"प्रेम सुधा में विष घुलेगा जब मन हो नहाया पाप से
मेरी व्यथा क्या समझेगा जो गुज़रा न हो उस ताप से" - मानसी
पाप ? पाप ?
**********************************
जैसे खिलता है आसमान
जैसे खिलता है आसमान
सीने में उल्लास की चीत्कार भर दौड़ो
प्यार जब चाहिए तो
चोटी पर बाँहें फैला सरगम गाओ
हो सकता है साथ आ बैठें दढ़ियल रवींद्रनाथ
हू हू बह निकले गंगा
महादेवी की जाने किन कविताओं से
प्यार जब चाहिए तो
होंठों को स्तब्ध न रखो
जिन आँखों को छूना है
जीवन की तहें वहाँ फैलाओ
साँस सिसकियाँ आवाज़ें
जिस्म रूह कविताएँ
होंठों की बाँसुरी में बजाओ
बाँसुरी नहीं चिरंतन फरीद वह
ईसा का सपना
खिलो जैसे खिलता है आसमान।
1994
(पश्यंती - 1995; 'डायरी में २३ अक्तूबर')
मेरी व्यथा क्या समझेगा जो गुज़रा न हो उस ताप से" - मानसी
पाप ? पाप ?
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जैसे खिलता है आसमान
जैसे खिलता है आसमान
सीने में उल्लास की चीत्कार भर दौड़ो
प्यार जब चाहिए तो
चोटी पर बाँहें फैला सरगम गाओ
हो सकता है साथ आ बैठें दढ़ियल रवींद्रनाथ
हू हू बह निकले गंगा
महादेवी की जाने किन कविताओं से
प्यार जब चाहिए तो
होंठों को स्तब्ध न रखो
जिन आँखों को छूना है
जीवन की तहें वहाँ फैलाओ
साँस सिसकियाँ आवाज़ें
जिस्म रूह कविताएँ
होंठों की बाँसुरी में बजाओ
बाँसुरी नहीं चिरंतन फरीद वह
ईसा का सपना
खिलो जैसे खिलता है आसमान।
1994
(पश्यंती - 1995; 'डायरी में २३ अक्तूबर')
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