Skip to main content

मरने से पहले जो पचास फिल्में जरुर देखनी हैं

मरने से पहले जो पचास फिल्में जरुर देखनी हैं - रविवार की रात टी वी पर यह प्रोग्राम था|
तकरीबन आधी मैंने देखी हैं| शुकर है कि चयनकर्त्ताओं से मैं पूरी तरह सहमत नहीं हूँ, नहीं तो चैन से न मर पाने की चिंता होती|

मैंने जो देखी हुईं थीं, उनमें एक दो को छोड़ बाकी सारी नब्बे से पहले की हैं| चूँकि चयनकर्त्ता आलोचक ब्रिटेन और अमरीका के थे, इसलिए ज्यादातर फिल्में पश्चिम की थीं|
सारी याद नहीं, इसलिए नेट से ढूँढ कर सूची निकाली है:
1 Apocalypse Now 2 The Apartment 3 City of God 4 Chinatown 5 Sexy Beast 6 2001: A Space Odyssey 7 North by Northwest 8 A Bout de Souffle 9 Donnie Darko 10 Manhattan 11 Alien 12 Lost in Translation 13 The Shawshank Redemption 14 Lagaan: Once Upon A Time in India 15 Pulp Fiction 16 Touch of Evil 17 Walkabout 18 Black Narcissus 19 Boyzn the Hood 20 The Player 21 Come and See 22 Heavenly Creatures 23 A Night at the Opera 2 4 Erin Brockovich 25 Trainspotting 26 The Breakfast Club 27 Hero 28 Fanny and Alexander 29 Pink Flamingos 30 All About Eve 31 Scarface 32 Terminator 2 33 Three Colours: Blue 34 The Royal Tenen-baums 35 The Ladykillers 36 Fight Club 37 The Searchers 38 Mulholland Drive 39 The Ipcress File 40 The King of Comedy 41 Manhunter 42 Dawn of the Dead 43 Princess Mononoke 44 Raising Arizona 45 Cabaret 46 This Sporting Life 47 Brazil 48 Aguirre: The Wrath of God 49 Secrets and Lies 50 Badlands.


कमाल यह कि कोई इतालवी (फेलिनी से बेनिनी तक), हंगेरियन (इस्तवान ज्हावो). ईरानी (मखमलबाख) फिल्म नहीं|
चीन की एक, भारत की 'लगान' (! , ऋत्विक घटक से लेकर गोविंद निहलानी सारे फेल) - यह चयन है|
और क्रम भी अजीब है - मेरी अपनी पसंद से इनमें व्हर्नर हर्त्सोघ की 'आगीरे: द रैथ आफ गाड' सबसे बढ़िया है| उसके बाद '२००१: अ स्पेस आडीसी' (आर्थर सी क्लार्क ने कहानी में कंप्यूटर का नाम हैल - HAL रखा था - उन दिनों IBM कंप्यूटर की सबसे बडी़ कंपनी थी - H I A B L M) और फिर वूडी ऐलन की 'मैनहाटन' होगी| इसके बाद मैं चायनाटाउन को रखूँगा| वैसे कई बार देश काल ज्यादा महत्तवपूर्ण होते हैं| इस तरह से पश्चिमी आलोचकों के नजरिए से 'अपोकैलीप्स नाऊ' को सबसे ऊपर रखना समझ में आता है| इसी तरह अफ्रीकी मूल के अमरीकीओं के संदर्भ में 'बायज इन ड हूड' अच्छी संवेदनशील फिल्म है| इस फिल्म की खूबी यह थी कि इसका निर्देशक जान सिंगलटन महज तेईस साल का था, जब उसने यह फिल्म बनाई थी|

मैंने 'लगान' के कुछ हिस्से देखे हैं| चयनकर्त्ताओं में से कुछ का कहना था कि ऐसी फिल्में जो नए सवाल उठाएँ, देखी जानी चाहिए| स्पष्ट है कि चयनकर्त्ता भारतीय फिल्मों से नावाकिफ ही होंगे|
'अपोकैलीप्स नाऊ' अच्छी फिल्म है, पर तकनीकी साधनों पर इतनी ज्यादा निर्भर है कि कहीं कहीं कला का गला घोंटती सी लगती है|
चायनाटाउन में जैक निकोलसन का अभिनव कमाल का है; पर अपने समय में 'मैनहाटन' ने जो तहलका मचाया था, उसकी तुलना नहीं है| स्त्री पुरुष के संबंधों को लेकर आधुनिक शहरी मध्यवर्ग और बुद्धिजीवियों के पाखंड पर यह फिल्म एक अनोखा बयान है - इसलिए इसे बहुत ऊपर रखा जाना चाहिए|

Comments

अगर सिर्फ़ पश्चिमी फ़िल्मों की बात हो रही हो तो भी इस सूची से मैं भी पूरी तरह सहमत नहीं हूँ. इस सूची में फ़ेलिनी,रोबेर्तो बेनीनी, बर्तुलुची ही नहीं बल्कि कई और प्रभावी नाम ग़ायब हैं. मिसाल के तौर पर एरिन ब्रोकोविच एक बहुत ही मामूली फ़िल्म है जिसके मुक़ाबले ए ब्रिज ओवर द रिवर क्वाइ, किलिंग ए मॉक बर्ड, रेज़वायर डॉग्स, हैनिबल... जैसी अनेक फ़िल्में हैं जो रखी जा सकती थीं. इसमें से कई फ़िल्में मैंने नहीं देखी हैं लेकिन ऐसी सूचियों का मज़ा यही है कि आप अपनी टॉप 50 की सूची बनाने लगते हैं. धन्यवाद.
ये सारी बड़ी सुनी सुनाई देखी दिखाई फ़िल्मे हैं.. पिछले दिनों मैंने एक जापानी फ़िल्मकार को खोजा.. देखा.. गिर गया.. सचमुच.. एनिमेशन फ़िलम्स बनाने वाले मियाज़ाकी.. एनिमेशन, रोमान्स, फ़ैन्टेसी, पर्यावरण, बचपन.. इन सब का मिला जुला एक लोकप्रिय रूप.. प्रमोद भाई को दिखाया.. वो भी गिर गये.. जबकि वो बहुत फ़िल्मो को कूड़ा समझते हैं.. फिर ढूँढ के हम दोनों ने मियाज़ाकी के सारी फ़िल्में देखीं.. कभी फ़ुर्सत से खोजियेगा नेट पर.. सब कुछ मिलता है..
Anonymous said…
अनामदास जी की बात से मैं सहमत हूँ. इस सूची को केवल पश्चिमी फ़िल्मों की ही मानें फिर भी कई बेहतरीन फ़िल्में जैसे सिटिज़न केन, गॉन विद द विण्ड, गांधी, मिलियन डालर बेबी आदि छूट गईं हैं. वैसे भी ऐसी सूचियाँ अक्सर विवादास्पद होती हैं.
v9y said…
लीजिये आपका मरना और मुश्किल किए देते हैं. ये रहीं अंग्रेज़ी और अन्य अंतरराष्ट्रीय भाषाओं की 100 (बल्कि 102) और हिंदी की 100 फ़िल्में, जिन्हें मरने से पहले आपको ज़रूर देखना है. हिंदी वाली सूची मेरी है इसलिये वहाँ डिस्काउंट चल सकता है.

@अभय,
मियाज़ाकी की स्पिरिटेड अवे देखी थी और देखता रह गया था. कमाल की दुनिया बनाते और दिखाते हैं वे.
azdak said…
मरने से पहले कितनी फ़ि‍ल्‍में, कितनी किताबें, कितना प्‍यार, कितना समाज, कितनी दुनियादारी, कितनी नीचता और कितनी भलमनसी.. ऐसी मापों का कोई भी मापदण्‍ड है भला? वह भी आज के ज़माने में.. जबकि यूं भी लगता है कि माइक्रोसॉफ्ट के सिवा बाकी चीज़ें संसार से उठ रही हैं.. मन में लिस्‍ट बनती रहे, कटती और जुड़ती रहे, शायद सबसे ज्‍यादा मज़ेदार वही है.. बाकी तो महज़ सनसनी है!
Rajesh Roshan said…
Apni apni pasand hai. Maine socha ki aapko kya pasand hai ispar aapne kuch likha hoga. :)
Anonymous said…
ऊपर आ कर बाकी फ़िल्म देखलो,याहा भी खुब फ़िल्मे लगी हे, इन्तजार मे,
Anonymous said…
अभय की बात से मैं भी सेहमत हूँ | बहुत सारे देशों की फ़िल्मों को नज़रअंदाज़ कर दिया गया है | जापानी फ़िल्मों मैं क़ुरोसावा और अनिमे श्रेणी की फ़िल्मे तो ग़ायब ही हैं | यह सूची काफ़ी अधूरी है |
--राजीव
अब अपनी साइट मैं हिंदी मैं खोज करें: http://quillpad.in/new/quill.html से!
पोस्ट करने के बाद मैं सोचता रहा कि जापानी और रूसी फिल्मों का उल्लेख करना भूल गया|
Anonymous said…
A comment "advertises" the commentors' own sites. This is frowned upon so much elsewhere in cyberspace that the most negative votes ever on digg was for a comment which asked people to look up his site!

But when that site does not even work, (quilllpad) that is a bit too much.

I don't know if you should delete it or not, but I do think it is junk on your site!
हम तो मारे गए...
100-50 तो हमने कुल मिलाकर देखी होंगी। इन सब सबको देखने से पहले तो न जाने कितनी बार मरना पड़ेगा

Popular posts from this blog

फताड़ू के नबारुण

('अकार' के ताज़ा अंक में प्रकाशित) 'अक्सर आलोचक उसमें अनुशासन की कमी की बात करते हैं। अरे सालो, वो फिल्म का ग्रामर बना रहा है। यह ग्रामर सीखो। ... घिनौनी तबाह हो चुकी किसी चीज़ को खूबसूरत नहीं बनाया जा सकता। ... इंसान के प्रति विश्वसनीय होना, ग़रीब के प्रति ईमानदार होना, यह कला की शर्त है। पैसे-वालों के साथ खुशमिज़ाजी से कला नहीं बनती। पोलिटिकली करेक्ट होना दलाली है। I stand with the left wing art, no further left than the heart – वामपंथी आर्ट के साथ हूँ, पर अपने हार्ट (दिल) से ज़्यादा वामी नहीं हूँ। इस सोच को क़ुबूल करना, क़ुबूल करते-करते एक दिन मर जाना - यही कला है। पोलिटिकली करेक्ट और कल्चरली करेक्ट बांगाली बर्बाद हों, उनकी आधुनिकता बर्बाद हो। हमारे पास खोने को कुछ नहीं है, सिवाय अपनी बेड़ियों और पोलिटिकली करेक्ट होने के।' यू-ट्यूब पर ऋत्विक घटक पर नबारुण भट्टाचार्य के व्याख्यान के कई वीडियो में से एक देखते हुए एकबारगी एक किशोर सा कह उठता हूँ - नबारुण! नबारुण! 1 व्याख्यान के अंत में ऋत्विक के साथ अपनी बहस याद करते हुए वह रो पड़ता है और अंजाने ही मैं साथ रोने लगता हू...

मृत्यु-नाद

('अकार' पत्रिका के ताज़ा अंक में आया आलेख) ' मौत का एक दिन मुअय्यन है / नींद क्यूँ रात भर नहीं आती ' - मिर्ज़ा ग़ालिब ' काल , तुझसे होड़ है मेरी ׃ अपराजित तू— / तुझमें अपराजित मैं वास करूँ। /  इसीलिए तेरे हृदय में समा रहा हूँ ' - शमशेर बहादुर सिंह ; हिन्दी कवि ' मैं जा सकता हूं / जिस किसी सिम्त जा सकता हूं / लेकिन क्यों जाऊं ?’ - शक्ति चट्टोपाध्याय , बांग्ला कवि ' लगता है कि सब ख़त्म हो गया / लगता है कि सूरज छिप गया / दरअसल भोर  हुई है / जब कब्र में क़ैद हो गए  तभी रूह आज़ाद होती है - जलालुद्दीन रूमी हमारी हर सोच जीवन - केंद्रिक है , पर किसी जीव के जन्म लेने पर कवियों - कलाकारों ने जितना सृजन किया है , उससे कहीं ज्यादा काम जीवन के ख़त्म होने पर मिलता है। मृत्यु पर टिप्पणियाँ संस्कृति - सापेक्ष होती हैं , यानी मौत पर हर समाज में औरों से अलग खास नज़रिया होता है। फिर भी इस पर एक स्पष्ट सार्वभौमिक आख्यान है। जीवन की सभी अच्छी बातें तभी होती हैं जब हम जीवित होते हैं। हर जीव का एक दिन मरना तय है , देर - सबेर हम सब को मौत का सामना करना है , और मरने पर हम निष्क्रिय...

 स्त्री-दर्पण

 स्त्री-दर्पण ने फेसबुक में पुरुष कवियों की स्त्री विषयक कविताएं इकट्टी करने की मुहिम चलाई है। इसी सिलसिले में मेरी कविताएँ भी आई हैं। नीचे उनका पोस्ट डाल रहा हूँ।  “पुरुष कवि : स्त्री विषयक कविता” ----------------- मित्रो, पिछले चार साल से आप स्त्री दर्पण की गतिविधियों को देखते आ रहे हैं। आपने देखा होगा कि हमने लेखिकाओं पर केंद्रित कई कार्यक्रम किये और स्त्री विमर्श से संबंधित टिप्पणियां और रचनाएं पेश की लेकिन हमारा यह भी मानना है कि कोई भी स्त्री विमर्श तब तक पूरा नहीं होता जब तक इस लड़ाई में पुरुष शामिल न हों। जब तक पुरुषों द्वारा लिखे गए स्त्री विषयक साहित्य को शामिल न किया जाए हमारी यह लड़ाई अधूरी है, हम जीत नहीं पाएंगे। इस संघर्ष में पुरुषों को बदलना भी है और हमारा साथ देना भी है। हमारा विरोध पितृसत्तात्मक समाज से है न कि पुरुष विशेष से इसलिए अब हम स्त्री दर्पण पर उन पुरुष रचनाकारों की रचनाएं भी पेश करेंगे जिन्होंने अपनी रचनाओं में स्त्रियों की मुक्ति के बारे सोचा है। इस क्रम में हम हिंदी की सभी पीढ़ियों के कवियों की स्त्री विषयक कविताएं आपके सामने पेश करेंगे। हम अपन...