My Photo
Name:
Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, December 19, 2005

दिखना


दिखना


आप कहाँ ज्यादा दिखते हैं?
अगर कोई कमरे के अंदर आपको खाता हुआ देख ले तो?
बाहर खाता हुआ दिखने और अंदर खाता हुआ दिखने में
कहाँ ज्यादा दिखते हैं आप?

कोई सूखी रोटी खाता हुआ ज्यादा दिखता है
जॉर्ज बुश न जाने क्या खाता है
बहुत सारे लोगों को वह जब दिखता है
इंसान खाते हुए दिखता है
आदम दिखता है हर किसी को सेव खाता हुआ
वैसे आदम किस को दिखता है !

देखने की कला पर प्रयाग शुक्ल की एक किताब है
मुझे कहना है दिखने के बारे में
यही कि सबसे ज्यादा आप दिखते हैं
जब आप सबसे कम दिख रहे हों।

--पहल-७६ (२००४)
*********************************
मेरी मित्र बंगलौर के बाहर अकेली रहती है। क्या वह सुरक्षित है?
क्या इस धरती पर कहीं भी महिलाएँ और बच्चे सुरक्षित हैं?
अगर महिलाएँ और बच्चे सुरक्षित न हों तो क्या आदमी सुरक्षित है?
*********************************

हाँ मसिजीवी, ठंड से भी, गर्मी से भी, ऐसे मरते हैं लोग मेरे देश में, कहीं भगदड़ में, कहीं आग में जलकर, कभी दंगों में, कभी कभी त्सुनामी ...

Labels:

2 Comments:

Blogger मसिजीवी said...

आपकी मित्र बँगलोर या दिल्‍ली या गुड़गॉंव में या उससे बाहर शायद कहीं भी सुरक्षित नहीं क्‍योंकि मुझे नहीं लगता वे किसी शहर, घर के बाहर या भीतर सुरक्षित हैं। भीतर की बात बताउं मुझे कई बार शक होता है कि मेरी मित्र मेरे घर के भीतर मुझसे सुरक्षित है? तो कहॉं अधिक डरते हैं आप/ घर के भीतर या बाहर/ और कहॉं अधिक डरता हुआ दीखते हैं आप ?

8:27 PM, December 19, 2005  
Blogger Kalicharan said...

kya baat hai, bilkul ek problem hai law and order ki. Crime against women har jagah hote hain per India main uske jyaada repercussions nahi hote. Turant aur kadi saaja milni chahiye crime karne wale ko aur phir usko itna publicize karna chahiye ki koi aur crime karne aur punishment ke baare main soch kar hi ghabra jaye.

7:18 PM, December 20, 2005  

Post a Comment

<< Home