Wednesday, November 30, 2016

चुपचाप अट्टहास - 7


मैं अपनी गुफा से निकला

मेरे दाँतों से खून टपक रहा

मुझे पकड़ने की कोशिश में थक-चूर रहे

लोकतंत्र के प्रहरी


सूरज, लबालब कालिमा लपेटे

तप रहा आधा आस्मान समेटे


अमात्य खोद रहा खाइयाँ

गिरते चले विरोधी

शक्तिपात कर दिया है मैंने उसमें

मुझसे ज्यादा ही दिखला रहा वह असर


मैंने अनधुले दाँतों पर सफेद रंग चढ़ाया

मुझे मिलता रहा खून का स्वाद और

लोगों ने देखी मेरी धवल मुस्कान

मेरी जादुई छड़ी किसी को नहीं दिखती

विजय पताका फहराती किला दर किला

काली घनघोर काली


हवाएँ ज़हरीली साँस लिए मुड़ रहीं

रोशनी काँपती-सी दूर होती जा रही। 



I came out from my caves
Blood dripping from my teeth
And the sentries of democracy
Are exhausted in their attempts to catch me

The sun, drenched in darkness
Stretched out hot in half the sky

My minister digging pits
And my rivals falling in them
I have poured power in him
He is even more excited than me

I painted my dirty teeth with white
I tasted blood
And people saw white smile on me
No one can see my magic wand
My victory flag over each and every fortress
Waving in intense darkness

The breeze winds on with poison breath
The light dithers and fades away.
 

Tuesday, November 29, 2016

हरमन-प्यारा 'साहित्यिक नहीं' गायक-गीतकार बॉब डिलन और नोबेल पुरस्कार


('समयांतर' के ताज़ा अंक में प्रकाशित लेख - पत्रिका में 'मार्कूसी' नाम ग़लती से 'मार्क्स' छपा है)
बॉब डिलन को नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा होते ही न्यूयॉर्क टाइम्स में आना नॉर्थ ने अपने आलेख में लिखा कि बॉब डिलन कोई साहित्यिक नहीं थे। साहित्य में नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए और इस साल ऐसा नहीं होगा। प्रसिद्ध पत्रिका न्यूयॉर्कर में रोज़ाना कार्टून में डेविड सिप्रेस ने ग्राफिक टिप्पणी की है - एक छोटे शहर का लड़का हाथ में बेंजो लिए सड़क पर अंगूठा उठाए खड़ा है कि कोई गाड़ी रुक जाए और वह सवारी कर सके। खयालों में वह कई सारे कामों की सूची तैयार कर रहा है - न्यूयॉर्क शहर जाना है, कुछ क्लबों में फोक (लोक संगीत) गाना है, कुछ गीत लिखने हैं, नोबेल पुरस्कार लेना है।
 जाहिर है कि साहित्यिक दुनिया में बॉब डिलन को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से तहलका मचा हुआ है। हमारे अपने अंग्रेज़ीदाँ बंधुओं ने भी लिखा है - 'द हिंदू' में लेख आ चुका है। पर इस पर चिल्ल-पों मचाने की हिम्मत कम लोगों की है। क्योंकि सही या ग़लत, जैसा भी है, बॉब डिलन को नोबेल मिलना दुनिया भर में तरक्कीपसंद लोगों के लिए खुशी का झोंका सा बन कर आया। यह ऐसा निजी सुख है, जिसे बड़ी तादाद में लोग साझा कर रहे हैं। इसलिए निजी संदर्भों से ही इसे समझना चाहिए। सत्तर के बीच के सालों में मैं कोलकाता में कॉलेज में था, जब अपने एक दोस्त के साथ ट्राम की सवारी करता कहीं जा रहा था। अचानक उसने गाना शुरू किया। दो चार बांग्ला गीतों के बीच अपनी बांग्ला लहजे वाली अंग्रेज़ी में उसने वह गीत गाया - हाऊ मेनी टाइम्स….। उसके बाद कई जगह सामाजिक राजनैतिक कार्यकर्ताओं की सभाओं में यह गीत हमने गाया-सुना है।
यह बॉब डिलन का जादू है। उस घटना के दसेक साल बाद सुमन चट्टोपाध्याय (अब कबीर सुमन) ने इस गीत का बांग्लाकरण किया - कोतो टा पथ पेरुले तबे पथिक बोला जाए? कोतो टा पथ पेरुले पाखी जिरोबे तार डाना? कोतो टा अपचयेर पर मानुष चेना जाए? प्रश्नगुलो सहज आर उत्तर तो जाना। आखिरी वाक्य कि सवाल आसान हैं और जवाब भी हम जानते हैं, - the answer is blowing in the wind – यह चिरंतन दार्शनिक तथ्य है, जिसे ज्ञान-मीमांसा में confirmation bias या पुष्टि पूर्वग्रह कहते हैं। हम सच देखकर भी नहीं देखना चाहते। संगीत के जानकार लोग बतलाते हैं कि बॉब डिलन ने अनोखे प्रयोग किए, हाथ में बेंजो और मुँह में माउथऑर्गन लिए गाना-बजाना की लोक-परंपरा में नए आयाम जोड़े (जिससे कबीर सुमन जैसे अनेकों गायक-गीतकार प्रेरित हुए), पर सचमुच उनके संगीत नहीं, बल्कि उस गुस्से ने जो गीतों में बड़े नाजुक एहसासों के साथ आता है, वह गुस्सा जिसे आज तक हम जताते रहते हैं (दो सेकंड लगते हैं कि आप बटन दबाकर जान लें कि गुजरात राज्य 1990 से आज तक मानव विकास आँकड़ों में ग्यारह नंबर पर है, और केरल पहले नंबर पर है, पर आप नहीं जानेंगे क्योंकि आप नहीं जानना चाहते; तथ्य भरे पड़े हैं कि अमेरिका की साम्राज्यवादी नीतियों से धरती विनाश के कगार पर आ खड़ी है, पर हम यह नहीं जानना चाहते, इसलिए हम नहीं जानेंगे), उसने इस 'साहित्यिक नहीं' गायक-गीतकार को हरमन-प्यारा बना दिया। हाल में ब्रिटिश फिल्म-निर्देशक केन लोच ने अस्सी साल की उम्र में कहा है - आप कैसे इंसान हैं कि आपको गुस्सा न आए? यही गुस्सा था, जब रॉबर्ट ऐलन ज़िमरमान उर्फ बॉब डिलन ने 1965 में टाइम मैगज़ीन को साक्षात्कार देते हुए कहा - टाइम मैगज़ीन के लिए मुझे कुछ नहीं कहना। कौन पढ़ता है टाइम मैगज़ीन? मैं नहीं पढ़ता। एक खास तबके के लोग इसे पढ़ते हैं, जिनको सच्चाइयों से कुछ लेना-देना नहीं है। यह पूछने पर कि सच क्या है, डिलन ने कहा - 'सच यानी सादी तस्वीर। ऐसी तस्वीर जिसमें कोई बेघर बेबस सड़क पर उल्टी कर रहा है, और उसके बगल ने रॉकेफेलर जैसा कोई धनाढ्य अपने काम पर जा रहा है। हर शब्द में एक सच होता है। आप अंग्रेज़ी के 'know' (जानना) शब्द को जानते हैं - के एन ओ डब्ल्यू? छोटा 'k' और बड़ा 'K'। हर कोई मानता है कि वह हर कुछ जानता है। असल में हम कुछ नहीं जानते।' ऐसे गुस्साट डिलन को नोबेल मिलने से हमें लगा कि हमारे सुमन, साहिर, ग़दर जैसे अनगिनत जन-गीतकारों को सम्मानित किया गया - और हम गाते हैं, बेघर बेबस बेदर इंसां तारीक गली से निकलेंगे, वह सुबह कभी तो आएगी। और भी पीछे जा सकते हैं और मान सकते हैं कि खुसरो, बुल्ले शाह और लालन फकीर को सम्मानित किया गया है। यही सच है - डिलन को नोबेल दरअसल जनगीत-परंपरा का सम्मान है। कोई चाहे तो कहता रहे कि यह साहित्य को पुरस्कार नहीं है।
ताज़ा खबर यह है है कि नोबेल समिति की ओर से कई बार संपर्क करने की कोशिशों का डिलन ने कोई जवाब नहीं दिया है। यह लिखते हुए यह खबर आ रही है कि उसने नोबेल पुरस्कार लेने से मना कर दिया है। दस साल पहले स्पेन के राजकुमार द्वारा दिए जाने वाले सम्मान 'प्रिंसिपे दे आस्तूरियास' लेने भी डिलन नहीं पहुँचे थे (हालाँकि डिलन ने शुक्रिया जताते हुए ख़त भेजा था)। यह खबर हमारे जैसों की खुशी बढ़ाती है, जिन्होंने कभी इन बातों पर ध्यान नहीं दिया है कि पुरस्कार किसको मिल रहे हैं, क्यों मिल रहे हैं, जिनके ज़हन में पहली बात यह है कि ज़िंदगी को अपने संघर्षों के साथ जिया जाए, गाया जाए।
यह भी सही है कि डिलन को अपनी आवाज़ का मसीहा मानने वाले अधिकतर लोगों को उनके साठ के दशक के गीत ही पसंद हैं - 'द आन्सर इज़ ब्लोइंग इन द विंड' के अलावा 'टाइम्स दे आर अ'चेंजिंग' – दुनिया बदल रही है - जैसे गीत आज भी खूब गाए जाते हैं। बाद के दशकों में जो गीत डिलन ने लिखे और गाए, उनमें उनकी अपनी दार्शनिक, आध्यात्मिक पड़ताल ज्यादा नज़र आती है। अपने निजी जीवन में भी वे बड़े बदलावों में से गुजरे। जन्म से यहूदी, व्यवहार से अराजक, वे पहले तो ईसाई बन गए, फिर बाद में वह भी छोड़ा और वापस यहूदी जड़ों की ओर लौट आए। पर दिवंगत बर्तानवी मार्क्सवादी समीक्षक माइक मार्कूसी ने 2003 में एक आलेख में लिखा कि दरअसल वक्त के साथ उनके तीखे वैचारिक तेवर में कमी नहीं आई, बल्कि बढ़ोतरी ही दिखती है। माना जाता है कि बीटनिक पीढ़ी के प्रख्यात कवि ऐलन गिन्सबर्ग से साथ लंबे रिश्ते का उन पर असर पड़ा है। गिन्सबर्ग को नोबेल मिलना चाहिए था, अपनी पीढ़ी के बड़े कवियों में वे बेशक शिखर पर हैं। गिन्सबर्ग कोई दस साल बनारस में रहे और भारतीय अध्यात्म से प्रभावित हुए। उनकी 'हाउल' जैसी शुरुआती कविताओं में (भारत आने के पहले) अमेरिका में रंगभेद और जंगखोर सरकार के खिलाफ उग्र आक्रोश दिखता है, पर बाद की कविताओं में उनकी कविताएँ निजी दार्शनिक किस्म की होने लगी थीं। ऐसा माना जाता है कि गिन्सबर्ग डिलन के प्रति मोहित थे, पर डिलन ने उन्हें बड़े साथी या बुज़ुर्ग की तरह माना। डिलन की निर्देशित फिल्म 'रेनाल्डो ऐंड क्लारा' में गिन्सबर्ग ने काल्पनिक चरित्र 'फादर (पिता)' की भूमिका में अभिनय किया है और कई दृश्यों में रेनाल्डो के चरित्र में डिलन उनसे धार्मिक उपदेश लेता है। गिन्सबर्ग भी यहूदी थे, पर फिल्म में दोनों की भूमिका में ईसाइयत है।
जैसा कि अक्सर सफल कलाकारों के साथ होता है, डिलन ने वैचारिक तेवर के गीत गाए हैं, पर उनके बयानों में कोई वैचारिक स्पष्टता नहीं दिखती। अक्सर उन्होंने नासमझी में ग़लत बयान दिए हैं। 1963 में बाईस साल की उम्र में नागरिक अधिकारों के लिए संघर्ष कर रहे संगठन से सम्मान लेते हुए बहुत सारी बकवास करते हुए आखिर में उसने यहाँ तक कह दिया कि मैं ली ओसवाल्ड (राष्ट्रपति केनेडी का हत्यारा) के साथ अपनत्व महसूस करता हूँ। हालाँकि डिलन यह बात अमेरिका की क्यूबा विरोधी नीतियों के संदर्भ में कह रहा था, पर केनेडी की हत्या के कुछ ही हफ्तों बाद ऐसी बात ऐसे माहौल में कहना, जहाँ केनेडी को काले लोगों (अफ्रीकी अमेरिकी) के अधिकारों का मसीहा माना जाता हो, बेवकूफी थी। बाद में एक तरह से माफी माँगते हुए डिलन ने लंबी कविता जैसा ख़त सम्मान के निर्णायकों को भेजा. जिसमें उसने अपने ग़लत बयानों में निहित और बातों को समझाने की कोशिश की। ख़त में यह भी लिखा था कि मैंने ईमानदारी से खुद को सामने रखा और इसके लिए मैं माफी नहीं माँगूँगा। डिलन पर शोध करने वालों को वह भाषण और बाद में लिखा वह ख़त पढ़ना चाहिए। कलाकारों में ऐसा अजीब घनचक्करपन आम बात सी है। डिलन की ही परंपरा से (डिलन से पहले के वूडी गथरी, पीट सीगर आदि) प्रभावित हमारे लोक-गीतकार भूपेन हाजारिका नब्बे के दशक में भारतीय जनता पार्टी की ओर से संसद का चुनाव लड़ रहे थे। हार भी गए। समझना मुश्किल है कि किन बातों से वे एक दक्षिणपंथी दल की ओर से, जो आज निश्चित रूप से मुल्क में तानाशाही लाने की कोशिश में है, चुनाव लड़ने को मजबूर हुए थे।
यह हर कोई जानता है कि डिलन ही नहीं, अमेरिका का हर लोक-संगीत गायक ऊडी गथरी (देखिए – समांतर: अगस्त 2012) से प्रभावित रहा है। पर डिलन पर जिस गायिका का प्रभाव काफी गहरा था, वह है ओडेटा होम्स। डिलन ने खुद कहा है कि उसे फोक यानी लोक-संगीत की ओर सबसे पहले ओडेटा ने ही खींचा। यहाँ तक कि एक रेकॉर्ड (संगीत) की दूकान में 'ओडेटा सिंग्स बैलेड्स ऐंड ब्लूज़' सुनकर डिलन ने अपना इलेक्ट्रिक गिटार छोड़कर (जिसे आधुनिक रॉक म्यूज़िक में इस्तेमाल किया जाता है) पुराने किस्म का एकुस्टिक गिटार ले लिया, जिसमें ज़मीनी आत्मीय एहसास बढ़ता है। डिलन ने ओडेटा के उस रेकॉर्ड के सारे गाने सीखे और बजाए। डिलन से पंद्रह साल बड़ी ओडेटा ने भी कई बार डिलन के गीत गाए।
डिलन में अस्सी के दशक से लगातार जो बदलाव दिखे, जिन्हें अधिकतर लोगों ने प्रतिक्रियाशील माना, ये भी दरअसल एक अराजक मन की बेचैनी की ओर संकेत करते हैं। अपने लेख 'द पॉलिटिक्स ऑफ बॉब डिलन' में मार्कूसी ने लिखा है कि डिलन ने तय कर लिया था कि उसे अपनी पीढ़ी के प्रतिरोध की आवाज़ नहीं बनना है। 'यह नया ऊडी गथरी कुछ और ही बनता जा रहा था - जिससे उसके पूर्व-प्रशंसक परेशान हो रहे थे। डिलन अपने वक्त का सबसे जानामाना विरोध का गीतकार ही नहीं, बल्कि इस धारा के सबसे जानामाना भगौड़ा भी है।' डिलन ने अस्सी की शुरुआत में अपने साक्षात्कारों में बयान भी दिए कि वह लोगों के लिए नहीं लिखना चाहता, बल्कि अपने अंदर की आवाज़ को सामने लाना चाहता है। वह किसी आंदोलन या संगठन के साथ काम नहीं कर सकता। जिस आंदोलन की आवाज़ को उसने 'द टाइम्स दे आर अ-चेंज़िंग' में गाया था, उसी की आलोचना में अब वह एक नए गीत 'माई बैक पेजेस' में कहता है, कि 'लाश बन चुके धर्म-प्रचारक विचारों को नक्शा' मानकर चलते हैं और ज़िंदगी को महज सही या ग़लत दो ही छोरों में देखने का झूठ' फैलाते हैं और वे यह समझना ही नहीं चाहते कि 'प्रचारक बनते ही मैं खुद का ही दुश्मन बन जाता हूँ।' डिलन ने वाम आंदोलनों में तानाशाही और खुदगर्ज़ रवैए से चिढ़कर नए गीत लिखे। एक गीत की पंक्तियाँ हैं - 'मैंने कहा बराबरी, जैसे कि शादी करते हुए कसम लेते हैं; पर तब मैं उम्रदराज़ था, अब युवतर हूँ।' मार्कूसी के अनुसार यह 'द टाइम्स दे आर अ-चेंज़िंग' को नकारता नहीं, बल्कि उसे और तीखे तेवर के साथ कहता है - 'सर्वज्ञानी होने के घमंड से निकालकर आंदोलन को कुछ नहीं जानने की स्वीकृति तक ले आता है।' आज जब हमारे वाम आंदोलनों में, खासकर दलित-प्रसंग में, गहन मंथन की प्रक्रिया जारी है, ये बातें काफी प्रासंगिक हैं।
बहरहाल, 10 दिसंबर को बॉब डिलन को नोबेल पुरस्कार मिलेगा। वह न लेने आए तो उसकी मर्जी। संयोग से 10 दिसंबर अंतर्राष्ट्रीय मानव अधिकार दिवस भी है।

Monday, November 28, 2016

इतिहास की ग़लती नहीं


वे तारीखें तुम्हें याद हैं

जब-जब तवारीख़ को सधा गढ़ा था अपने लिए

वे तारीखें मेरे लिए प्राणवायु थीं

मेरे पखेरु को

जैसे उन्होंने कछुए का खून पिलाया हो


तुमने कविताएँ लिखीं

बर्लिन को याद किया

मैं शैतान की पूजा कर रहा था

मैंने तय कर लिया है कि मौसम मेरी मुट्ठी में बंद होने को है

गोला बारूद तलवार खंजर सब बाँट दिए हैं

पैने दाँत निकाल सड़कों पर उतर आए हैं मेरे रक्तबीज


मैं एक मकसद से धरती पर आया हूँ

इतिहास को गुलाम बनाने

इतिहास मेरा गुलाम है

मेरे नंगे सिर पर तुम्हें सींग नहीं दिखते

यह इतिहास की ग़लती नहीं है।





Do you remember the dates
When I shaped history for myself?
Those dates were lifelines for me
They fed my soul
the magic turtle-blood

You wrote poems on the dates
You remembered Berlin
I worshiped Satan then
I have decided that I will be lord of the times
I have distributed all the explosives and the knives
The monsters from my blooddrops
Showing their fangs are out on the streets

I am here with a purpose
I have come to enslave history
History is my slave
If you cannot see the horns on my bare head
It is not history that is to blame.

Sunday, November 27, 2016

कौन खुदा का बंदा गिरा सकता

मेरे वेश पर क्या नहीं कहा गया
पर मैंने परवाह ही कहाँ की
मेरा नंगा सिर तना रहा
मेरे नाम की हजारों प्रतियाँ ढोते इस महँगे भेष के ऊपर

सलीके से इसे सिला गया
पहले पहना इसे मेरे ख़ैरख़ाहों ने
क्या खबर कि इसके धागों में किसी ने मिला रखा हो ज़हर

फिक्र हुई थी एक पल
कि ज़हर से बचे पर जिन्होंने मेरे पहले पहना उनके बदन से
आ गए हों कुछ जीव सूक्ष्म अगर

फिर अपना सीना आईने में देखा इसके अंदर
कितना तो जिसकी चौड़ाई पर नाज़ है मुझे
खुश था मैं और भूल गया ज़हर वहर
जिसे मिला है शैतान का वर
कौन खुदा का बंदा गिरा सकता उसे!




A lot has been said about what I wear
How do I care
I have held my bare head high
On this disguise carrying my name thousands of times

It was sewn neatly
At first my well-wishers wore it
You know there could be poison in it

And for a moment I did worry
Though saved from poison but from their skin
A few bacteria might have crawled on to me

And then in the mirror I saw my chest inside the dress
Oh how I pride on its size
I felt happy and forgot about the poison
After all I am blessed by the Satan
No God’s creation can hurt me!
 

Friday, November 25, 2016

यह मेरा मौसम है


मुझे जो मिला वह लोगों ने दिया


मैंने जो किया वह लोगों ने किया




मैं महज खिलाड़ी हूँ


ज़मीं आस्मां के बीच पैर पसारता


और और धरती पर पंजे गाड़ता



सोचा नहीं कि मुझमें लोभ है


चाहतें मुझमें कहीं बैठी हैं जाना नहीं 
 



मैं नहीं शैतान का पहला झंडाबरदार


मेरे पीछे दौड़ते आते प्यादे सूबेदार


जिनके ज़हन की नसों में ताज़ा हवा के गंध-सने सपने नहीं हैं


कोई पहली बार नहीं जागे हैं




जुगुप्सा के पोखरों में डूबे लबालब


सुबह की धूप को बेरंग चादरों में क़ैद करते 
 

ये लोग इंतज़ार में थे कि मैं आऊँ


और इमारत दर इमारत मलबे में बदलती


बह चले तूफानी हवा




तुम चीखो प्यार प्यार


मन मार करो मुझसे गुहार


एक-एक फूल बचाने रोओ बार-बार


कोई नहीं सुनेगा - यह मेरा मौसम है 

 

दरवाजे खोलो और स्वागत करो


उनका जो तुम्हारे लिए खंजर लिए खड़े हैं। 



What I have is what people gave me
What I did is what people did

I am merely a player
Stretching my feet between the earth and the sky
Digging my claws deep into the earth

I never thought that I have greed
I never knew that desires dwell within me

I am not the first flagbearer of Satan
The officers and the footsoldiers following me
With no dreams of fresh air in the veins of their brains
Have not risen for the first time

Thoroughly sunk in morbid waters
Catching the morning sun in the confines of colourless sheets
They were waiting for my coming
And for the storm
To leave every building in ruins

Go ahead and cry for love
Plead with me against your wishes
Mourn that you see every flower getting crushed
No one will care – it is my time
Open your doors and welcome
Those who with daggers drawn wait for you.
 

Wednesday, November 23, 2016

समझ लो

तुम्हारी फितरत कि परेशान रहते हो

तिनका-तिनका इकट्ठा करते हो 
 
मेरे खिलाफ साक्ष्य

कि मैंने कहाँ क्या कह दिया

सोचते हो कि एक ही मेंह में 

भीगा धरती पर

एक इंसान कैसे हो सकता है औरों पर इतना बेरहम 
 

खुल कर कहता हूँ

जैसे कोई वेश्या नहीं होती मुहताज

किसी की सहानुभूति की

मुझे क्या फिक्र कि तुम जानते हो

मैंने कब किसके साथ क्या किया

तुम्हारे हर साक्ष्य को

हर साक्षी को

पैरों तले रौंदती गुजरेंगीं मेरी सेनाएँ


वक्त मेरी मुट्ठियों में है

समझ लो जितनी जल्दी समझ सकते हो।


You succumb to your nature

A piece at a time you collect
 

Evidence against me
 

What I said and where
 

You wonder that how a person
 

Feeling the same rain drops on earth
 

could be so insensitive to others

 

I say it openly
 

Like a prostitute does not care
 

For sympathy from others

 

I give a damn that you know
 

Of what I did to whom
 

All your evidence
 

And your witnesses
 

My soldiers will crush under their feet and move on

 

I rule the times
 

You better know it sooner than later. 

Monday, November 21, 2016

खाली-खाली मेरा भी मन



सदियों बाद भरे होंगे पन्ने 
 
जो आज खाली हैं

मौत की गंध वहाँ होगी

मेरी नासिका में जो मौजूद है

शून्य होगा 
 
जिसका दावा मैं अर्द्ध-पद्मासन करते हुए करता हूँ


मेरे प्रेम विहीन जीवन में सहस्र सूर्यों की ऊर्जा है

जो पल भर में गहनतम अंधकार पैदा कर सकती है

दूर ग्रहों की वीरानी से ज्यादा ठंडक उसमें है

इस गहन ठंडक से खेलना मेरा मैथुन है

गरजता उछलता घोर अँधेरे में डूबता हूँ


देखते हुए इन खाली पन्नों को 
 
जिनमें बहुत सारा खून बिखेरा जाना है 
 
भरा जाना है मेरी सेना के खेलों, मेरे अमात्य की चालों से,

एक बार खाली-खाली सा हो जाता मेरा भी मन।

Heart Filled With Emptiness

The pages that look blank today

will be filled centuries later

They will reek of death

That I smell today

They will carry the vacuum

That I claim today while on my casual Yoga postures


My loveless life has energy of thousands of suns

And it can bring the deepest darkness in a moment

It is colder than the solitude of distant planets

I indulge in erotica with this deep darkness

I scream and move with energy sinking in the depths of darkness


As I see these blank pages

That are to be soaked in plenty of blood

And to be filled with the games that my soldiers play, the moves my minister makes

My Heart is filled with emptiness.

Friday, November 18, 2016

चुपचाप अट्टहास





सदियों बाद लोग मेरे बारे में पढ़ेंगे

कुचली गईं प्यार में बँधी हथेलियाँ

जब निकला मेरे होंठों से कोई लफ्ज़

इतिहास-भूगोल और कविता को भी 
 
काली बर्फ से ढँकता

सोची-समझी कवायद था 
 

मेरे होंठों से निकलता हर लफ्ज़

शांत चित्त 
 
बंदूक तलवार उठाए बिना 
 
मैंने कत्ल करवाए


फौज पुलिस नहीं होती तो भी

होता मूर्तिमान 
 
प्रेम का विलोम

हर पल चुपचाप 
 
अट्टहास करता शैतान।


Quietly Laughing Aloud 


People will read of me centuries later

That hands twined in love were crushed

When my lips uttered a word


A word from my mouth

Was a well-thought design

Sealing history and geography, even poetry, 

With black snow.

With a cool mind
 
Without any weapon in hand

I arranged for mayhem


Even if there was no army or police

I would be there

The antonym of love

Quiet forever

Laughing aloud, Satan.

Saturday, November 05, 2016

कथाएँ


रेशे

किसने मुझसे कहा, "हवा, मेरे साथ चलो।
मैं सदियों तक बहता रहा, साथ नहीं चल पाया। 
अचानक दस्तक हुई और वह मेरे पास है।
वह, मैं, मेरी चेतना!
विस्थापित जन हमें चक्रवातों में से उबार लाते हैं। हम एक दूसरे को देखते हैं। 
जानते हैं कि कहीं कोई जड़ नहीं है।

जड़ों को उखाड़ कर जो चले गए हैं, वे चक्रवातों में फँस गए हैं,  
उनसे छुटकारा नहीं।
रेले में बहते हुए हम साथ सफर करते हैं। मैं कहानी लिखने चला हूँ। 
बातें दिमाग में हैं और लिखते हुए शब्दों की अपनी सत्ता हावी हो जाती है 
और कहानी खो जाती है। यह बात भी सदियों पुरानी है। 

बहुतों ने मुझे उम्दा किस्सागो माना। मैं कभी मुस्कराता, कभी गंभीर सुनता रहा। 

झूठ सच बन कर बहता रहा। जड़ें बनीं तो झूठ की बनीं। 

बीच दीवार में एक रेशा लटका हुआ है। धागा नहीं। 
जैसे फूलझाड़ू से निकला कोई रेशा सा है। सिर पर के बालों की तरह लगता है। 
फिर नज़र आता है कि यह एक रेशा नहीं, कम से कम छः सात रेशों का गुत्था है।  
 
वही

एकबार बाईपास हो चुका है। दिन में गिनकर चार सिगरेट पीता हूँ। 
वह आई तो मन में कोई खुशी नहीं थी। यहाँ नाटक की समझ किसी को नहीं।
इसलिए नया चेहरा देखकर चिढ़ हुई थी। अभ्यास और छात्रों की बातें सुनते हुए 
बीच बीच में उसकी ओर देखता, वह एकटक मुझे देख रही थी।

वह मन ही मन आमोदित थी कि मुझे पता ही नहीं 
कि वह मेरे कई जन्मों की साथिन है।
बाद में उसने कहा, "मैं .... ", और तब मुझे याद आया कि वह तो वही है
कौन कह नहीं सकता, पर वही..........
 
हादसा

ताक में किताबें खड़ी हैं। सड़क पर धूल उड़ाती गाड़ियाँ हैं। 
इन पंक्तियों को दुबारा पढ़ता हूँ। अक्षर, शब्द, ध्वनियाँ...........इन्हीं में मैं, वह।
उम्र के साथ खयालों की तीव्रता बढ़ती चली है। शरीर और मन का मिसमैच! 

यह हादसा था। मेरे साथ हादसा हुआ मेरे दोस्त! मैं। यह मेरी उम्र!  
प्रकृति मेरे साथ नहीं और वह खिलखिलाती अपनी जवानी के शिखर पर। 
यह सब मैं सुरभि को नहीं बतला सकता। उसे सब पता रहता है। 
वह तो मेरे हाथ की उँगलियों को देखकर बतला सकती है 
कि मेरे लिखने की गति में जो बदलाव आया है 
वह किस अंदरुनी तूफान की वजह से है। 
मैं सिगरेट पी लूँ। तुम तो नहीं पीओगे, पीओगे क्या?  
यहाँ बीअर ही सेफ लग रही है।
अरे भई, लाइट आफ ही रहने देते। यही आज के इन बिजनेसमेन की प्राब्लम है। 
हमलोग जब कनॉट प्लेस में काफी हाउस में होते थे, सारी सारी रात वहीं बाहर लेट जाते थे। 
टेंट वाला काफी हाउस होता था। नाटक और साहित्य के लोग आया करते थे। 
राकेश, लक्ष्मीनारायण लाल, हर कोई आता था। और वे लोग कुछ नहीं कहते थे, मतलब रेस्तराँ वाले। 
आप सारे सारे दिन बैठे रहो, बीच में जिसका मन हुआ, भूख लगी, दोसा मँगा लिया। 
 
सवाल

डिनर बढ़िया था।
आइसक्रीम खाते हुए तुमने मुझे समझाया कि कायनात कितनी बड़ी है। 
मैं ज़ुबान की पहुँच को माप रहा था 
कि बर्फ और मलाई के बीच सवाल कैसे रखा जाए। 
सवाल यह नहीं था कि तुम ठीक हो या नहीं। 
सवाल कि कायनात की सरहद तक जाती तुम्हारी निगाह में 
मैं कहीं दिखता हूँ या नहीं।                                         


 -(प्रभात खबर, दीपावली विशेषांक, 2016)