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सबको जेल में डाल दो

हाशिया का ब्लॉग खोलते ही बिनायक सेन की तस्वीर दिखती है। दाढ़ी वाली मुस्कराती शक्ल।
बहुत गुस्सा आता है कि ऐसा खूबसूरत शख्स जेल में बंद है। शायद देश के सभी भले लोगों को छत्तीसगढ़ चलना चाहिए और सरकार से कहना चाहिए कि हम सबको जेल में डाल दो।


हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब कभी कभी गलती से भले खयाल सोच लेते हैं।
हमने जेल में नक्सलियों से मुलाकात नहीं की
गाँधी को भी नहीं देखा, पर क्या करें जनाब
आते जाते इधर उधर की चर्चियाते
कोई न कोई अच्छी बात दिमाग में आ ही जाती है।
साँईनाथ, अरुंधती राय, अग्निवेश अभी बाहर खड़े हैं,
हममें से कोई कुछ पढ़ा रहा है, कोई गीत गा रहा है,
कोई और कुछ नहीं तो मंदिर मस्जिद जा रहा है।
हम सबको बंद कर लो, सरकार बहादुर
हम सब देश के लिए खतरनाक हैं

हमें गरीबी पसंद नहीं, पर गरीब पसंद हैं
हम यह तो नहीं सोचते कि गरीबों को पंख लग जाएँ
पर यह चाहते हैं कि गरीब भी इतना खा सकें कि
वे कविताएँ पढ़ने लगें
इतनी खतरनाक बात है यह
कानून की नई धाराएँ बनाइए मालिक
हमें बाहर न रखें, देश को देश से बचाएँ
बहुत बड़ा सा जेल बनाएँ, जिसमें हमारे अलावा
आस्मान भी समा जाए, इतनी रोशनी
न होने दो सरकार कि किसी को
दाढ़ी वाली मुस्कराती शक्ल दिख सके।


दो सालों के बाद फिर स्टोनहेंज देखने गया। साथ यहाँ हमारे मेजबान प्रोफेसर, मेरे दो शोधकार्य कर रहे छात्र और चीन से आया एक छात्र था। आसपास के कुछ और इलाके भी फिर से देखे।
अभी राजा राममोहन राय की कब्र दुबारा देखने जाना बाकी है।

Comments

Ashish said…
जेबें खाली जेल भरी है
गाड़ी अब न तेल-भरी है

बाहर चलें पर डरते हैं अब
घर में ही हम फिरते हैं अब
फैलें कैसे जगह हुई कम
टकराते हैं गिरते हैं अब
बढ़ते रहने से कतराती
खिड़की में जो बेल हरी है
Arun Aditya said…
हम यह तो नहीं सोचते कि गरीबों को पंख लग जाएँ
पर यह चाहते हैं कि गरीब भी इतना खा सकें कि
वे कविताएँ पढ़ने लगें
मार्मिक पंक्तियाँ।
Anonymous said…
Dear Laltu, I hope you remember me- I used to be in the engineering college in Chandigarh- please do send me your email address, I can be reached at readerswords@gmail.com
- Bhupinder
Anonymous said…
Sab pahle sae hee jail mae hae! koi shak?

its all in our perception, we can change it at will, the biology of perception? We can control it by controlling our minds in the middle of chaos even though chaos, disturbance itself is the creator of impurities in the uncertain universe created by the defilements in the uncertain field of subatomic particles because they can not make up their minds and we follow in the footsteps. Interacting with uncertainty at random speeds, products of the environment and the perception because DNA is only the carrier of information, not the information itself. Even more important is the perception that can be changed simply by observing with equinamous keenness (spellings?) simply to understand and see rather than make judgement. like helium, passing through the empty spaces not holding on to the shadows even of a dream because its just a mirror image, the portal is somewhere else.

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