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फ़ोन पर दो पुराने प्रेमी

सुनील यानी बकौल शुकुल जी 'भुलक्कड़ प्रेमी' का प्रेम प्रसंग बहाना है कि समय से पंद्रह दिन पहले ही आ टपकी शीत लहर (वैन्कूवर ही नहीं यहाँ भी) में कुछ प्यार की बातें हम भी कर लें। हाँ भई, लोगों ने मुझे भारी भरकम ही बना दिया! और छूट मिली भी तो चर्चित कहानीकार - अरे भाई, मैं कविताएँ भी लिखता हूँ! साहित्य की राजनीति और उठा पटक से दूर हूँ, पर हिन्दी कविता में भी सेंधमारी हमने भी की है । लिखने में जल्दबाजी का ज़ुर्म है, पर वो मेरे बस की बात नहीं....

फ़ोन पर दो पुराने प्रेमी


कहते कुछ
सोचते कुछ और हैं
फ़ोन पर बातचीत करते
पुराने प्रेमी

बातों में
पिछले संघर्षों के संदर्भ हैं
जिनमें एकाध जीते भी थे

आजकल जिन नौकरियों में लगे हैं
उनकी हताशाएँ एक दूसरे को
सुनाते हैं

ख़यालों में ज़िंदा
हैं पुराने गीत
एक दूसरे के शरीर की गंध
होंठों का स्वाद।

१९९० ( साक्षात्कार १९९२)

हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से आयोजित कार्यक्रम में व्याख्यान देने प्रोo मैनेजर पांडे आए हैं, सुनने जा रहा हूँ।
शाम को टैगोर थिएटर में 'रंगभूमि' का मंचन है। देखना है, एक अखबार के लिए समीक्षा भी लिखनी है।

मानसी और सुनील, अच्छे छायाचित्रों के लिए धन्यवाद। बहुत सारी पुरानी यादें ताज़ा हो गईं।

Comments

Sunil Deepak said…
लाल्टू जी, आप के धन्यवाद के लिए धन्यवाद. आप का लिखा बहुत रुची से पढ़ता हूँ.
आप कुछ भी सोचिये, मैंने अपनी तरफ से इमानदारी से सच ही लिखा था. मेरा ख्याल है कि मानव मन यह मान कर चलता है कि जैसा मैं सोचता हूँ, सभी वैसे ही होंगे ?
सुनील
हा ! हा! छेड़ ही दिया मैंने! अरे सुनील जी, मैं तो मजाक कर रहा था।
वैसे मान लिया कि मेरी नब्ज ठीक पकड़ ली आपने :-)
कम से कम इससे भारीभरकम होने के इल्ज़ाम से तो छूटँगा।

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