Saturday, August 25, 2012

क्वांटम कंप्यूटिंग



क्वांटम कंप्यूटिंग – चमत्कार के इंतज़ार में

('समकालीन जनमत' के जुलाई 2012 अंक में प्रकाशित)

पिछली बार हमने इनफॉर्मेशन टेक्नोलोजी यानी सूचना प्रौद्योगिकी के विज्ञान पर बात की थी। हमने देखा कि ट्रांज़िस्टर के छोटे होते रहने की सीमाएँ हैं। छोटे होते होते ट्रांज़िस्टर अणुओं के स्तर तक पहुँच गए हैं। ऐसी स्थिति में अर्द्धचालकों की भौतिकी बदल जाएगी यानी कि जो नियम इससे बड़े अर्द्धचालकों के लिए लागू होते थे, अब वे लागू नहीं होंगे। जब अरबों खरबों की तादाद में इलेक्ट्रॉन एक ओर से दूसरी ओर जाते हैं तो एक हद तक शास्त्रीय (क्लासिकल) गतिकी यानी न्यूटन के नियमों का इस्तेमाल कर हम उनके गुणधर्मों को समझ सकते हैं। पर जब यह संख्या कम होकर सौ तक आ जाती है, तो क्वांटम गतिकी के नियम ही लागू होंगे। दूसरी समस्या यह है कि सूचना के प्रोसेसिंग की प्रक्रिया में जो बिजली इधर उधर होती है, उससे बहुत सारा ताप निकलता है, और अगर यह सारा ताप एक सूक्ष्म आकार के प्रोसेसर पर केंद्रित रह गया तो वह जल जाएगा। तो क्या मूर का नियम यानी हर दो साल में ट्रांज़िस्टर के आकार में कमी और सूचना की प्रोसेसिंग की गति में दुगुनी बढ़त का नियम अब लागू नहीं होगा? इंटेल कंपनी का दावा है कि वे ऐसे अर्द्धचालक पदार्थों से ट्रांज़िस्टर बनाने में सफल हो गए हैं, जिनका डाइइलेक्ट्रिक नियतांक (dielectric constant) सामान्य से काफी ज्यादा है और इससे ताप निकलने की समस्या कम हुई है। पर तमाम दावों के बावजूद यह बात सच है कि ट्रांज़िस्टर अब और छोटे नहीं हो सकते और कंप्यूटर टेक्नोलोजी में कोई बड़ी तरक्की असंभव है, अगर कंप्यूटिंग का आधार सॉलिड स्टेट भौतिकी और अर्द्धचालकों पर ही निर्भर रहे।

स्पष्ट है कि विकल्प के लिए या तो ऐसे ट्रांज़िस्टर बनाने पड़ेंगे, जो पूरी तरह क्वांटम गतिकी के नियमों पर आधारित हैं या फिर सूचना की प्रोसेसिंग को कोई नया तरीका ईजाद करना पड़ेगा। पहले विकल्प को सिंगल इलेक्ट्रॉन ट्रांज़िस्टर (SET) कहते हैं। सिंगल इसलिए कि इसमें एक-एक इलेक्ट्रॉन के प्रवाह का लेखा जोखा होता है। इतने छोटे आकार की चीज़ बनानी कोई आसान बात नहीं है; इस पैमाने की कारीगरी को नैनो-टेक्नोलोजी कहते हैं। इसके लिए एक अजूबे का इस्तेमाल होता है, जिसे स्कैनिंग टनलिंग माइक्रोस्कोप (STM) कहते हैं। यह एक ऐसी खुर्दबीन या अनुवीक्षण यंत्र है, जिसके जरिए किसी पदार्थ की सतह पर अणुओं-परमाणुओं तक को इच्छानुसार हिलाया-डुलाया जा सकता है। टनल (tunnel-सुरंग) एक विशेष क्वांटम गतिकीय गुण है, जिससे पर्याप्त ऊर्जा के अभाव में भी इलेक्ट्रॉन जैसे कण अवरोधों को पार कर लेते हैं, जैसे कि अवरोध को छेदकर कोई सुरंग बन गई हो। ऐसा क्लासिकल भौतिकी में संभव नहीं है।

STM का इस्तेमाल कर अर्द्धचालक सिलिकान (n-Si) की पतली परत पर सिलिकान-डाइ-ऑक्साइड (SiO2) की परत डालकर, उसके ऊपर विद्युत प्रवाहित कर एक छोटे से खाने (island) में मुक्त इलेक्ट्रॉन इकट्ठे किए जाते हैं। इनको कुचालक टाइटेनियम-डाइ-ऑक्साइड (TiO2) की दीवारों के जरिए बाँध रखा जाता है। यह सब कुछ नैनो पैमाने पर (1 nm= 10-9 m) होता है। इलेक्ट्रॉन जिस खाने में होते हैं, वह 50 nm X 50 nm से भी छोटा होता है। TiO2 की दीवारों के पार जाने के लिए इलेक्ट्रॉन को काफी ऊर्जा की ज़रूरत होती है, पर क्वांटम गतिकीय टनलिंग के जरिए एक एक कर उन्हें दूसरी ओर भेजा जाता है। इलेक्ट्रॉन के प्रवाह से हो रहे विद्युत प्रवाह को मापा जा सकता है और इस तरह कंप्यूटिंग यानी गणना के लिए इसका इस्तेमाल हो सकता है।



चित्र 1 – SET का डिज़ाइन

इस पद्धति में गणना या सूचना के प्रोसेसिंग में आज के सामान्य कंप्यूटर की तुलना में कोई बुनियादी परिवर्त्तन नहीं होता। चूँकि प्रवाहित हो रहे इलेक्ट्रॉन की संख्या लाखों की जगह मात्र दो-चार रह गई है, इसलिए ताप की समस्या का निदान संभव होता है। पर साथ ही दूसरी तकनीकी समस्याएँ बढ़ जाती हैं। इतने छोटे पैमाने पर सही सही माप की परतें बनाना, प्रवाहित हो रही बिजली का सही सही मापन, ऐसी कई दिक्कतों के कारण SET अभी भी एक सफल यंत्र नहीं बन पाया है।

तो इसका हल क्या है? हमारे जीवन काल में इस दिशा में ऐसी एक क्रांति की संभावना है, जो अब तक के मानव इतिहास की सबसे बड़ी क्रांति होगी। कंप्यूटिंग के विभिन्न विकल्पों में सबसे चामत्कारिक संभावनाएँ क्वांटम और डी एन ए कंप्यूटिंग की हैं। इस आलेख में हम क्वांटम कंप्यूटिंग के बारे में संक्षेप में चर्चा करेंगे। SET के संचालन के लिए भी क्वांटम गुणधर्म का इस्तेमाल होता है, पर वह क्वांटम कंप्यूटर बनाने के लिए उपयोगी नहीं है।

आज हम जिस कंप्यूटर का इस्तेमाल करते हैं, उसे क्लासिकल या शास्त्रीय कंप्यूटर कहा जाता है। सूचना सैद्धांतिकी (इन्फॉर्मेशन थीओरी), कंप्यूटर साइंस और क्वांटम भौतिकी के मेल से क्वांटम कंप्यूटर ईजाद हुआ। इसमें ट्रांज़िस्टर में प्रवाहित विद्युत की जगह, अणु-परमाणुओं की अवस्था में अदला-बदली कर सूचना की प्रोसेसिंग की जाती है। चूँकि सामान्य मात्रा में भी पदार्थ में अणुओं की संख्या बहुत बड़ी है (1 ग्राम पानी में 3X1022 अणु), इसलिए अगर क्वांटम कंप्यूटर


चित्र 2 – SET में इलेक्ट्रॉन का source से drain तक जाना। पहले इलेक्ट्रॉन बीच में दिखलाए द्वीप में इकट्ठे होते हैं। दोनों ओर TiO2 के अवरोध टनलिंग के जरिए पार किए जाते हैं। 

सफलता पूर्वक बनाए जा सकें, तो उनमें कल्पनातीत समांतर प्रोसेसिंग की संभावना होगी। वह आज के डुअल (दो) या क्वाड (चार) प्रोसेसरों की तुलना में खरबों गुना अधिक संख्या के प्रोसेसरों का बना यंत्र होगा।

सूचना की प्रोसेसिंग की इकाई 'बिट' है। एक बाइनरी (द्विक) बिट में दो ही तरह की सूचनाएँ, '0' और '1', संभव हैं।
जिस तरह आज के कंप्यूटर में इन दो सूचनाओं को ट्रांज़िस्टर के दो छोरों में वोल्टेज के फर्क का एक नियत मान से कम या ज्यादा होने से दिखलाते हैं, उसी तरह क्वांटम कंप्यूटर में अणु या परमाणु की दो भिन्न अवस्थाओं से भी इन्हें दिखलाया जा सकता है‍। शुरूआती दौर में (नब्बे के दशक में) इसके लिए नाभिकीय 'स्पिन' का इस्तेमाल किया गया। 'स्पिन' को समझने के लिए अक्सर पृथ्वी के दैनिक घूर्णन की तरह कणों के लट्टू जैसे नाचने की कल्पना की जाती है, पर सचमुच ऐसा कुछ नहीं है। यह इलेक्ट्रॉन, प्रोटोन या न्यूट्रॉन जैसे कणों का एक बुनियादी गुणधर्म है, जिससे कण का चुंबकीय स्वरूप निर्धारित होता है, जिसे हम बाहरी विद्युत-चुंबकीय क्षेत्र लगा कर देख सकते हैं। मसलन हम क्लोरोफॉर्म (CHCl3) के अणु को लें। कार्बन के परमाणु की नाभि का स्पिन सामान्यत: ( कार्बन-12 आइसोटोप) शून्य होता है, पर अगर कार्बन-13 आइसोटोप लिया जाए तो स्पिन ½ होता है। चुंबकीय क्षेत्र में कार्बन-13 को और – ½ नाभिकीय स्पिन की दो अलग अवस्थाओं में देखा जा सकता है। ऐसा ही हाइड्रोजन के परमाणु के साथ है। अब हम कार्बन-13 वाले क्लोरोफॉर्म में रासायनिक बंधन में बँधे कार्बन-13 और हाइड्रोजन, इन दोनों परमाणुओं के नाभिकीय स्पिन को समांतर और असमांतर – इन दो स्थितियों में कल्पना करें। यही क्वांटम कंप्यूटिंग के '0' और '1' हैं।

चित्र 3 : कार्बन-13 क्लोरोफॉर्म (13CHCl3) का अणु - पीले रंग के तीर के निशान कार्बन-13 और हाइड्रोजन के नाभिओं के विपरीत 'स्पिन' के प्रतीक हैं।


यानी एक क्लोरोफॉर्म का अणु, जिसका आकार 1nm के पैमाने से भी छोटा है, एक क्वांटम कंप्यूटर बन सकता है। इतना ही नहीं, क्वांटम गतिकी से हमें एक और गुणधर्म का लाभ मिलता है। इसे सुपरपोज़ीशन का सिद्धांत कहते हैं। इसके अनुसार क्वांटम बिट (संक्षेप में क्यूबिट), या अणु की अवस्था, दरअसल '0' और '1' का मिश्रण होती है। अगर हम क्यूबिट को |x> से दर्शाएँ तो |x> = a1 |0>+b1 |1>, यानी a1:b1 के अनुपात में '0' और '1' मिश्रित हैं। अब हम |x> को बदलकर |y> = a2 |0>+b2 |1> कर दें तो कई संभावनाएँ दिखती हैं। जैसे, b2 =0 हो तो इसका मतलब हुआ कि |x> का '0' वाला अंश बदला नहीं, पर '1' वाला अंश बदल कर '0' हो गया। इसका उल्टा भी हो सकता है। यह भी हो सकता है कि b2 = a1; a2= b1 यानी कि '0' और '1' की परस्पर अदला बदली हो गई। तात्पर्य यह कि '0' और '1' में जो सूचनाएँ निहित हैं, उनकी प्रोसेसिंग हम एक साथ या समांतर रूप से कर रहे हैं। यह एक डुअल कोर की तरह है। आज के क्लासिकल कंप्यूटर में यह दो अलग अलग प्रोसेसरों के जरिए ही संभव हो सकता है ('0' के इनपुट को एक और '1' के इनपुट को दूसरे प्रोसेसर से भेजना पड़ेगा)

अगर एक की जगह दो अणु हों, तो चार अवस्थाओं का सुपरपोज़ीशन या मिश्रण होगा। दोनों में से हर अणु को '0' या '1' की स्थिति में तैयार किया जा सकता है। अर्थात अब 2 क्यूबिट का इनपुट होगाः
|x>=|x1x2> = a |00>+b |01>+c|10>+d|11> और यह क्वाड कोर की तरह का कंप्यूटर होगा जहाँ चार तरह की सूचनाओं की समांतर प्रोसेसिंग हो सकेगी। इसी तरह 1023 अणुओं से हम 1023 समांतर प्रोसेसर्स का कंप्यूटर बना सकेंगे।

सूचना की प्रोसेसिंग या गणनाओं के लिए क्वांटम कंप्यूटर के लिए जो कोड या प्रोग्राम (जिसे सॉफ्टवेयर कहते हैं) लिखे जाते हैं, वे अभी के कंप्यूटर सॉफ्टवेयर से बुनियादी तौर पर अलग हैं। क्वांटम गुणधर्मों का लाभ उठाते हुए ऐसे कठिन सवाल बहुत ही कम समय में हल किए जाते हैं, जिनको आज के कंप्यूटर हफ्तों महीनों तक हल नहीं कर पाते। उदाहरण के लिए किसी बहुत बड़ी संख्या के अभाज्य उत्पादक (prime factors) निकालना एक कठिन सवाल है। इसे क्वांटम कंप्यूटर पर हल करने के लिए 'शोर' नामक कंप्यूटर वैज्ञानिक ने तरीका निकाला, जिसे शोर का आलगोरिदम कहते हैं। इसी तरह भारतीय मूल के लव ग्रोवर ने बिखरे हुए आँकड़ों को क्रम में सजाने के लिए ग्रोवर आलगोरिदम लिखा। क्रिप्टोग्राफी या संकेतों को गोपनीय तरीकों से भेजने और उन्हें पढ़ पाने के विज्ञान में भी क्वांटम कंप्यूटिंग के जरिए क्रांतिकारी बदलाव होंगे।

तो क्वांटम कंप्यूटर बाज़ार में उपलब्ध क्यों नहीं? प्रसिद्ध विज्ञान शोध पत्रिका 'नेचर' के 2 जून 2011 के अंक में पहले क्वांटम कंप्यूटर की बिक्री की खबर छपी। कनाडा के ब्रिटिश कोलंबिया प्रांत की कंपनी 'डी वेभ' ने अमेरिका के मेरीलैंड प्रांत की 'लॉकहीड मार्टिन' कंपनी को यह मशीन बेची। लॉकहीड मार्टिन लड़ाकू हवाई जहाजों को बनाने वाली सबसे बड़ी कंपनियों में से है। एकबार फिर हम इस निष्ठुर सच के रूबरू हैं कि वैज्ञानिक और टेक्नोलोजिकल आविष्कारों का लाभ सबसे पहले सामरिक और पूँजीवादी क्षेत्रों को ही मिलता है।

बड़े पैमाने पर क्वांटम कंप्यूटरों के बाज़ार में आने में अभी देर है। अणुओं को इच्छानुसार अवस्थाओं में तैयार करना, पर्याप्त समय तक उन अवस्थाओं में बनाए रखना, सूचना की प्रोसेसिंग के लिए उन्हें इच्छानुसार बदलना और बदली हुई अवस्थाओं को तब तक बनाए रखना जब तक कि वे सही सही दर्ज़ न हो जाएँ, यह सब आसान नहीं है। डी वेभ की मशीन में नायोबियम धातु के अतिचालक गोल चक्रों के जरिए 8 क्यूबिट का कंप्यूटर बनाया गया है। अतिचालकता के लिए शून्य से बहुत कम तापमान की ज़रूरत होती है। उनका दावा है कि वे 128 क्यूबिट का कंप्यूटर भी बना चुके हैं।

संभवतः पहले बाज़ार में आने वाले क्वांटम कंप्यूटर पूरी तरह से 'क्वांटम' स्वरूप के न होंगे। वे आज के क्लासिकल कंप्यूटरों और कुछ हद तक क्वांटम पुर्जों के मिले जुले रूप में ही सामने आएँगे। यही बात डी एन ए कंप्यूटरों के बारे में भी सही है। इस पर विस्तार से चर्चा अगले किसी अंक में होगी।

Sunday, August 19, 2012

वूडी गथरी - लोकगायक; लोकनायक


वूडी गथरी - लोकगायक; लोकनायक (1912-1967)

(समयांतर के ताज़ा अंक में प्रकाशित)


भारतीय जनांदोलनों में क्रांतिकारी गीतों की जगह महत्त्व पूर्ण है। राष्ट्रीय स्वाधीनता की लड़ाई से लेकर आज तक सभी वाम आंदोलनों तक सास्कृतिक मोर्चे बुलंद रहे हैं। इन गीतों में लोक-संगीत का समावेश रहा है। लोक-संगीत की हमारी अपनी परंपरा से अलग पाश्चात्य से प्रेरित गीतों का इस्तेमाल बहुतायत से हुआ है। इपटा (इंडियन पीपल्स थिएटर) के स्वर्णिम दिनों से लेकर और सलिल चौधरी, भूपेन हाजारिका, कैलकाटा यूथ कोयर और पिछले दो दशकों में कबीर सुमन आदि प्रसिद्ध गायकों और संगीतकारों के अलावा जन नाट्य मंच, जन संस्कृति मोर्चा, प्रतिध्वनि आदि अनेकों संगठनों ने गली मुहल्लों में ऐसे जनगीतों को गाया है। यहाँ तक कि कई जनगीत तो सरकारी कार्यक्रमों में भी गाए जाते रहे हैं। जनगीतों में आधुनिक पढ़े लिखे सांस्कृतिक-राजनैतिक कार्यकर्त्ता और लोक संस्कृति में पुल बनाने की प्रेरणा के जो स्रोत पश्चिमी मुल्कों से आए, उनमें एक प्रमुख नाम वूडी गथरी का है, जिनकी जन्मशती इस साल मनाई जा रही है।

(विकीपीडिया से साभार)
सैंकड़ों राजनैतिक, लोकगीतों और बालगीतों के रचयिता और गायक, ऊडरो विल्सन "वूडी" गथरी का जन्म 14 जुलाई 1912 को संयुक्त राज्य अमेरिका के ओकलाहोमा प्रांत के ओकेमा नामक एक छोटे शहर में हुआ था। समाजवादी आदर्शों के प्रति और फासीवाद के खिलाफ उनकी प्रतिबद्धता जीवन भर रही। उन्होंने अपने गिटार पर यह नारा लिखा हुआ था - दिस मशीन किल्स फासिस्ट्स (यह यंत्र फासीवादियों का खात्मा करता है)। उनका सबसे लोकप्रिय गीत (स्वरचित) है 'दिस लैंड इज़ योर लैंड' -

THIS LAND IS YOUR LAND 

This land is your land, this land is my land
From California, to the New York Island
From the redwood forest, to the gulf stream waters
This land was made for you and me

As I was walking a ribbon of highway
I saw above me an endless skyway
I saw below me a golden valley
This land was made for you and me


I've roamed and rambled and I've followed my footsteps
To the sparkling sands of her diamond deserts
And all around me a voice was sounding
This land was made for you and me


The sun comes shining as I was strolling
The wheat fields waving and the dust clouds rolling
The fog was lifting a voice come chanting
This land was made for you and me


In the squares of the city - In the shadow of the steeple
Near the relief office - I see my people
And some are grumblin' and some are wonderin'
If this land's still made for you and me.


As I was walkin'  -  I saw a sign there
And that sign said - no tress passin'
But on the other side  .... it didn't say nothin!
Now that side was made for you and me! 
 
 यह ज़मीं तुम्हारी है 
 
 यह ज़मीं है तुम्हारी, यह ज़मीं है हमारी
कैलिफोर्निया से न्यू यॉर्क आइलैंड तक सारी
रेडवुड फारेस्ट्स से गल्फ स्ट्रीम वाटर्स तक 
यह ज़मीं थी तुम्हारी हमारी

मैं जब था राजपथों पर चल रहा
देखा ऊपर आकाशपथ अनंत फैला 
नीचे देखी सोने की घाटी थी पसरी
यह ज़मीं थी तुम्हारी हमारी

मैं चलता रहा हूँ राहों पर घुमक्कड़ बंजारा 
सुनहरे रेगिस्तानों में देखा मैंने रेत का लश्कारा
मेरे चारों ओर थी इक आवाज़ गूँज रही
यह ज़मीं थी तुम्हारी हमारी

जब मैं था घूम रहा सूरज चमकता आया 
गेहूँ के खेत थे नाच रहे धूल का गुब्बार मँडराया
कुहासा हटा और धुन गूँजी यह प्यारी
यह ज़मीं थी तुम्हारी हमारी

शहर के चौक में और मीनार के साए 
राहत आफिसों के दर हमारे लोग हैं खड़े
किसी को नाराज़गी और कोई सोच में भारी
सचमुच क्या ज़मीं है तुम्हारी हमारी! 
 
चलते हुए मैंने देखा एक साइन वहीं
लिखा था उसमें - यह आम रास्ता नहीं
पर दूसरी साइड कहीं कुछ लिखा था ना री
वही साइड थी तुम्हारी हमारी!


इस गीत का भारतीयकरण हुआ है। यह बीसवीं सदी के मध्य में अमेरिका में एक राष्ट्रीय गीत की तरह आम लोगों में गाया जाता था।
अमेरिका के सभी प्रसिद्ध गायकों पर, खास तौर पर जिन्होंने लोक परंपराओं को किसी हद तक अपनाया है, वूडी गथरी का अमिट प्रभाव रहा है। इनमें पीट सीगर, जोन बाएज़, बाब डिलन आदि प्रमुख हैं। बाब डिलन का प्रसिद्ध गीत 'हाऊ मेनी रोड्स मस्ट अ मैन वाक डाउन... द आनसर इज़ ब्लोइंग इन द विंड' इसी परंपरा में गाया गया गीत है। इस गीत को भी एकाधिक भारतीय भाषाओं में गाया गया है।
वूडी गथरी सही अर्थों में जन गायक थे। घुमंतू कामगारों के साथ निकल पड़े, जैसे हम में से कई सपनों में निकलते हैं, पर सचमुच नहीं कर पाते। वूडी वंचितों के साथ निकलकर ओकलाहोमा से कैलिफोर्निया गए। वहाँ ग़रीब किसान मज़दूरों के साथ रहकर ब्लूज़ संगीत सीखा और आजीवन ग़रीबों की व्यथा अपने गीतों में कहते रहे। आम लोगों के अधिकारों की लड़ाई, उनकी बदकिस्मती, सामाजिक गैरबराबरी, सरकार की बदइंतज़ामी, यही मुख्यतः उनके गीतों के सरोकार थे। उस ज़माने में ब्लूज़ (जैज़ संगीत का मूल स्रोत) को काले लोगों (अफ्रीकी मूल के) का संगीत माना जाता था। उच्च वर्ग के भद्र गोरे लोग इसे निकृष्ट संगीत मानते थे। सदी के उत्तरार्द्ध में यही अमेरिकन संगीत का प्रतिनिधि रूप माना जाने लगा।
चौथे दशक के अंतिम वर्षों में अमेरिकी अर्थ व्यवस्था में भयानक मंदी का दौर था (इसका जिक्र जॉन स्टाइनबेक के उपन्यासों में भी आता है)। देश के दक्षिण पश्चिमी इलाकों में अकाल जैसी परिस्थिति थी। इस पूरे क्षेत्र को 'डस्ट बोल (धूल की बाटी)' कहा जाता था। वूडी गथरी ने इस क्षेत्र के ग़रीब किसान मज़दूरों के साथ लंबा समय बिताया। फटेहाल, कभी खाने को मिला कभी नहीं, ऐसी हालत में अपने फासीवाद विरोधी नारा वाले गिटार को लेकर चोरी-छिपे खेतों में घुस जाते। खतरा मोलते हुए मजूरों को शोषक मालिकों के खिलाफ गीत सुनाते। कई बार मालिकों के गुंडों के हाथ मार पड़ी, गिटार तोड़ दिया गया, पर वे रुके नहीं। बाद में कम्युनिस्ट पार्टी के सदस्यों के साथ मिलकर वे काम करते रहे।
बचपन से ही वूडी गथरी ने कठिन परिस्थितियों में जीवन बिताया। कभी भी स्वस्थ पारिवारिक जीवन न मिला। उसके पिता डेमोक्रेटिक पार्टी के सक्रिय कार्यकर्त्ता थे। पर वे नस्लवादी भी थे। वूडी ने बचपन से ही राजनैतिक पाठ पढ़े। उनका रुख विरोध की राजनीति और बराबरी के समाज की ओर ही रहा। माँ 'हंटिंग्टन' रोग से ग्रस्त थीं। इस रोग में नसें क्रमशः कमज़ोर होती जाती हैं और आखिर में मानसिक विक्षिप्तता की स्थिति हो जाती है। जब वूडी की उम्र 14 साल की थी, तो उसकी माँ को मानसिक रोगियों के अस्पताल में ले जाया गया। पिता की मृत्यु पानी में डूबने से हुई। स्वयं वूडी की मौत 1967 में हंटिंग्टन रोग से ही और विक्षिप्तता की स्थिति में हुई।
वूडी की किशोरावस्था ग़रीबी में बीती। कभी कभार भीख भी माँगनी पड़ी। रहने सोने की भी ढंग की जगह न थी। उन्हीं दिनों एक अफ्रीकी-अमेरिकी लड़के 'जार्ज' से उसकी मुलाकात हुई, जो बूटपालिश की दूकान पर हार्मोनिका (माउथ आर्गन) बजाकर ब्लूज़ संगीत सुनाया करता था। वूडी ने भी अपनी हार्मोनिका खरीद ली और अपने बचपन के साथी जॉन उड्स से इसे बजाना सीखा।
ग़रीबी के हालात में भी वूडी किताबें पढ़ने के शौकीन थे। तरह तरह के विषयों पर पढ़ते रहने से सामाजिक राजनैतिक जागरुकता मिली। युवावस्था के आरंभ में मनोविज्ञान पर कुछ लिखा भी, जो एक पुस्तकालय में रखा गया था। पर बाद में वह लेखन खो गया।
वूडी का गृहस्थ जीवन भी अच्छा नहीं रहा। पहली शादी से जन्मे तीनों बच्चे जल्दी मर गए। फिर पत्नी को टेक्सास में छोड़कर वे दुबारा कौलिफोर्निया आ गए। एक जनवादी प्रवृत्ति के व्यक्ति के रेडियो स्टेशन में काम करते हुए वूडी गथरी ने विरोध के गीत लिखने और गाने शुरू किए। इन्हीं गीतों को बाद में 'डस्ट बोल बैलड्स' नाम से ख्याति मिली। उनकी लोकप्रियता इतनी थी कि चाहते तो व्यवसायिक तौर पर गाकर खूब पैसे कमा सकते, आराम की ज़िंदगी बिता सकते, यश भी फैलता। पर ग़रीबी और मुफलिसी पर गाते हुए ऐश की ज़िंदगी बिताना उनकी फितरत न थी। सचेत रूप से ही आराम और व्यवसायिकता को उन्होंने नकारा। उनका कहना था, “लोगों से संबंध टूट जाने से बदतर जीवन में और क्या हो सकता है?”
उन्हीं दिनों एड राबिन नामक व्यक्ति ने उनका परिचय दक्षिणी कैलिफोर्निया के समाजवादियों और साम्यवादियों से करवाया। उसकी मदद से ही वूडी ने कई वर्षों तक सफल जनगीतकार का जीवन जिया। कुछ समय के लिए पत्रकारिता भी की। 1939-40 में 'द डेली वर्कर' नामक कम्युनिस्ट पत्रिका के लिए 'वूडी से'ज़' शीर्षक से 174 स्तंभ लिखे।
1940 में वूडी न्यू यार्क शहर में आ गए और पूर्वी राज्यों में काम करने लग गए। न्यू यार्क के वामपंथी संगीतकारों में उन्हें ओकलाहोमा काऊबॉय कहा जाता था। इसी दौरान उन्होंने देशभक्ति के प्रचलित गीत 'गॉड ब्लेस अमेरिका' से चिढ़ते हुए अपना विश्व प्रसिद्ध गीत 'दिस लैंड इज़ योर लैंड' लिखा। इस गीत में एक ओर तो महान अमेरिकी कवि वाल्ट ह्विटमैन की कविता जैसी उन्मुक्तता है, दूसरी ओर लय और प्रगीतात्मक सौंदर्य भी है। इसकी पांडुलिपि पर हस्ताक्षर करते हुए उन्होंने लिखाः "ऑल यू कैन राइट इज़ ह्वाट यू कैन सी (हमें वही लिखना चाहिए जो हम जीते हैं)”
मार्च 1940 में ग़रीब किसानों कि लिए चंदा इकट्ठा करने के लिए बुलाई एक सभा में उनकी मुलाकात प्रसिद्ध लोक गायक पीट सीगर से हुई। और दोनों में गहरी दोस्ती हो गई। दोनों ने मिलकर 'ऐलमनक सिंगर्स' नामक गायक संगठन बनाया।
हालाँकि न्यू यार्क में रहते हुए उनकी आर्थिक स्थिति सुधरी, पर अपने काम से असंतुष्ट होकर उन्होंने काम छोड़ दिया और वापस कैलिफोर्निया चले गए। वहाँ रहते हुए एक फिल्म के लिए काम किया और बाद में एक सरकारी प्रोजेक्ट पर काम करते हुए कोलंबिया नदी ओर उसके पास की घाटी के सौंदर्य पर उन्होंने 26 गीत लिखे। तब तक देश भर में उनकी ख्याति एक लोक (और जनपक्षधर) गीतकार के रूप में फैल चुकी थी। इसके बाद वे कभी न्यू यार्क तो कभी कैलिफोर्निया दूसरे इलाकों में घुमक्कड़ी करते रहे।
दूसरे विश्व युद्ध के दौरान वूडी को अनिच्छापूर्वक सेना के लिए भी काम करना पड़ा। युद्ध की समाप्ति पर उसने दुबारा शादी की और बच्चों के लिए कई गीत लिखे। बच्चों के लिए तैयार किया गया उनका ऐल्बम 'सांग्स टू ग्रो ऑन फॉर मदर ऐंड चाइल्ड' के गीतों में ध्वनियों का अभूतपूर्व खेल है, जो आज तक बहुत पसंद किया जाता है।
वूडी गथरी ने तीन शादियाँ कीं। उनका बेटा आर्लो गथरी उन्हीं की तरह राजनैतिक और लोकगीतों का प्रमुख गायक बना। आर्लो का गीत 'यू कैन गेट एनीथिंग यू वांट, इन एलिसे'स रेस्तराँ' बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध में सबसे प्रसिद्ध अमेरिकन लाकगीतों में माना जाता है। इस गीत में अमेरिकन पुलिस, फौज और जंगपरस्त व्यवस्था का जम कर मजाक उड़ाया गया है। वूडी की पोती सेरा ली गथरी भी प्रख्यात संगीतकार है।
1950 तक उनका स्वास्थ्य काफी बिगड़ गया और पूरी तरह अस्पताल में दाखिल होने के पहले वे कैलिफोर्निया में अपनी तीसरी पत्नी के साथ एक परित्यक्त बस में रहते थे। आखिरी वर्षों में जब उनको न्यू यार्क शहर के ब्रूकलिन अस्पताल में रखा गया, परवर्त्ती समय के विश्वविख्यात और उन दिनों के उभरते गीतकार और गायक बॉब डिलन उनसे नियमित रूप से मिलने आते। जैसे जैसे बीमारी बढ़ती गई, डिलन के प्रति भी उनका व्यवहार बिगड़ता गया। उन दिनों उनकी बीमारी (हंटिंग्टन रोग)के बारे में अधिक जानकारी उपलब्ध न थी। उनकी मौत से इस बीमारी पर जागरुकता फैली और राष्ट्रव्यापी अभियान भी चला।
उनकी मृत्यु के बाद जनवरी 1968 में न्यू यॉर्क शहर के प्रसिद्ध कार्नेगी हाल (जहाँ दुनिया के सबसे नामी संगीतकारों के कार्यक्रम होते हैं) में उनकी स्मृति में और उनके प्रति श्रद्धा प्रकट करते हुए बॉब डिलन, जूडी कॉलिन्स और रिची हेवन्स आदि उन दिनों के सबसे जाने माने गायकों ने एक कार्यक्रम किया।
1988 में उनको रॉक ऐंड रोल हॉल ऑफ फेम में शामिल किया गया - यह किसी भी आधुनिक संगीतकार के लिए बहुत बड़ा सम्मान माना जाता है। वहीं एक संग्रहालय भी है, जहाँ के अमेरिकन म्युज़िक मास्टर्स सीरीज़ में वूडी गथरी को 1 सितंबर 1996 में शामिल किया गया।
वूडी गथरी मुख्यतः जीवनोन्मुखी गीतकार थे। उनके अधिकतर गीत ग़रीब किसान मजूरों के जीवन के कटु अनुभवों पर आधारित थे, पर वे संघर्ष की प्रेरणा से भरे होते थे। 29 जनवरी 1948 को कौलिफोर्निया के लोस गातोस दर्रे के पास एक हवाई दुर्घटना चालकों सहित सभी यात्री मर गए। यात्री मेक्सिको से आए अवैध ग़रीब आप्रवासी थे, जो फलों के बागों में मजूरी करने आते थे। काम खत्म होने पर उन्हें पकड़ कर सीमा पर छोड़ने ले जाया जा रहा था। अखबारों में और रेडिओ पर सभी मृत अमेरिकी चालकों के नाम बतलाए गए, पर मृत आप्रवासियों को महज "डीपोर्टीज़ (निष्कासित)" कहा गया था। एक बड़ी कब्र खोदकर उन सत्ताईस मजूरों को दफनाया गया जिनमें से बाद में सिर्फ ग्यारह को पहचाना गया था। संचार माध्यमों और राष्ट्र की भूमिका के खिलाफ वूडी ने तब यह गीत लिखा था। यह गीत दुनिया के उन तमाम मज़दूरों के बलिदान की याद दिलाता है, जिनकी इतिहास के पन्नों में कोई पहचान नहीं है



The crops are all in and the peaches are rott'ning,
The oranges piled in their creosote dumps;
They're flying 'em back to the Mexican border
To pay all their money to wade back again



Goodbye to my Juan, goodbye, Rosalita,
Adios mis amigos, Jesus y Maria;
You won't have your names when you ride the big airplane,
All they will call you will be "deportees"



My father's own father, he waded that river,
They took all the money he made in his life;
My brothers and sisters come working the fruit trees,
And they rode the truck till they took down and died.



Some of us are illegal, and some are not wanted,
Our work contract's out and we have to move on;
Six hundred miles to that Mexican border,
They chase us like outlaws, like rustlers, like thieves.



We died in your hills, we died in your deserts,
We died in your valleys and died on your plains.
We died 'neath your trees and we died in your bushes,
Both sides of the river, we died just the same.



The sky plane caught fire over Los Gatos Canyon,
A fireball of lightning, and shook all our hills,
Who are all these friends, all scattered like dry leaves? 
The radio says, "They are just deportees"

Is this the best way we can grow our big orchards?
Is this the best way we can grow our good fruit?
To fall like dry leaves to rot on my topsoil
And be called by no name except "deportees"?

लोस गाटोस में हवाई दुर्घटना ("निष्कासित”)

फसल उग गई है और आड़ू सड़ रहे हैं
दवा के टैंकों में संतरों के ढेर लगे हैं
कामगारों को उड़ाकर मेक्सिकन सीमा छोड़ने ले जा रहे हैं
ताकि वे फिर अपना पैसा लुटाकर नदी पार करें

विदा मेरे हुआन, विदा रोज़ालीता
विदा मेरे दोस्तो, हेसुस और मारीआ;
हवाई जहाज में तुम्हारे ये नाम न होंगे,
तुम्हें पुकारा जाएगा बस "निष्कासित"

मेरे पिता का पिता, वह भी नदी पार कर आया,
सारे पैसे उसके लुट गए, जो भी वह कमाया;
मेरे भाई और बहनें, फलों के बागीचे में काम को आए
वे ट्रक पर ही जीते रहे जब तक कि वे मर नहीं गए

हममें से कुछ अवैध हैं, कुछ हैं अनचाहे,
हमारा ठेका खत्म हुआ, कहीं और काम ढूँढना है;
मेक्सिकन सीमा तक छह सौ मील,
हमें अपराधियों, चोर डकैतों सा भगाते हैं।

तुम्हारे पहाड़ों पर मरे हम, तुम्हारे मरुथलों में मरे हम,
तुम्हारी घाटियों में मरे हम, तुम्हारे मैदानों में मरे हम।
तुम्हारे पेड़ों तले मरे हम और तुम्हारी झाड़ियों में मरे हम,
नदी के इस पार या उस पार, दोनों ओर एक से मरे हम।

लोस गातोस दर्रे पर हवाई जहाज में आग लगी,
आग का बबूला था, सारी चट्टानें हिल उठीं,
कौन हैं ये दोस्त, सूखे पत्तों से बिखरे जो?
रेडिओ का कहना है, “वही निष्कासित सभी"

बड़े बागों का क्या यही बढ़िया तरीका है?
अच्छा फल उगाने का क्या यही बढ़िया तरीका है?
कि लोग सूखे पत्तों से गिरें, धरती की सतह पर सड़ें
और कि उनका कोई नाम न हो, सिवाय "निष्कासित"?

गथरी के संगीत का सिर्फ अमेरिकी ही नहीं, बल्कि विश्व भर के जनोन्मुखी लोक संगीत पर गहरा प्रभाव पड़ा। साठ के दशक में अमेरिका में यह एक पूरा सांस्कृतिक आंदोलन बनकर उभरा। गीत लिखने पर वूडी गथरी का एक वक्तव्य है, जिसका सारांश इस तरह है - मुझे ऐसे गीत से परहेज है, जो हमारा आत्म-विश्वास कम करता है। मैं जीवन के आखिरी क्षणों तक इस तरह के गीतों के खिलाफ लड़ता रहूँगा। मैं ऐसे गीत गाना चाहता हूँ जो हमें आत्म गौरव की ओर ले जाते हों, जो हमें बतलाते हैं कि यह दुनिया हमारी है, और किसी भी नस्ल या जाति के व्यक्ति को इसके लिए एक सा संघर्ष करना है।
वूडी गथरी को याद करते हुए आज भी अमेरिका के सभी लोक गायक ओकेमा में जुलाई के दूसरे हफ्ते इकट्ठे होते हैं। 'वूडी गथरी फाउंडेशन' नामक संस्था द्वारा मनाए इस 'वूडी गथरी फोक फेस्टिवल' उत्सव में दुनिया भर से संगीतप्रेमी और राजनैतिक संस्कृति कर्मी हिस्सा लेने आते हैं।
उनकी मृत्यु के बाद उनके गीतों के कॉपीराइट को लेकर कई विवाद चले। 1940 के शुरूआती वर्षों में अपने एक ऐल्बम में गथरी ने यह कॉपीराइट संदेश लिखाः "यू एस कॉपीराइट मुहर संख्या154085 के द्वारा यह गीत 28 वर्षों तक के लिए कॉपीराइट किया गया है। और अगर किसी को बिने अनुमति इसे गाते हुए पकड़ा गया तो उसे हमारा अभिन्न्न मित्र माना जाएगा, क्योंकि हमें इससे कोई फर्क नहीं पड़ता। इसे छापो, लिखो, गाओ, इसे गाते हुए नाचो, शोर मचाओ। हमने इसे लिखा, हम यही करना चाहते थे।" "------------------------------------------------------------------------


(विकीपीडिया से साभार) यह चित्र 1946 में प्रकाशित वूडी गथरी के गीतों के संग्रह का है, जिसमें उनका उन दिनों का पता (मर्मेड एविनिउ) है और साथ ही उनका एक फासीवाद विरोधी नारा भी है।