आखिरकार मौत तो सबको आनी ही है।
फिर भी हम चाहते हैं कि हमारे चहेते लोग हमेशा ही हमारे पास रहें। मैंने बहुत पहले कभी बेटी से कहा था कि मैं एमा गोल्डमैन से इश्क करता हूं। वह तब नादान थी और मुझे पूछती रही कि एमा तो बहुत पहले मर गई - उससे कोई कैसे इश्क कर सकता है। अभी मैंने सुना कि नेल्सन मंडेला अस्पताल से छूट कर आया है। अब मैं कैसे किसी को समझाऊँ कि मुझे इस शख्स से इश्क है। मुझे लगता है कि यह आदमी कभी न मरे तो दुनिया बहुत खूबसूरत होगी, पर मैं जानता हूं कि वह बहुत बूढ़ा हो चुका है और वह आज नहीं तो कल हमसे जुदा हो जाएगा। मैं जेसी जैक्सन से तो मिला हूं - पर नेल्सन मंडेला से कभी नहीं मिला - पर किसी के साथ इश्क होने के लिए उससे मिलना ज़रूरी होता है क्या? मैं तो शंकर गुहा नियोगी से भी कभी नहीं मिला, अरुंधती से भी कभी नहीं मिला।
मुझे लगने लगा है कि जैविक रूप से प्यार करने वालों और नफरत करने वालों में कुछ फर्क है। अब मैं कैसे समझूं कि इशरत जहां के लिए अब भी मेरी आँखों से आंसू टपकते हैं, जबकि मैं तो जानता तक नहीं कि वह लड़की कौन थी। जो लोग देश के झंडे को देखते ही देखते नफरत के झंडे में बदल देते हैं , उनमें और हममें कुछ तो जैविक फर्क होगा ही। कोई वजह तो है ही कि मैं काबुलीवाला देख कर रोने लग जाता हूँ और कोई और काबुल शब्द सुनते ही जहरीली फुँफकारें भरने लगता है।
जीवन की सच्चाइयाँ ऐसी ही हैं।
नेल्सन मंडेला अभी ज़िंदा है, यह अच्छी खबर है।
फिर भी हम चाहते हैं कि हमारे चहेते लोग हमेशा ही हमारे पास रहें। मैंने बहुत पहले कभी बेटी से कहा था कि मैं एमा गोल्डमैन से इश्क करता हूं। वह तब नादान थी और मुझे पूछती रही कि एमा तो बहुत पहले मर गई - उससे कोई कैसे इश्क कर सकता है। अभी मैंने सुना कि नेल्सन मंडेला अस्पताल से छूट कर आया है। अब मैं कैसे किसी को समझाऊँ कि मुझे इस शख्स से इश्क है। मुझे लगता है कि यह आदमी कभी न मरे तो दुनिया बहुत खूबसूरत होगी, पर मैं जानता हूं कि वह बहुत बूढ़ा हो चुका है और वह आज नहीं तो कल हमसे जुदा हो जाएगा। मैं जेसी जैक्सन से तो मिला हूं - पर नेल्सन मंडेला से कभी नहीं मिला - पर किसी के साथ इश्क होने के लिए उससे मिलना ज़रूरी होता है क्या? मैं तो शंकर गुहा नियोगी से भी कभी नहीं मिला, अरुंधती से भी कभी नहीं मिला।
मुझे लगने लगा है कि जैविक रूप से प्यार करने वालों और नफरत करने वालों में कुछ फर्क है। अब मैं कैसे समझूं कि इशरत जहां के लिए अब भी मेरी आँखों से आंसू टपकते हैं, जबकि मैं तो जानता तक नहीं कि वह लड़की कौन थी। जो लोग देश के झंडे को देखते ही देखते नफरत के झंडे में बदल देते हैं , उनमें और हममें कुछ तो जैविक फर्क होगा ही। कोई वजह तो है ही कि मैं काबुलीवाला देख कर रोने लग जाता हूँ और कोई और काबुल शब्द सुनते ही जहरीली फुँफकारें भरने लगता है।
जीवन की सच्चाइयाँ ऐसी ही हैं।
नेल्सन मंडेला अभी ज़िंदा है, यह अच्छी खबर है।
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