कुछ
है जो नहीं रिसता है
चुप्पी
है, और
दृश्य। दृश्यों में फिसफिसाहट
सी बातचीत ।
इतराना।
चलें जैसे तैर रहे। बीच हवा
या धुंध हमें बाँधे हुए है और
हम जब चाहें उड़ने को तैयार।
चारों ओर पत्ते जिन्हें
सहलाते
हुए चलें जैसे पत्ते हमारे
अंदर गहरे घावों को सहलाते।
हम
इसे रिसने न दें।
धरती
में हर कुछ रिस रहा हो
कहें
कि कुछ है जो नहीं रिसता है।
धरती
का हर ज़र्रा रिस जाए
खूं
का हर कतरा रिस जाए
रिसने
न दें
अपना
इतराना।
(दृश्यांतर
- 2014)
1 comment:
अक्छी लगी
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