Thursday, May 22, 2014

ज़मीं पर ही खड़ा हूँ


रद उड़ानें
उनकी तरफ उड़ानें बरसों पहले रद हो गई हैं।

युवा कवि जो कापीराइटर बन गया,
अर्थशास्त्री जो एम एन सी का सी ई ओ है, 
सरकारी गलियारों के वरिष्ठ कवि, समीक्षक, वैज्ञानिक, सबकी ओर
मेरी उड़ानें पटरी से ऊपर उठकर फिर उतर आती हैं।

यमुना पार बसे दोस्तों में एक के पास मेरा दिल है
उधर उड़ने से रोकता हूँ खुद को बार बार
वर्षों पहले रद हो चुकीं जो उड़ानें
उन्हें दुबारा उड़ने पर खुद ही खींच उतारता हूँ

हालाँकि सब के साथ खुद को भी लगता है कि
ज़मीं पर ही खड़ा हूँ हर क्षण।



(प्रतिलिपि 2009; 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' (वाणी - 2012) संग्रह में संकलित)

1 comment: