आज अरसे बाद तापमान जरा सा कम है। लग रहा है कि थोड़ी देर बाद बढ़ेगा। पीछे हादसे इतने हुए कि जितनी गर्मी थी उससे ज्यादा ही लगी। यह हिंदुस्तान कि नियति है। कहते हैं कम्युनिस्ट मुल्कों में हादसों की खबर छिपा दी जाती थी। एक यह मुल्क है जहाँ हादसों की खबरों से किसी को कोई खास बेचैनी नहीं होती। होती है ज़रूर होती है उनको जो इन हादसों का शिकार होते हैं। बाकी सब राजनीति और आपसी नोकझोंक में ज्यादा जुटे होते हैं।
दुर्घटना
सूर्यास्त के सूरज
और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था
हालाँकि उसकी शक्ल आदमी जैसी थी
गाड़ीवालों ने कहा
साला साइकिल कहाँ से आ गया
कुछ लोग साइकिल के जख्मों पर पट्टियाँ लगा रहे थे
वह नहीं था
सूर्यास्त के सूरज और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था
जो रहता है वह नहीं होता है
(पश्यन्ती - २०००; 'लोग ही चुनेंगे रंग' संग्रह में शामिल )
दुर्घटना
सूर्यास्त के सूरज
और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था
हालाँकि उसकी शक्ल आदमी जैसी थी
गाड़ीवालों ने कहा
साला साइकिल कहाँ से आ गया
कुछ लोग साइकिल के जख्मों पर पट्टियाँ लगा रहे थे
वह नहीं था
सूर्यास्त के सूरज और रुक गए भागते पेड़ों के पास
वह था और नहीं था
जो रहता है वह नहीं होता है
(पश्यन्ती - २०००; 'लोग ही चुनेंगे रंग' संग्रह में शामिल )
6 comments:
सच कहा .....पर कुछ बदलेगा नहीं......लोग भी नहीं
सच कहा
पिछली कई पोस्ट्स पढ़ीं। कवि की बेचैनी उसका पीछा नहीं छोड़ती और लोग `चैन` से सो रहे हैं। `दुखिया दास कबीर है...`
सच कहा जी
"हालाँकि उसकी शक्ल आदमी जैसी थी"
baDhiyaa kavita
sahi hai . sahnkaao kee bhi apnee ek wastwikta hai
Post a Comment