हाल में कई उम्दा फिल्में देखीं। इनमें वाल्टर सालेस की चे गुएवारा पर बनाई फिल्म 'द मोटरसाइकिल डायरीज़' है। सालेस ब्राज़ीलियन है, जहाँ पुर्तगाली भाषा बोली जाती है, पर फिल्म का कथानक स्पानी भाषा में है और मूल स्रोत आर्ख़ेन्तीना के एक लेखक की किताब है। स्पानी भाषा में होने के बावजूद ब्राज़ील की ओर से यह फिल्म कई अंतर्राष्ट्रीय उत्सवों में पेश हुई। फिल्म में चे के दाढ़ी और टोपी वाले चे बनने से पहले की कहानी है। आर्ख़ेन्तीना के एर्नेस्तो गुएवारा दे ला सर्ना और उसका मित्र आल्बर्तो ग्रानादो डाक्टरी की पढ़ाई के आखिरी पड़ाव पर मोटर साइकिल पर दक्षिण अमरीकी देशों की सैर पर निकल पड़ते हैं। युवाओं का सफर जैसा होता है, बहुत कुछ वैसा ही है, कहानी में रोमांच है, प्रेम है, मस्ती है, पर यह चे की कहानी है और इसमें बीसवीं सदी के एक महान मानवतावादी क्रांतिकारी का बनना है। एक भावुक युवा का क्रांतिकारी बनना है, जिसने हमसे पहले और बाद तक की पीढ़ियों को प्रेरित किया। यात्रा के दौरान चे ने जाना कि दुनिया के मेहनती लोग किस तरह अन्यायपूर्ण सामाजिक राजनैतिक परिस्थितियों से जूझ रहे हैं। फिल्म के बेहतरीन दृश्यों में प्रेमी चे और कुष्ठ आश्रम का डाक्टर चे हैं। कहानी में चे सभी दक्षिण अमरीकी लोगों को एक समुदाय की तरह देखता है और क्रांति का आह्वान करता है, पर चे हमलोगों के लिए सिर्फ दक्षिण अमरीकी नहीं था, जहाँ भी अन्याय के खिलाफ संघर्ष है, चे सूरज की तरह रोशनी फैलाता हुआ वहाँ मौजूद है। सी आई ए ने उसे बोलीविया में भले ही मार दिया हो, वह छत्तीसगढ़ में कभी शंकर गुहानियोगी तो कभी बिनायक बन कर आ जाता है। चे कभी मर नहीं सकता, उसकी आत्मा हम सब लोगों में है, जहाँ भी इंसान का इंसान के लिए प्यार है, चे वहाँ मौजूद है।
ओम थानवी ने भारत में चे के सफर पर महत्त्वपूर्ण और रोचक आलेख लिखे हैं, जिन्होंने अभी तक पढ़े नहीं, सुनील दीपक के सौजन्य से यहाँ उपलब्ध हैं। बाद में ये लेख मोहल्ला या हाशिया में से किसी एक में आए थे - मुझे अब याद नही आ रहा किसमें देखा था।
3 comments:
चे कभी मर नहीं सकता, उसकी आत्मा हम सब लोगों में है, जहाँ भी इंसान का इंसान के लिए प्यार है, चे वहाँ मौजूद है।
bilkul sach kaha aapne
इसी शीर्षक वाली चे की किताब कई साल पहले मुझे स्कूल के मेरे एक गुरुजी ने दी थी. मैंने उस में एक पंक्ति के नीचे लाल स्याही से लकीर खेंच दी थी, जहां चे ने लिखा था:
"The stars streaked the night sky with light in that little mountain town and the silence and the cold dematerialised the darkness. It was as if all solid substances were spirited away in the ethereal space around us, denying our individuality and submerging us, rigid, in the immense blackness."
अब इस पर बनी फ़िल्म भी शानदार है. यह फ़िल्म कई मायनों में मेरे लिये ख़ास महत्व रखती है. इस विषय पर यहां जानकारी देने का शुक्रिया.
लाल्टू, अपना डाक का पता और ई मेल, और चाहें तो फोन नंबर भी, मुझे इस पते पर भेज दें threeessays@gmail.com
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