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हा, हा, भारत दुर्दशा देखी न जाई!

पुरानी ही सही, कुछ बातें अद्भुत ही होती हैं।

चेतन ने गाँठ या गाँठों पर यह लिंक भेजी है। रमण बतलाएगा कि लिंक भेजा जाता है या भेजी। मेरे भेजे में फिलहाल गाँठ पड़ी हुई है।


शुक्र है कि यह गाँठ ऐसी नहीं है, जैसी ये है :

देखिये जी, कलाकार माने क्या यह होता है कि वह हरिश्चद्र होते हैं या आम आदमी से ज्यादा अधिकार उनके होते हैं? आप सारी अपने मन माफिक हुकूमतों को गिना सकते हैं जहां सुख चैन है - किसी के साथ कोई अन्याय नहीं होता.

या जैसा कि (साभार: युवा मित्र प्रणव) चंदन मित्रा के भेजे में है: बंदा किसी दक्षिणपंथी दल का नेता नहीं है, अंग्रेजी पायनीयर अखबार का संपादक है। जैसा कि हम देखेंगे, धर्म निरपेक्षता से लबालब भरा हुआ है। भाषा का संस्कार देखें:

The disinformation machinery of the Indian Left is probably more ruthlessly efficient than anything wartime Nazi propagandist Goebbles could have dreamed of. The effortless ease with which they disseminate half-truths and thereafter construct gigantic myths around these is something to be marvelled at. Despite their disdain for all things Indian, such as our age-old epics, they have picked up significant lessons from the Ashwathama story and are busy putting it into practice virtually every day. That they diabolically employ sympathetic TV channels for multiplier effect besides infiltrating the English-language print medium through the JNU route adds to the efficacy of their political message....

But there is a larger issue that goes beyond the arrest of an art student, vandalisation of movie halls screening Deepa Mehta's films (which are gigantic flops anyway) or the supposed persecution of Hussain. It is disturbing that the vocal Left-liberal media manipulators have succeeded in bestowing such people iconic status, which in turn results in the proliferation of perverted art. Hindu gods and goddesses, age-old social customs and other things revered by most Indians have become targets of vilification and desecration. The aim is to make a mockery of the Hindu social structure, Hindu systems of worship and systematically erode the foundations of the Hindu faith. To put a veneer of secularism on this objective, Jesus Christ is periodically dragged in as a smokescreen to hide the true purpose. Left-wing plotters assume that the usually law-abiding Christian community will not raise Cain, be it the staging of the controversial 'Jesus Christ Superstar' or scandalous portrayals in works of art by Vadodara students. Interestingly, the Left-liberals never put forward the "right to creativity" argument over depiction of Islamic motifs. Would somebody at Vadodara dare paint a likeness of the Prophet? Even during the latest controversy deafening silence was maintained on the issue of the Danish cartoons that, rightly, outraged Muslim opinion throughout the world.

Is there a way in which this conspiracy to blaspheme the Hindu faith can be countered? I believe there is a pressing need to enact a stern law against blasphemy in India that penalises all efforts to disparage religion and religious icons, irrespective of faith. Nobody, not even the tallest intellectual or celebrated artist, has the right to purposely hurt anybody's religious sentiment by exhibiting nude or copulating gods. None stops them from painting voluptuous women or male hunks in various disagreeable forms and enough models are available to serve their purpose. But, for God's sake, don't use our gods to satiate your intellectual perversions.

कइओं को फिकर होगी कि मैं ऐसा दक्षिणपंथी माल क्यों पसोर रहा हूँ| इसलिए कि जिनकी गाँठें खुलने की संभावना है, वे पढ़ें और विलाप करें - हा, हा, भारत दुर्दशा देखी न जाई! या सिकंदर सा कहें: सच सेल्यूकस! विचित्र यह देश!

Comments

लाल्टू जी,

उक्त अनुच्छेद के लेखक को पता नहीं इतना निराशा क्यों घेर रखी है। जब सोवियत प्रोपेगैन्डा मशीनरी अन्तत: बुरी तरह फेल हो सकती है, तो भारतीय कमीनिस्ट कहाँ लगते हैं? इनका जो कुछ है वह मृत सोवियत-संघ का ही तो है।
वाह! सार्थक नाम!
ऐसा सुंदर अनुनाद फिर मिलना मुश्किल है|
तकलीफ यह कि नाम का अर्थ कितनों को पता होगा!
Ashish said…
ईशनिंदा को हमारे मूलभूत अधिकारों में शामिल कर लिया जाना चाहिए। धर्म का अनुसरण करने की पूरी आज़ादी के साथ मज़हब की फजीहत करने का भी पूरा हक़ होना चाहिए। हाँ जो इसे सहन नहीं कर सकते, ऐसी संवेदनशील आत्माओं को सरकार की ओर से विशेष सुरक्षा प्रदान करनी चाहिए। ऐसे लोगों को भारत की जेलों में पूरा संरक्षण देना चाहिए। चंद्र को नहीं चंदन को पुलिस प्रोटेक्शन की अधिक आवश्यकता है।
इस सब के बावजूद यह कहा जा सकता है कि वदोदरा के उस छात्र ने ईशनिंदा के मकसद से वे तस्वीरें नहीं बनाईं।

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