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राष्ट्रतोड़ू राष्ट्रवादी

मैंने सोचा था इस बार एक रोचक गलती पर लिखूं । एक छात्र कुंवर नारायण की कविता पढ़ते हुए 'असह्य नजदीकियां' को 'असहाय नजदीकियां' पढ़ गया। जैसे कोई गलती से कविता रच गया।

पर अभी अखबार में पढ़ा कि डंडे मारने वाले दिखा गए कि हम कितने महान लोकतान्त्रिक देश में रहते हैं। इकट्ठे होकर निहत्थे लोगों पर हमला करना आसान होता है। कायर लोग यह हमेशा ही किया करते हैं। मैंने अरुंधती का वक्तव्य पढ़ा जिसमें उसने इस प्रसंग में मीडिया की भूमिका पर भी सवाल उठाए हैं।

यह सोचने की बात है कि कायर लोग अरुंधती पर हमला कर देश का क्या भला कर रहे हैं। अफलातून ने सही लिखा ये राष्ट्रतोड़ू राष्ट्रवादी हैं।

एक और छात्र ने यह बतलाया कि प्रख्यात आधुनिक चिन्तक बेनेडिक्ट एन्डरसन राष्ट्र को काल्पनिक समुदाय कहते हुए बतलाते हैं कि राष्ट्र का अर्थ तब तक पूर्ण नहीं होता जब तक कि राष्ट्र में हो रही बुराइओं पर खुला विमर्श न हो। पर एन्डरसन तो विदेशी है, जैसे हर ऐसा विचार जिसके साथ हम सहमत नहीं है यह कहकर टाला जाता है की यह तो विदेशी विचार है तो इस को भी फेंको कूड़े में।

Comments

तो गिलानी, अरुंधती और उसके समर्थक राष्ट्रबनाऊ हैं...
nitesh said…
लाल (तू) जी कुतर्क की भी हद होती है। इससे पहले वाली आपकी पोस्ट पढ कर आपकी खिन्नता समझ में आ रही थी। आपने सही कहा कि इकट्ठे होकर निहत्थे लोगों पर हमला करना आसान होता है। कायर लोग यह हमेशा ही किया करते हैं। क्या इस पंक्ति को भी अरुन्धति की रोशनी में आप समझेंगे? हाँ मैं उन माओवादी हत्यारों की बात कर रहा हूँ जो कायरों की तरह बिल में छुप कर बारूदी सुरंग फोड रहे हैं और मरने वाले आम आदमी-सिपाही और आम आदमी-आदिवासी हैं। हाँ इसकी समर्थक अरुन्धति भी तो कायर ही हैं? हैं न लालटू जी?

चीन का चेरयमेन हमारा चेयर मेन है - भारत चीन युद्ध के समय वामपंथी उदघोषणा राष्ट्रप्रेम होगा है न लालटू जी? यह किसी राष्ट्रवादी नें कहा था क्या? आप ज्ञानी है ज्यादा साहित्य पढते है, बेहतर जानते हैं।

-*-*-*-

राष्ट्र के सभी नासूरों पर चर्चा होनी चाहिये और कैंसर अरुन्धति पर भी।

जब लोग आपसे सहमत,अत नहीं होते तो मिर्च क्यों लगने लगती है? एक खास सोच की लफ्फाजी - देश प्रेम और बाकी सारे आपसे असहमत के लिये चुन चुन कर आपकी एक ही गाली - रष्ट्रवादी, सघी, दक्षिणपंथी :) ?????


सूची बहुत लम्बी है मीर कासिम, जयचंद......अरुन्धति।

आप एक टेप ले कर घूमें। जो आपसे असहत दिखे उसके मुँह पर लगा दें।
लाल्टू जी

The Great Indian Love Affair With Censorship

Ashis Nandy

What is this concept of Indian unity that forces us to support police atrocities and torture? How can a democratic government, knowing fully what its police, paramilitary and army is capable of doing, resist signing the international covenant on torture? How can we, sixty years after independence, countenance encounter deaths? Could these practices have survived so long and become institutionalised if we had a large enough section of India’s much-vaunted middle class fully sensitive to the demands of democracy?

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