भास्कर अखबार में लिखे आलेख का पारिश्रमिक। मेरे बैंक (SBIndia) ने इसे वापस भेजा क्योंकि उचित अधिकारियों के हस्ताक्षर नहीं हैं। भास्कर दफ्तर खबर भिजवाई, उन्होंने फोटोकापी रख ली और कहा हो जाएगा। दस दिन हो गए, कुछ हुआ नहीं तो मैंने नेट से इंदौर बैंक का अतापता ढूँढा। शाहपुर, भोपाल शाखा को ई-मेल के साथ ऊपर वाली तस्वीर भेजी। कोई जवाब नहीं। दो दिन बाद उनके चंडीगढ़ शाखा का नंबर ढूँढा। फोन किया तो वह मैनेजर साहब का घर का नंबर निकला। दफ्तर का नंबर पता कर फोन किया। दस मिनट बाद फोन करो की हिदायत आई। किया। डीलिंग व्यक्ति ने साफ मना कर दिया कि वह मदद नहीं कर सकता। कल जाकर भास्कर के दफ्तर लौटा ही आया - सोचा इसको दिमाग से निकालें। चेतन डाँट रहा है कि कंज़्यूमर फोरम को चिट्ठी भेजो। पर मुझे लगता है कि अगर मैं चिट्ठाकारी से छुट्टी माँग रहा हूँ तो अदालतबाजी का वक्त कहाँ से निकालूँ।
फिलहाल पूरी बात पर हँसता रहता हूँ और गाता हूँ - जय, भारतीय पूँजीवाद की जय। भारत के सफेद कालर पेशेवरों की जय। बोलो हे!
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