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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, October 07, 2006

हाँ भई प्रियंकर, मैं वही हूँ।

हाँ भई प्रियंकर, मैं वही हूँ।


पोखरन १९९८

(१)

बहुत दिनों के बाद याद नहीं रहेगा
कि आज बिजली गई सुबह सुबह
गर्मी का वर्त्तमान और कुछ दिनों पहले के
नाभिकीय विस्फोटों की तकलीफ के
अकेलेपन में और भी अकेलापन चाह रहा

आज की तारीख
आगे पीछे की घटनाओं से याद रखी जाएगी
धरती पर पास ही कहीं जंग का माहौल है
एक प्रधानमंत्री संसद में चिल्ला रहा है
कहीं कोई तनाव नहीं
वे पहले आस्तीनें चढ़ा रहे थे
आज कहते हैं कि चारों ओर शांति है
डरी डरी आँखें पूछती हैं
इतनी गर्मी पोखरन की वजह से तो नहीं

गर्मी पोखरन की वजह से नहीं होती
पोखरन तो टूटे हुए सौ मकानों और
वहाँ से बेघर लोगों का नाम है
उनको गर्मी दिखलाने का हक नहीं

अकेलेपन की चाहत में
बच्ची बनना चाहता हूँ
जिसने विस्फोटों की खबरें सुनीं और
गुड़िया के साथ खेलने में मग्न हो गई

(२)

गर्म हवाओं में उठती बैठती वह
कीड़े चुगती है
बच्चे उसकी गंध पाते ही
लाल लाल मुँह खोले चीं चीं चिल्लाते हैं

अपनी चोंच नन्हीं चोंचों के बीच
डाल डाल वह खिलाती है उन्हें
चोंच-चोंच उनके थूक में बहती
अखिल ब्रह्मांड की गतिकी
आश्वस्त हूँ कि बच्चों को
उनकी माँ की गंध घेरे हुए है

जा अटल बिहारी जा
तू बम बम खेल
मुझे मेरे देश की मैना और
उसके बच्चों से प्यार करना है

(३)

धरती पर क्या सुंदर है
क्या कविता सुंदर है
इतने लोग मरना चाहते हैं
क्या मौत सुंदर है

मृत्यु की सुंदरता को उन्होंने नहीं देखा
सेकंडों में विस्फोट और एक लाख डिग्री ताप
का सूरज उन्होंने नहीं देखा
उन्होंने नहीं देखा कि सुंदर मर रहा है
लगातार भूख गरीबी और अनबुझी चाहतों से
सुंदर बन रहा हिंदू मुसलमान
सत्यम् शिवम् नहीं मिथ्या घनीभूत

बार बार कोई कहता है
धरती जीने के लायक नहीं
धरती को झकझोरो, उसे चूर मचूर कर दो
कौन कह रहा कि
धरती पर कविता एक घिनौना खयाल है

(४)

सुबह की पहली पहली साँस को
नमन करने वालों
आओ मेरे पास आओ
हरी हरी घास और पेड़ों को छूकर चलने वालों
आओ हमें गद्दार घोषित किया गया है
सलीब पर चढ़ने से पहले आओ
उन्हें हम अपनी कविताएँ सुनाएँ।

(अक्षर पर्व - १९९८; समकालीन सृजन-२००६)

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2 Comments:

Blogger अनुनाद सिंह said...

लाल्टू जी,
दैवो दुर्बल घातकः ।
कोई इराक से पूछे कि बम(शक्ति) का क्या महत्व है, और शक्ति के बिना समृद्धि का क्या होता है?

9:40 PM, October 07, 2006  
Anonymous Anonymous said...

शब्द-सयोंजन सुन्दर है।

8:22 AM, October 08, 2006  

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