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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Friday, April 07, 2006

प्रेमी जब प्रेमिका को पा नहीं पाता

भई वाह! मैंने अभी कुछ ही कहानियाँ पढ़ी हैं, पर सचमुच मजा आ गया।
आप लोग भी पढ़ें। रचनाकार की प्रविष्टि असगर वजाहत की कहानियाँ।

एक नमूना पेश हैः
"लेकिन 'एम` को 'यम`, 'एन` को 'यन` और 'वी` को 'भी` बोलने वालों और अंग्रेजी का रिश्ता असफल प्रेमी और अति सुंदर प्रेमिका का रिश्ता है। पर क्या करें कि यह प्रेमिका दिन-प्रतिदिन सुंदर से अति सुंदर होती जा रही है और प्रेमी असफलता की सीढ़ियों पर लुढ़क रहा है। प्रेमी जब प्रेमिका को पा नहीं पाता तो कभी-कभी उससे घृणा करने लगता हे। इस केस में आमतौर पर यही होता है। अगर आप अच्छी-खासी हिंदी जानते और बोलते हों, लेकिन किसी प्रदेश के छोटे शहर या कस्बे में अंग्रेजी बोलने लगें तो सुनने वाले की इच्छा पहले आपसे प्रभावित होकर फिर आपको पीट देने की होगी।"

मात्राओं की गलतियाँ बहुत सारी हैं। मैंने शिकायत दर्ज़ कर दी है। पर ऐसा प्रयास बड़ी मेहनत माँगता है, इसलिए रवि रतलामी को कानपुर वाले ठग्गू के लड्डुओं का ऑफर है मेरी ओर से।

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5 Comments:

Blogger renu ahuja said...

पोस्ट से बढिया, आपका ओफ़र है, कानपुर वाले ठ्ग्गु के लड्डुओं का.!!!

2:27 AM, April 08, 2006  
Blogger रवि रतलामी said...

लाल्टू जी, धन्यवाद.

मात्राओं की ग़लतियाँ मशीनी रूपांतरण के कारण हजारों-लाखों में थीं उन्हें सप्रयास सैकड़ों में लाया गया है, फिर भी हैं... और इसीलिए संग्रह के प्रारंभ में ही टीप जड़ दिया गया है.

दरअसल, प्रयास शुद्ध परोस सकने में असमर्थता के बजाए थोड़ा अशुद्ध ही सही - लोगों तक मंतव्य और सामग्री ही पंहुच जाए यह विचार है.

और, इंटरनेट पर हिन्दी सामग्री तो अभी शैशवावस्था में ही है. उसे अपने व्याकरण और उच्चारण को संभालने का मौका उसके जवान होने तक के लिए तो दिया ही जा सकता है :)

9:45 AM, April 08, 2006  
Blogger लाल्टू said...

सभी मित्रों से आग्रह है कि संग्रह कि १० नंबरी कहानी 'ज़ख्म़' ज़रुर पढ़ें और दूसरों को भी पढ़ाएँ। मैं तो देशभक्त नहीं हूँ, पर इतना कह सकता हूँ कि जिन्हें सचमुच देश और समाज के बारे में सोचना है उन्हें इस कहानी को कई कई बार पढ़ना चाहिए। कहानी में खुलासा १० नंबरियों का है (हममें से हर कोई थोड़ा बहुत), पर बात १ नंबर की है।

9:56 AM, April 08, 2006  
Blogger भारत भूषण तिवारी said...

अरुन्धती को सलाम क्ररने वाली पोस्ट से आपके चिट्ठे पर नियमित चक्कर लगाता रह्ता हूँ.बेहतर इन्सान बनने के संघर्ष में स्वयं को आपके पीछे और बराबरी के आधार पर समाज निर्माण की लडाई में आपके साथ पाता हूं.

8:52 AM, April 16, 2006  
Blogger Ashish said...

laltu sir ... blog par aane key liye aur hauslafazai ke liye bahut bahut shukriya ... mere liye hindi aur angrezi ke sabhi mamle abhi puri tarah se suljhe nahin hain ... shayad abhi theek se yeh bhi nahi samajh paya hun ki mamle darasal hain kya ... lekin hindi blog shuru karne ki bahut khwahish hai ... filhaal mere liye yahi zaroori hai ki kisi tarah apni awaz darj karwa paun ... kisi bhi zaban mein ... :-)

10:57 PM, April 30, 2006  

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