आबादी बढ़ रही है आवाज़ों की
क्या वह वैसा ही होगा जैसी उसकी आवाज़ है
आवाज़ में उत्तेजना है
आदमी नीले आसमान के कोने में उठता हुआ
बादल का टुकड़ा हो सकता है
यह अधेड़ की उत्तेजित आवाज़ है
इसमें सदियों तक हारते रहने का अहसास है
उसे भी सपने आते हैं
एक सुनी हुई आवाज़ से मिलने के
दिन ऐसे आ गए हैं कि हो सकता है
हम कभी न मिलें और
हमारी आवाज़ें मिलती रहें
आबादी बढ़ रही है दुनिया में आवाज़ों की।
(नया ज्ञानोदय- 2009; 'सुंदर लोग और अन्य कविताएँ' में संकलित)
फाइल में नया ज्ञानोदय देख रहा हूँ, पर स्मृति में वागर्थ है। खैर,...
1 comment:
Kya pakda hai Sir ...Vaah !
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