कल रात चंडीगढ़ आस पास के इलाकों से भी ज्यादा ठंडा रहा। अखबार में है कि शिमला का न्यूनतम तापमान भी चंडीगढ़ से ऊपर था। मौसम विभाग का कहना है कि आबोहवा में कुछ पश्चिमी घुसपैठ हुई है। चलो यह भी सही। एक मित्र ने सही कहा कि क्यों रोते हो उनकी सोचो जिनके पास न गर्मियों में न सर्दियों में पहनने को कपड़े होते हैं। मैं खुद को निष्कर्मा महसूस करता हूँ और देखता हूँ कि इस कड़ाके की ठंड में घर में महिलाएँ और बाहर सिर्फ गरीब मजदूर ही काम करते हैं। पिछले जमानों की तुलना में जीवन काफी सुखद है, तक्नोलोजी की वजह से तकलीफ कम है, घर घर में हीटर हैं। कम से कम पश्चिमी मुल्कों के बारे में तो कहा जा सकता है कि तक्नोलोजी से समाज के सभी हिस्सों को इतना फायदा तो हुआ है कि बिजली, पानी और गर्मी की सप्लाई भारी से भारी बर्फबारी के बावजूद हर तरफ चालू है। तक्नोलोजी के विरोध में तर्क होगा कि कुछ पीढ़ियों को यह फायदा मिलेगा, पर बाद में जब ऊर्जा के संसाधन खत्म होने लगेंगे, तो जंग लड़ाई मार और धरती के विनाश के अलावा कुछ नहीं बचेगा। मैं इस चिंता में सहभागी हूँ, पर यह भी मानता हूँ कि आधुनिक तक्नोलोजी का विकल्प यह नहीं कि वापस उन्नीसवीं सदी को लौटें। संभवतः नाभिकीय ऊर्जा का सुरक्षित उपयोग एक दिन संभव हो या ऊर्जा के वैकल्पिक संसाधन ढूँढ निकाले जाएँ, फिलहाल जो संकट दिखता है, उससे कोई छुटकारा मिले।
मैं जब यह लिख रहा हूँ, देख रहा हूँ कि सूरज ने आखिर धुंध का आवरण छेद दिया है और एक मरियल सी धूप निकल आई है। तो अब सूरज से थोड़ी देर बतिया लूँ। थोड़ी ही देर सही।
मैं जब यह लिख रहा हूँ, देख रहा हूँ कि सूरज ने आखिर धुंध का आवरण छेद दिया है और एक मरियल सी धूप निकल आई है। तो अब सूरज से थोड़ी देर बतिया लूँ। थोड़ी ही देर सही।
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Very informative
Thanks
Joseph
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