गाँधी जी के जन्मदिन से दो दिन पहले एक सांस्कृतिक कार्यक्रम में साबरमती आश्रम में गाए गीतों का गायन सुना। हमारे सहयोगी संगीत शिक्षक वासुदेवन ने खुद ये गीत गाए। बड़ा मजा आया। वैष्णो जन और रघुपति राघव जैसे आम सुने जाने वाल गीतों के अलावा छः सात गीत और भी थे, जिनमें मुझे सबसे ज्यादा 'मंगल मंदिर खोलो दयामय' ने प्रभावित किया। मेरा अपना कोीई खुदा नहीं है, पर संगीत के जरिए मैं भक्तिरस में डूब पाने वालों का सुख समझता हूँ। यानी मेरे लिए संगीत का जो भी अनपढ़ आनंद है, वह, और कविता का आनंद, यही बहुत है। ईश्वर की धारणा से जिनको अतिरिक्त सुकून मिलता है, वे खुशकिस्मत होंगे।
ऊपर की पंक्तियाँ लिखने के बाद दो दिन बीत गए। इस बीच कैंपस में एक बड़ी दुःखद घटना हो गई। हमारे कैंपस में युवा विद्यार्थी बहुत संयत माने जाते हैं। पिछले आठ सालों में, जब से संस्थान बना है, ऐसी कोई दुःखद घटना नहीं हुई थी। हम सब लोग मर्माहत और उदास हैं।
कल अॉस्ट्रेलिया वाला क्रिकेट मैच है और शहर में लोगों को खेल का बुखार चढ़ा हुआ है। पर शहर तो शहर है, बुखार हो या खुमारी, सीधा टेढ़ा चलता ही रहता है। बहुत ही खराब ट्रैफिक का यह शहर आज एक मुख्य इलाके मेंहदीपटनम में हुई किसी दुर्घटना से परेशान रहा।
विज्ञान के अलावा एक साहित्य के कोर्स में भी शामिल हूँ। आम तौर पर इन क्लासों में कुछ रचनाएँ पढ़ी जाती हैं और उनपर चर्चा होती है। आज पाश की 'सबसे खतरनाक होता है सपनों का मर जाना' पंजाबी में पढ़ी और फिर हिंदी में अनुवाद कर सुनाया। बाद में हबीब तनवीर के नाटक 'चरनदास चोर' का पाठ शुरु करवाया। सूचना प्रौद्योगिकी के छात्र साहित्य में रुचि लेने लग जाएँ, यही खुशी हमारी। और वे वाकई रुचि ले भी रहे हैं।
8 comments:
इस भजन से जुड़ा एक मजेदार प्रसंग पढ़ सकते हैं।साबरमती आश्रम का ही है।
http://bapukigodmein.wordpress.com/2007/01/22/gandhi-childhood-memoires-22/
गाँदी जी के आदेश पर एक भजनांजलि छपी है जिसे मैं देश का सबसे च्छा भजन संग्रह मानता हूँ। बहुत अच्छा लग रहा है आपको ब्लॉग पर पढ़ना....
अनपढ़ आनंद ... ये सही लिखा आपने । हम भी इसी कैटेगरी में गिनते हैं खुद को ।
लाल्टू भाई
कुछ दिन पहले ही लल्लन से आपके ब्लोग के बारे में पता चला। आपके पुराने और नए लेख पढे। चिट्ठों की यात्रा में चार महीने पहले ही शामिल हुआ हूँ । आपको पढ़ के लगा कि अपना पुराना अड्डा फिर से जिंदा हो गया। हिंदी में कमेंट्स कैसे करने हैं, यह अभी ही पता चला है। फिलहाल आपकी याद ही इतनी आ रही थी कि नोस्ताल्गिक हो रहा हूँ। लिखना निरंतर चलता रहा है पर खुले लेख ज़्यादा लिखे हैं । बहुत कुछ अधूरा भी है। कुछ हिस्सा मेरे ब्लोग पर है। महाभारत और सिनेमा का फतूर थोडा शांत है। पर फिर भी दोनो का आकर्षण है । आपकी रचनाओं पर कुछ समय में लिखना शुरू करूंगा।
लाल्टू भाई
कुछ दिन पहले ही लल्लन से आपके ब्लोग के बारे में पता चला। आपके पुराने और नए लेख पढे। चिट्ठों की यात्रा में चार महीने पहले ही शामिल हुआ हूँ । आपको पढ़ के लगा कि अपना पुराना अड्डा फिर से जिंदा हो गया। हिंदी में कमेंट्स कैसे करने हैं, यह अभी ही पता चला है। फिलहाल आपकी याद ही इतनी आ रही थी कि नोस्ताल्गिक हो रहा हूँ। लिखना निरंतर चलता रहा है पर खुले लेख ज़्यादा लिखे हैं । बहुत कुछ अधूरा भी है। कुछ हिस्सा मेरे ब्लोग पर है। महाभारत और सिनेमा का फतूर थोडा शांत है। पर फिर भी दोनो का आकर्षण है । आपकी रचनाओं पर कुछ समय में लिखना शुरू करूंगा।
सच मैं साहित्य की कक्षाओं ने मेरी रूचि हिन्दी साहित्य मैं और बड़ा दी , आपको कक्षा मैं अपने अनुभव और ज्ञान बांटें के लिए धन्यवाद | पर संस्थान द्वारा छात्रों को स्पेसिफिक साहित्य पड़ने के लिए बाध्य करना (under humanities course) सचमुच मुझे दुखी करता है.
छात्र इतने परिपक्व हो चुके हैं की वे अपनी रूचि का साहित्य चुन सकें |
more about Paash and his poetry in translation is at my blog http://paash.wordpress.com
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