Wednesday, May 11, 2011

एक फिल्म


काश कि मैं भी अपने फेसबुक मित्रों की तरह हर दिन कुछ पोस्ट कर पाता। बहुत सारी बातें सबसे साझा करने का मन तो करता है, पर एक दो लाइन में ही कुछ कहने में मजा ही नहीं आता. यह तो हिंदी में टाइप करने की वजह से है कि कुल मिलाकर मैं भी जब लिखता हूँ तो कम ही लिखता हूँ। कई बार लगा है कि अब अंग्रेज़ी में लिखना शुरु करें। खास तौर पर जब यह अहसास होता है कि बहुत सारे छात्र दोस्त मेरा लिखा नहीं पढ़ पा रहे तब ऐसा लगा है, पर पता नहीं क्यों आखिरकार....
बहरहाल इन दिनों कुछ अच्छी फिल्में देखीं। मैं ज्यादातर लैपटाप पर ही फ़िल्में देखता हूँ, इसलिए वह मजा तो नहीं आता जो हाल में बैठकर बड़ी स्क्रीन पर देखमे का है, पर शहर की भीड़भाड़ झेलकर हाल तक जाने में भी मजा खत्म हो जाता है। खैर, जो फिल्में देखीं, उनमें से फिलहाल बांग्ला फिल्मों का ज़िक्र कर रहा हूँ। अब पुरानी हो चुकी हैं, पर बहुत पुरानी भी नहीं हैं। 'द जापानीज़ वाइफ' अपर्णा सेन निर्देशित पिछले साल की बनी फिल्म है। कुनाल बोस की कहानी पर आधारित यह फिल्म सुंदरबन के ग्रामीण इलाके में एक स्कूल टीचर और उसकी जापानी पेन फ्रेंड में ख़तों के जरिए प्रेम, विवाह और बिना एक दूसरे से मिले साझी ज़िंदगी पर है। स्पष्ट है कि सिर्फ इतना ही होता तो कोई खास बात न होती। अपर्णा सेन ने फिल्म में एक पूरा समाजशास्त्र पेश किया है। यहाँ हिंदू समाज में स्त्री की स्थिति पर बयान है, आधुनिक बंगाल में शहर और गाँव में फर्क पर टिप्पणी है, बोली की विविधता है... और यह सब कुछ काव्यात्मक ढंग से, एक अद्भुत रंगीन कोलाज़ बनाकर दिखाया है। कहानी तो है ही, प्रेम है, मृत्यु है, नदी है, मेला है...राष्ट्रवाद और नारों पर आधारित खोखले समाजवाद पर व्यंग्य भी है।

ऐसी फिल्में हिंदी में नहीं बनतीं, कोशिश होती भी है तो पिटी पिटी सी रह जाती है।

अगले पोस्ट में और बातें.........

Wednesday, May 04, 2011

सिर्फ चुनींदा मित्रों के लिए नहीं


परसों दोपहर एक साथी ने मेल भेजी जिसमें एक स्लाइड शो संलग्न है। इन स्लाइड्स में नात्सी सेनाओं द्वारा मारे गए यहूदी और अन्य कैदियों की पुरानी तस्वीरें हैं। एक स्लाइड में जनरल आइज़नहावर की तस्वीर के साथ यह बयान है कि उसने अधिक से अधिक ऐसे फोटोग्राफ लेने के लिए कहा था ताकि भविष्य में कोई 'सन आफ बिच' यह न कहे कि यह कत्ले आम हुआ ही नहीं। यह (गाली के अलावा बाकी) बड़ी महत्त्वपूर्ण बात है। आगे स्लाइड्स में है कि ब्रिटेन में स्कूली पाठ्यक्रम से इस कत्ले आम को इस लिए हटा दिया गया है कि मुसलमान इसको नहीं मानते। मैंने अपने विद्वान साथी को वह लिंक भेजी जहाँ इस झूठ का खंडन किया गया है। साथी का कहना है कि वह इस बात से अवगत है कि यह झूठ है। वह तो महज यह बतलाना चाहता था कि 'सत्य' के प्रति हमें सशंक रहना चाहिए।

ओसामा की मौत परसों सुबह हुई थी।

कल ही यू एस ए में काम कर रहे एक मित्र ने फेसबुक पर एक मेसेज पोस्ट किया। सार यह कि जब इतने सिपाही अब भी खतरे में हैं, जब इतने आम नागरिक खतरे में हैं, एक व्यक्ति की मौत से बुराई (evil) का अंत नहीं हो सकता; 9/11 की विभीषिका से प्रभावित सभी को मित्र ने प्रेम और शांति का संदेश भेजा। बात यह कि फेसबुक पर मित्र होने के बावजूद यह मेसेज मेरे पास नहीं आया। हो सकता है फेसबुक में bug हो। इसके पहले के किसी मेसेज को दुबारा पढ़ने के लिए ढूँढते हुए मैं मित्र की wall पर गया तो संयोग से मुझे यह नया मेसेज दिखा।
अपनी एक कविता पेस्ट कर रहा हूँ (सबके लिए, सिर्फ चुनींदा मित्रों के लिए नहीं):-

नाइन इलेवेन
वह दुनिया की सबसे ऊँची छत थी
वहाँ मैं एक औरत को बाँहों में थामे
उसके होंठ चूम रहा था
किसी बाल्मीकि ने पढ़ा नहीं श्लोक
जब तुम आए हमारा शिकार करने
हम अचानक ही गिरे जब वह छत हिली
एकबारगी मुझे लगा था कि किसी मर्द ने
ईर्ष्या से धकेल दिया है मुझे
मैं अपने सीने में साँस भर कर उठने को था
जब मैं गिरता ही चला
मेरे चारों ओर तुम्हारा धुँआ था

यह कविता की शुरुआत नहीं
यह कविता का अंत था
हमें बहुत देर तक मौका नहीं मिला
कि हम देखते कविता की वह हत्या
मेरी स्मृति से जल्द ही उतर गई थी वह औरत
जिसे मैं बहुत चाहता था
आखिरी क्षणों में मेरे होंठों पर था उसका स्वाद
जब तुम दे रहे थे अल्लाह को दुहाई

धुँआ फैल रहा था
सारा आकाश धुँआ धुँआ था
कितनी देर मुझे याद रहा कि मैं कौन हूँ
मैंने सोचा भी कि नहीं
कि मैं एक जिहाद का नाम हूँ
मेरे जल रहे होंठ
जिनमें जल चुकी थी
एक इंसान की चाहत
यह कहने के काबिल न थे
कि मैं किसी को ढूँढ रहा हूँ

वह दुनिया की सबसे ऊँची छत थी
मेरे जीते जी हुई ध्वस्त
मेरे बाद भी बची रह गई थी धरती
जिस पर जलने थे अभी और अनगिनत होंठ
या अल्लाह!
(प्रतिलिपि-२००९)