेगा। वह तुम्हारे घरों तक पहुंचेगा। आज सुबह पंजाब पर बारह मिनट की एक फ़िल्म पटिआला के डाक्टर राजेश शर्मा ने फेसबुक पर डाली, यह सभी को देखनी चाहिए। समस्या से मैं भी वाकिफ था, पर यह कितनी व्यापक है इसका अंदाजा मुझे भी न था।
क्रिकेट में सब माफ है। विपुल संभावना वाला युवा खिलाड़ी द विलियर्स का कैच पकड़कर माँ की गाली निकालता दिखता है, इसे बार बार दिखाया भी जाता है। क्रिकेट के बाहर भी यह माफ ही है, तो क्रिकेट में क्यों ना माफ हो। दूसरे उत्तर भारतीय खिलाड़ी भी अक्सर ऐसे ही दीखते हैं, पर एक महान संस्कृति वाले मुल्क को यह गलत नहीं दिखता कि टी वी पर करोड़ों लोग इस बात को देखते हैं - मैं सोचता रहता हूं कि यह समस्या मेरी ही है कि मैं यह देख लेता हूं, दूसरों को दिखता ही नहीं होगा। किसी ने गाली नहीं दी होगी यह मेरे ही दिमाग की उपज है कि मैं यह देखता हूं। भारत स्वाभिमान में जुट जाओ लाल्टू, ऐसी चीज़ें दिखना बंद हो जायेंगी।
ऐसे में पाँच अलग अंदाज़ में 'वे मैं चोरी चोरी' सुन रहा हूं.
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