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क ख का ब्रेक

क कथा

क कवित्त
क कुत्ता
क कंकड़
क कुकुरमुत्ता ।

कल भी क था
क कल होगा ।

क क्या था
क क्या होगा।

कोमल ? कर्कश ?

अक्तूबर २००३ (पश्यंती २००४)
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ख खेलें

खराब ख
ख खुले
खेले राजा
खाएं खाजा ।

खराब ख
की खटिया खड़ी
खिटपिट हर ओर
खड़िया की चाक
खेमे रही बाँट ।

खैर खैर
दिन खैर
शब बखैर ।

अक्तूबर २००३ (पश्यंती २००४)

Comments

बहुत अच्छा लगा पढकर
मजा आ गया। आगे भी लिखिये।
Kalicharan said…
very interesting, unique and refreshing
बहुत अच्छी लगी ये छोटी कविता | पर पिछली प्रविष्टियों से भी अधिक कठिन लगी |
Pratik Pandey said…
आपकी ये कविताएँ पढ़कर नागार्जुन की याद आ गयी।

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