फ्रांस में जो कुछ हो रहा है, इस पर कितना सच हमें पता चल रहा है और कितना नहीं! हमारी पीढ़ी तक के लोग कालेज के दिनों में अल्जीरियाई मनःश्चिकित्सक और सैद्धांतिक चिंतक फ्रांत्स फानों की पुस्तकें, खास कर 'रेचेड आफ द अर्थ' पढ़ा करते थे। उत्पीड़ित की हिंसा, इन्कलाबी हिंसा और आतंकवादी हिंसा या जिसे मोटिवलेस हिंसा कहते हैं, इनमें फर्क क्या है, यह समझना ज़रुरी है और पहली दो किस्म की हिंसाओं को समझने में फ्रांत्स फानों की पुस्तक मदद करती है। दुनिया में जितना कुछ गलत है, उसको देखते हुए आश्चर्य होता है कि सचमुच चारों ओर हिंसा इतनी कम कैसे है। फिर भी, जैसे रवींद्रनाथ ठाकुर ने लिखा है, 'है दुःख, है मृत्यु, विरह दहन लागे, फिर भी शांति, फिर भी आनंद, अनंत... ' । *************************************************** इतनी उम्र हो गई, अब भी यहाँ की लालफीताशाही पर गुस्सा आता है। सरकारी एजेंसी का पैसा, उन्हीं की मीटिंग, फिर भी तीन महीनों से टी ए बिल पास नहीं हुआ। क्या हुआ कि वी सी साहब ने दरखास्त पर 'ऐज़ पर रुल्स' लिख दिया है। आखिर इसमें क्या समस्या है, हर चीज़ ही ऐज़ पर रुल्स होनी च...