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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Sunday, October 22, 2006

भैया ज़िंदाबाद

भैया ज़िंदाबाद

आ गया त्यौहार
फैल गई रोशनी
बड़कू ने रंग दी दीवार
लिख दिया बड़े अक्षरों में

अब से हर रात
फैलेगी रोशनी
दूर अब अंधकार
हर दिन है त्यौहार

छुटकी ने देखा
धीरे से कहा
अब्बू पीटेंगे भैया
हुआ भी यही
मार पड़ी बड़कू को
छुटकी ने देखा
धीरे से कहा
मैं बदला लूँगी भैया

फिर सुबह आई
नये सूरज
नई एक दीवार ने
दिया नया विश्व सबको

दीवार खड़ी थी
अक्षरों को ढोती
भैया ज़िंदाबाद।

- चकमक (१९८७), एक झील थी बर्फ की (१९९०), भैया ज़िंदाबाद (१९९२)।

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1 Comments:

Anonymous Anonymous said...

खूबसूरत ।।।

7:02 PM, October 25, 2006  

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