Tuesday, May 18, 2010

गर्मी से तो निजात पा लेंगे

इन गर्म दिनों को बिताना भी एक कला है। यहाँ से भाग तो सकते नहीं। काम ही इतना है। टी वी अरसे से बंद कर रखा है। इससे दिमाग शांत रहता है। सुबह अख़बार देखते हैं और सरसरी निगाह से सब पढ़कर क्रासवर्ड करने लग जाते हैं। अंग्रेजी में हिन्दू के अलावा और अख़बारों को अख़बार नहीं मानता - संयोग से हिन्दू का क्रासवर्ड भी बढ़िया होता है। दस पंद्रह मिनट से आधा घंटा तक इस तरह गुजार देते हैं। शाम को एक भले मानस दीपक गोपीनाथ के सौजन्य से हल देख लेते हैं। बीच में जब तक बिजली रहती है, दफ्तरी कामों में ए सी में छिपे रहते हैं। खाना खाने के लिए या अन्य कामों के लिए निकलना पड़ता है। सुविधा बहुत ज्यादा भी न हो इसका ध्यान रखने के लिए बिजली बोर्ड दिन में तीन चार बार तो खबर ले ही लेता है यानी बिजली अक्सर ग़ुम रहती है।

बहरहाल इस गर्मी से तो एक दिन निजात पा ही लेंगे। पर मुल्क में छिड़ी जंगें कब ठंडी पड़ेंगीं! ऐसी स्थिति में अक्सर मुझे लगता है कि काश मेरा भी कोई खुदा होता जिसके दर जाकर दो घड़ी रो लेता। कभी कभी हताशा होती है, ग़ालिब की तरह रोने का मन करता है - कोई उम्मीद बर नहीं आती। पर रोने से काम नहीं चलने का। जंग के खिलाफ उठे हाथों में हाथ जोड़ना होगा।

1 comment:

L.Goswami said...

ऐसे ख्याल मुझे भी आते हैं कभी -कभी...निराशा वाले..