Tuesday, October 31, 2006

सालगिरह

कल चेतन ने याद दिलाया कि मेरे ब्लॉग की सालगिरह है। संयोग से मनःस्थिति ऐसी है नहीं कि खीर पकाऊँ। फिर भी ब्लॉग तो कुछ लिखा जाना ही चाहिए। तकरीबन पचास हो चले अपने जीवन में अगर पाँच सबसे महत्त्वपूर्ण साल गिनने हों, तो यह एक साल उनमें होगा। बड़े तूफान आए, पर जैसा कि सुनील ने एक निजी मेल में दिलासा देते हुए लिखा था,टूटा नहीं, हँसता खेलता रहा। यहाँ तक कि चिट्ठा जगत में जान-अंजान भाइयों/बहनों के साथ ठिठौली भी की। चिट्ठे लिखने में नियमितता नहीं रही, पर कुछ न कुछ चलता रहा। मैंने पहले एकबार कभी लिखा था कि हमारे लिए चिट्ठा जगत में घुसपैठ अपने मानसिक स्वास्थ्य को बनाए रखने की कोशिश मात्र है। पर साथ में थोड़े से हिंदी चिट्ठों की दुनिया में एक और चिट्ठा भी जुड़ गया, यह खुशी अलग। कुछ तो बात बनती ही होगी, नहीं तो समय समय पर मिलने वाली नाराज़गी क्योंकर होती।

साल भर पहले जब मैंने हिंदी चिट्ठा लिखना शुरु किया तो दीवाली के पहले विस्फोट, धोनी की धुनाई, साहित्यिक दुनिया में थोड़ी बहुत चहलकदमी, कुछ विज्ञान और कुछ विज्ञान का दर्शन आदि विषयों पर लिखा, लोगबाग टिप्पणी करते और एक दो बार मैं भी बहस में शामिल रहा। फिर स्थितियाँ बिगड़ीं, व्यस्तता भी बढ़ी और धीरे धीरे चिट्ठागीरी में कमी आई। पर घायल सही, पराजित नहीं है मन, इसलिए दोस्तों, लिखते तो रहेंगे।

यहाँ जहाँ रहता हूँ (एक महीने बाद घर बदल रहा हूँ), हर रोज खिड़की से एक लटका हुआ विशाल पत्थर दिखता है (प्रत्यक्षा, डिजिकैम हमने भी दीवाली के दिन लिया है, पर वह बेटी की संपत्ति है, कभी माँगकर फोटू खींचूँगा)। उस पत्थर में/से मुझे हर तरह की प्रेरणा मिलती है। मसलन कभी लगता है, आस पास फट रहे डायनामाइटों (बन रहे मकानों के) बावजूद कैसा ढीठ है कि लटके रहने की ठानी हुई है; या यूँ देखें कि जैसे दूर लगातार उठ रहे हिमालय से कह रहा है कि जा, तुझे उठना है तो उठ, मैं तो मिंयाँ चैन से हूँ। वगैरह, वगैरह।

तो दोस्तों, सालगिरह मुबारक। अपने आप से ही कह रहा हूँ। और बाकी सब से, साल भर की नोक-झोंक झेलने के लिए, पुरानी कविताएँ पढ़ने के लिए, टिप्पणियों के लिए शुक्रिया।

और अंजान भाई, अब तो रोना भी मुश्किल, खबर यह है कि दिल्ली कोसों दूर है, मेरी गाड़ी अभी भी कानूनन यहाँ सड़क पे नहीं चल सकती। जैसा कि चेन्नई से आए लब्धप्रतिष्ठ मेरे वरिष्ठ सह-अध्यापक को कहा गया - आप क्या समझते हैं, सब आई टी है क्या कि बटन दबाए और काम हो गया, टाइम लगता है। अभी चार चक्कर और लगेंगे। तो डाल डाल पर सोने की चिड़िया वाले देश में टाइम लगता है। अहा, मेरी कल्पना में वक्ता पान चबाते हुए इलाहाबादी अंदाज़ में डायलाग मार रहा है - अति सुंदर। हालाँकि टाइम लगने की धारणा पर वक्तव्य विशुद्ध हैदराबादी महिला क्लर्क ने दिया है।

फिलहाल बांग्लादेश की खबरें पढ़ें और सपने देखें कि हम चीन से आगे बढ़ गए हैं।

13 comments:

Pratik Pandey said...

आपके चिट्ठे की सालगिरह के मौक़े पर आपको बधाई।

Anonymous said...

खुशी का मौका है, बधाई स्वीकारें तथा समय समय पर एक आध पोस्ट लिखते रहे.
यह आर.टी.ओ का चक्कर समझ में नहीं आ रहा. भारत में एक जगह पंजिकृत वाहन क्या देश में किसी भी अन्य जगह नहीं चल सकता?

Atul Arora said...

खीर भले आपने न पकायी हो पर जैसा आपने लिखा "चिट्ठा जगत में जान-अंजान भाइयों/बहनों के साथ ठिठौली भी की।" , इतना अपनापन दिखाना क्या किसी मीठी खीर से कम है? आपने खीर की बात कहकर ही मुँह में पानी ला दिया। बाकी खीर की तस्वीर बिटिया के डिजीकैम से खींचकर यहाँ चेंप दीजिये, सब तृप्त हो जायेंगे।
बधाई स्वीकार करें।

Anonymous said...

बधाई स्वीकार करें। ईश्वर करे आपका लेखन दिन दूनी और रात चौगनी उन्नति करे।

Anonymous said...

बधाई

Udan Tashtari said...

चिट्ठे की सालगिरह की बहुत बहुत बधाई और भावी लेखन के लिये अनेकों शुभकामनायें.

Anonymous said...

कम से कम ऐक आध खीर या केक की तसवीर ही लगा देते ;)
ब्लॉग की सालगिरह बहुत बहुत बधाई आपको

अनूप शुक्ल said...

साल गिरह की बधाई.

Srijan Shilpi said...

चिट्ठे के सालगिरह के मौके पर बधाई। दुआ है कि नए वर्ष में आपको लिखने के लिए कुछ अधिक वक्त मिले और हमें आपका लिखा बारंबार पढ़ने को मिल सके। हिन्दी चिट्ठाकारों में आप जैसे सरोकार वाले लेखक गिने-चुने ही हैं।

Anonymous said...

सालगिरह के मौक़े पर आपको बधाई।

पंकज बेंगाणी said...

बधाई स्वीकार करें।

Pratyaksha said...

आपका लिखा पढने में अच्छा लगता है । साल गिरह मुबारक पर शर्त ये कि कुछ ज्यादा लिखें । सालगिरही पोस्ट का अंदाज़ अच्छा लगा ।
लटके पत्थर की फोटो और कविता अगर हो जाय फिर क्या बात है ।

Anonymous said...

भाई साहब हमारी तरफ़ से भी चिठ्ठे के जन्मदिन की बधाई सवीकार करें