अफलातून की ओर से सबको बड़े दिन का यह उपहार: कद्दूपटाख कद्दूपटाख (अगर) कद्दूपटाख नाचे- खबरदार कोई न आए अस्तबल के पाछे दाएँ न देखे, बाएँ न देखे, न नीचे ऊपर झाँके; टाँगें चारों रखे रहो मूली-झाड़ पे लटका-के! (अगर) कद्दूपटाख रोए- खबरदार! खबरदार! कोई न छत पे बैठे; ओढ़ कंबल ओढ़ रजाई पल्टो मचान पे लेटे; सुर बेहाग में गाओ केवल "राधे कृष्ण राधे!" (अगर) कद्दूपटाख हँसे- खड़े रहो एक टाँग पर रसोई के आसे-पासे; फूटी आवाज फारसी बोलो हर साँस फिसफासे; लेटे रहो घास पे रख तीन पहर उपवासे! (अगर) कद्दूपटाख दौड़े- हर कोई हड़बड़ा के खिड़की पे जा चढ़े; घोल लाल रंग हुक्कापानी होंठ गाल पे मढ़े; गल्ती से भी आस्मान न कतई कोई देखे! (अगर) कद्दूपटाख बुलाए- हर कोई मल काई बदन पे गमले पे चढ़ जाए; तले साग को चाट के मरहम माथे पे मले जाए; सख्त ईंट का गर्म झमझम नाक पे घिसे जाए! मान बकवास इन बातों को जो नज़रअंदाज करे; कद्दूपटाख जान जाए तो फिर हरजाना भरे; तब देखना कौन सी बात कैसे फलती जाए; फिर न कहना, बात मेरी अभी सुनी जाए। इस कविता का अनुवाद सही हुआ नहीं था, इसलिए 'अगड़म बग...