मोहन राणा के ई-ख़त से पता चला कि मैंने अभी तक भारत लौटने की घोषणा नहीं की है। जून के अंत में ही मैं लौट आया था। दस दिन चंडीगढ़ की गर्मी खाई। उसके बाद से बस यहाँ हैदराबाद में वापस।
देश के कानूनों से अभी तक उलझ रहा हूँ। जैसा कि डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर ने कहा - बी सीटेड, आप प्रोफेसर हैं, आपको कानून का पता होना चाहिए। बखूबी होना चाहिए और मैंने पता किया कि जिस तरह छात्रों को एक प्रांत से दूसरे प्रांत जाने पर माइग्रेशन सर्टिफिकेट नामक फालतू कागज़ हासिल करना पड़ता है, इसी तरह गाड़ियों, स्कूटरों को भी एन ओ सी चाहिए होता है - वह भी सही आर टी ए के नाम - यानी आप नहीं जानते कि हैदराबाद में ट्रांस्पोर्ट अथारिटी हैदराबाद के अलावा अन्य नामों में भी बँटी हुई है तो आप रोएँ। शुकर है अंजान भाई कि तरह डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर को इस बात पर शर्म नहीं अाई कि मुझ जैसा अज्ञ उनके देश का नागरिक है। वैसे मुझे अच्छी तरह डरा ज़रुर दिया - हमारे इंस्पेक्टर ने गाड़ी चलाते पकड़ लिया तो!!! तो बहुत सारे कागज़ तैयार कर के, चेसिस नंबर तीन तीन बार पेंसिल से घिसके, अपनी घिसती जा रही शक्ल के फोटू कई सारे साथ लगाकर और पता नहीं क्या क्या चंडीगढ़ में भारी भरकम सरकारी अधिकारी मित्र को भिजवाए हैं, हे ब्रह्मन, रक्षा करो टाइप प्रार्थना के साथ।
चलो, मोहन की वजह से यह रोना रो लिया तो सबको बता दें कि मोहन राणा हिंदी के युवा कवि हैं (माफ करना मोहन, हिंदी में तो बतलाना ही पड़ता है - अधिकतर लोगों को हरिवंश बच्चन के बाद किसी कवि का नाम पता नहीं है,... अब शुरु होगी पिटाई...) और उनकी कविताएँ यहाँ पढ़ें, और अनूदित रचनाएँ यहाँ।
जनता से गुजारिश है कि अगली क्रंदन कथा के लिए कुछ दिन इंतज़ार करें। इस बीच ओम थानवी धड़ाधड़ एक से बढ़कर एक लाजवाब लेख लिखे जा रहे हैं, अच्छी हिंदी का लुत्फ उठाएँ।
देश के कानूनों से अभी तक उलझ रहा हूँ। जैसा कि डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर ने कहा - बी सीटेड, आप प्रोफेसर हैं, आपको कानून का पता होना चाहिए। बखूबी होना चाहिए और मैंने पता किया कि जिस तरह छात्रों को एक प्रांत से दूसरे प्रांत जाने पर माइग्रेशन सर्टिफिकेट नामक फालतू कागज़ हासिल करना पड़ता है, इसी तरह गाड़ियों, स्कूटरों को भी एन ओ सी चाहिए होता है - वह भी सही आर टी ए के नाम - यानी आप नहीं जानते कि हैदराबाद में ट्रांस्पोर्ट अथारिटी हैदराबाद के अलावा अन्य नामों में भी बँटी हुई है तो आप रोएँ। शुकर है अंजान भाई कि तरह डेपुटी ट्रांस्पोर्ट कमिशनर को इस बात पर शर्म नहीं अाई कि मुझ जैसा अज्ञ उनके देश का नागरिक है। वैसे मुझे अच्छी तरह डरा ज़रुर दिया - हमारे इंस्पेक्टर ने गाड़ी चलाते पकड़ लिया तो!!! तो बहुत सारे कागज़ तैयार कर के, चेसिस नंबर तीन तीन बार पेंसिल से घिसके, अपनी घिसती जा रही शक्ल के फोटू कई सारे साथ लगाकर और पता नहीं क्या क्या चंडीगढ़ में भारी भरकम सरकारी अधिकारी मित्र को भिजवाए हैं, हे ब्रह्मन, रक्षा करो टाइप प्रार्थना के साथ।
चलो, मोहन की वजह से यह रोना रो लिया तो सबको बता दें कि मोहन राणा हिंदी के युवा कवि हैं (माफ करना मोहन, हिंदी में तो बतलाना ही पड़ता है - अधिकतर लोगों को हरिवंश बच्चन के बाद किसी कवि का नाम पता नहीं है,... अब शुरु होगी पिटाई...) और उनकी कविताएँ यहाँ पढ़ें, और अनूदित रचनाएँ यहाँ।
जनता से गुजारिश है कि अगली क्रंदन कथा के लिए कुछ दिन इंतज़ार करें। इस बीच ओम थानवी धड़ाधड़ एक से बढ़कर एक लाजवाब लेख लिखे जा रहे हैं, अच्छी हिंदी का लुत्फ उठाएँ।
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