Tuesday, November 22, 2005

क ख का ब्रेक

क कथा

क कवित्त
क कुत्ता
क कंकड़
क कुकुरमुत्ता ।

कल भी क था
क कल होगा ।

क क्या था
क क्या होगा।

कोमल ? कर्कश ?

अक्तूबर २००३ (पश्यंती २००४)
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ख खेलें

खराब ख
ख खुले
खेले राजा
खाएं खाजा ।

खराब ख
की खटिया खड़ी
खिटपिट हर ओर
खड़िया की चाक
खेमे रही बाँट ।

खैर खैर
दिन खैर
शब बखैर ।

अक्तूबर २००३ (पश्यंती २००४)

4 comments:

Jitendra Chaudhary said...

बहुत अच्छा लगा पढकर
मजा आ गया। आगे भी लिखिये।

Kalicharan said...

very interesting, unique and refreshing

अनुनाद सिंह said...

बहुत अच्छी लगी ये छोटी कविता | पर पिछली प्रविष्टियों से भी अधिक कठिन लगी |

Pratik Pandey said...

आपकी ये कविताएँ पढ़कर नागार्जुन की याद आ गयी।