मैं उन करोड़ों लोगों में से हूँ, जो इस वक़्त अरुंधती के साथ हैं. ये सभी लोग अरुंधती के साथ जेल जाने की हिम्मत नहीं रखते, मैं भी डरपोक हूँ. पर इस वक़्त मैं अरुंधती का साथ देने के लिए जेल जाने को भी तैयार हूँ.
अरुंधती ने जो कहा है वह हम उन सब लोगों की तरफ से कहा है, जो निरंतर हो रहे अन्याय को सह नहीं सकते. देशभक्ति के नाम पर मुल्क के गरीबों के खून पसीने को कश्मीरियों के दमन के लिए बहा देना नाजायज है और यह कभी भी जायज नहीं हो सकता.
कश्मीर पर सोचते हुए हम लोग राष्ट्रवाद के मुहावरों में फंसे रह जाते हैं. जब इसी बीच लोग मर रहे हैं, कश्मीरी मर रहे हैं, हिन्दुस्तानी मर रहे हैं. करोड़ों करोड़ों रुपए तबाह हो रहे हैं. किसलिए, सिर्फ एक नफरत का समंदर इकठ्ठा करने के लिए.
यह सही है कि हमें इस बात की चिंता है की आज़ाद कश्मीर का स्वरुप कैसा होगा और हमारी और पकिस्तान की हुकूमतों जैसी ही सरकार आगे आजादी के बाद उनकी भी हो तो आज से कोई बेहतर स्थिति कश्मीरियों की तब होगी यह नहीं कहा जा सकता. पर अगर यह उनके लिए एक ऐतिहासिक गलती साबित होती है तो इस गलती को करने का अधिकार उनको है. जिनको यह दंभ है कि उनकी तरफ से यह निर्णय लेने का हक़ उनको है, कि सबसे बेहतर हल यही है कि कश्मीरी खुद को भारत की संप्रभुता के अधीन मान कर ही जियें, वे इतिहास में अत्याचारियों के साथ गिने जायेंगे. आज अट्टहास करने का मौक़ा उनका है, यह हमारी नियति है कि हम चीखते रहेंगे. आखिर एक दिन जीत उनकी ही होगी जो प्यार करना चाहते हैं.
मुझे अरुंधती से ईर्ष्या होती है कि जिन बातों को हम सब कहना चाहते हैं वह उनको इतने खूबसूरत ढंग से कह पाती है - उसने कहा है कि नफरत फैलाने का काम वह नहीं, भारत की सरकार और कश्मीरियों के दमन का समर्थन कर रही ताकतें कर रही हैं. उसने कहा है उसकी आवाज प्यार और मानवीय गर्व की आवाज है. सचमुच उसकी आवाज हम सब के प्यार की घनीभूत ध्वनि है.
अरुंधती ने जो कहा है वह हम उन सब लोगों की तरफ से कहा है, जो निरंतर हो रहे अन्याय को सह नहीं सकते. देशभक्ति के नाम पर मुल्क के गरीबों के खून पसीने को कश्मीरियों के दमन के लिए बहा देना नाजायज है और यह कभी भी जायज नहीं हो सकता.
कश्मीर पर सोचते हुए हम लोग राष्ट्रवाद के मुहावरों में फंसे रह जाते हैं. जब इसी बीच लोग मर रहे हैं, कश्मीरी मर रहे हैं, हिन्दुस्तानी मर रहे हैं. करोड़ों करोड़ों रुपए तबाह हो रहे हैं. किसलिए, सिर्फ एक नफरत का समंदर इकठ्ठा करने के लिए.
यह सही है कि हमें इस बात की चिंता है की आज़ाद कश्मीर का स्वरुप कैसा होगा और हमारी और पकिस्तान की हुकूमतों जैसी ही सरकार आगे आजादी के बाद उनकी भी हो तो आज से कोई बेहतर स्थिति कश्मीरियों की तब होगी यह नहीं कहा जा सकता. पर अगर यह उनके लिए एक ऐतिहासिक गलती साबित होती है तो इस गलती को करने का अधिकार उनको है. जिनको यह दंभ है कि उनकी तरफ से यह निर्णय लेने का हक़ उनको है, कि सबसे बेहतर हल यही है कि कश्मीरी खुद को भारत की संप्रभुता के अधीन मान कर ही जियें, वे इतिहास में अत्याचारियों के साथ गिने जायेंगे. आज अट्टहास करने का मौक़ा उनका है, यह हमारी नियति है कि हम चीखते रहेंगे. आखिर एक दिन जीत उनकी ही होगी जो प्यार करना चाहते हैं.
मुझे अरुंधती से ईर्ष्या होती है कि जिन बातों को हम सब कहना चाहते हैं वह उनको इतने खूबसूरत ढंग से कह पाती है - उसने कहा है कि नफरत फैलाने का काम वह नहीं, भारत की सरकार और कश्मीरियों के दमन का समर्थन कर रही ताकतें कर रही हैं. उसने कहा है उसकी आवाज प्यार और मानवीय गर्व की आवाज है. सचमुच उसकी आवाज हम सब के प्यार की घनीभूत ध्वनि है.
Comments
उपस्थिति दर्ज कीजिए।
भारत क्या है, जमीन पर खिंची लकीरें है जिन्हें कुछ कमीन सिर्फ लकीरें समझते हैं और कुछ इनके लिये अपनी जान और खून तक कुर्बान कर देते है.
आप नहीं समझेंगे क्योंकि आपकी रगों में ...
लगता है कोई किसी पर हाथ उठाने या मारा मारी करने की बात कर रहा है, उकसा रहा है।
आप का ब्लॉग, आप चाहे जो नाम रखिए.....लेकिन जरा करोड़ो-फरोड़ो मत गिनिए। इधर कोई करोड़ो नहीं बैठा है कि जाये और उन मुट्ठी भर कश्मीरियों का समर्थन करे कि हां बेटा सही कह रहे हो....तुम्हारी ही बात सच है वगैरह वगैरह।
कश्मीर का मुद्दा बड़ा बना है तो केन्द्र सरकार की काहिली की वजह से, उसके लापरवाह रूख और तुष्टीकरण की वजह से न कि इन वक्ती बुलबुलों की वजह से।
आप को वे कश्मीरी बहुत ज्यादा दिख रहे हैं, उनके प्रति अपने आप को बहुत संवेदनशील मानते हैं लेकिन उन कश्मीरी पंडितों के प्रति कभी आपने सोचा जिन्हें वहां से भगा दिया गया है ?
बात करते हो...करोड़ों-फरोड़ों और अरूंधति फरूंधति की!
हुंह...
यह वही लेखिका है जिसे "तालिबानियों से बरबर माओवादी हिंसा" जायज लगती है। अर्थात यह वही लेखिका है जो बात आदिवासियों की करती है लेकिन कार्य उनके खिलाफ।
यह वही लेखिका है जिसे कश्मीर में अलगाववादियों की मांग इंसाफ लगती है। लेकिन जब कश्मीर में पंडित बरबरता से भगाये या मारे गये तब इंसाफ की बीन भैंस ले गयी थी। आज घडियाल उन्हे अपनें आँसू किराये पर दे गया है, वाह!!
यह वही लेखिका है जिसे जम्मू और कश्मीर का मतलब केवल "कश्मीर की घाटी" समझ में आता है और इंसाफ के पुजारी कश्मीर घाटी के पचास किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग? लद्दाख और जम्मू भी कुछ कहते हैं महोदया? अरुंधति, बस कसर यही रह गयी कि पाकिस्तान और "आपके माओभाईयिओं के चीन" की जय जय भी कर ही लेतीं?
यह देशद्रोह है बिलकुल है लेकिन सरकार को कत्तई अरुन्धति को जेल नहीं भेजना चाहिये। वह यही चाहती है। ये जबरदस्ती के विरोध करता "महान" बनना चाहते हैं।
यदि काश्मीरियों के द्वारा काश्मीर के अल्पसंख्यक काश्मीरी पंडितों का दमन करके वहां से निकाल फैंका जा सकता है तो फिर ये काश्मीरी और इनके प्रोपेगंदिस्ट किस मुंह से अन्याय अन्याय चिल्लाते हैं? एक आबादी के दमन पर आप लोग चुप्पी साध लो और दूसरे लिए अपने कपडे फाड़ कर नंगे होकर अन्याय अन्याय चिल्लाते फिरो.. ये कहाँ का गणित है? किस मूर्ख मास्टर ने आपको ये गणित सिखाया है?
भारत में आजादी है. आजादी का अर्थ किसी को क़त्ल करने, आतंकवादियों को हिंसा करने देना नहीं होता. हर देश को अपनी संप्रभुता बचाए रखने का हक़ है. हम बेईमान हत्यारे माओ की तरह किसी तिब्बत पर जबरन अधिकार नहीं करना चाहते लेकिन कुछ आतंकवादी और विदेशी पुरस्कारों के भूखे लोग भारत की अखण्डता का सौदा करें ये भी किसी भारतीय को स्वीकार्य नहीं है.
लाल्टू महाराज, कुछ एसा मत बोलो या सोचो कि आपके बेटे बेटियों को आपकी संतान होने पर शर्म आये.
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I agree with 'Indian citizen' ji.
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I have my sympathies with the people of Kashmir and I, like most other Indian citizens want the Army excesses in the state to come to an immediate end and a comprehensive dialogue process involving all the concerned parties to begin. At the same time, I reserve the right to brand Arundhati Roy's latest comments as - attention seeking, insinuating and not in any way related to the social causes she seeks to espouse.
उमर अब्दुल्लाह के दादा को जवाहरलाल ने बेबात लम्बा समय जेल में रक्खा ।
भारतीय नौकरशाही में काश्मीरी पंडित कितने और बाकी कश्मीरी कितने? बाकी के शिकारा चलाने,सैलानियों को घोड़ों पर बैठा कर बर्फ़ दिखाने और पेपर मैशे के शिल्प बनाने में रहें !
जयप्रकाश नारायण जब काश्मीर, नागालैण्ड या तिब्बत पर बोलते थे तब भी राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवादी उन्हें गद्दार कहते थे। जैसे अगस्त क्रान्ति के नायक जयप्रकाश को अंग्रेजों ने नम्बर एक गद्दार कहा था । अरुंधती के वक्तव्य में काश्मीरी पंडितों,वहां मारे जा रहे केरल के दलित फौजी और पत्थर चलाने वाले तरुणों का जिक्र है ।
चीन द्वारा पिछले हफ़्ते अरुणाचल को देश के बाहर बताया गया है- चूँ नहीं हो रही !
काश्मीर में मारे गये कुडलूर के दलित युवा , काश्मीरी पंडितों और पत्थर चलाने वाले तरुण की व्यथा का जिक्र !
कोई कर्ण सिंह के बाप द्वारा रियासत को पाक शामिल करने की मंशा,नेहरू द्वारा ओमर अब्दुल्लाह के दादा शेरे काश्मीर शेख अब्दुल्लाह को लम्बे समय जेल में रखने का इतिहास याद रखता है?
हाफ़ पैन्टियों की तो बात छोड़ो वे काश्मीर,नागालैण्ड , तिब्बत पर जयप्रकाश नारायण को गद्दार कहते थे । अगस्त क्रांति के नायक को १९४२ में अंग्रेज जैसे गद्दार कहते थे।
Cry, The Beloved Country!
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहनेवाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जाँ बचा के चले
फिर बंदूक के बल पर चीजों को लम्बे वक्त तक थामा नहीं जा सकता है और न हकीकत को और न हकीकत को बयां करने वाले किसी लेखक को झुठलाया जा सकता है।
जाने दीजिये आप लोगों के दोमुहेपन और मुखौटे कौन नहीं जानता है।
Lallan Baghel
तूने कही और मैने गायी
धन्य धन्य अरुन्धति माई।
तुम तो खोदो घर में खाई।
yah lekh 'sedition' ke pravdhan ko par ungali uthata hae aur yaad dilaata hae ki kaesey 'Aemadabad Trial'ke roop mein is desh ka sabsey prasidhh sedition case Gandhi ji ke khilaaf chalaya gaya thha aur unhoaney 'zurm' sweekar kartey huye kya aetihaasik bayaan diya thha.
Waesey 1962 ke Keshav Nath faesley mein supreme court ki 6 sadayeey peeth ne is kanoon ko kharij toh nahi kiya par iska daayra kafi chhota kar diya.
Mae us din LTG auditorium mein thhi. Arundhati ne aesa kuchh bhi nahi kahaa jisasey koi nyaaysangat vyakti ittefaaq na rakh sakey. Humara haath daman ke khilaaf Azadi ke liye sangharshrat har insaan ke saath hae!
अभिव्यक्ति एक मोहक शब्द है .....ओर अरुंधती एक रोमांटिक चिन्तक....किसी लोक तांत्रिक सरकार के खिलाफ बोलने में ज्यादा सहूलियत है...क्यूंकि अव्वल तो विरोध होगा नहीं .होगा भी तो आप शहीदों में शामिल..... एक अजीब तरह की भाषाई हिंसा है....यदि आप हमारी बात से सहमत नहीं तो कट्टर राष्टवादी हिन्दू ...... सबके पास अपने हिस्से का सच होता है....सब उसे अपनी सहूलियत के मुताबिक इस्तेमाल करते है .........वैसे अरुंधति ने ये बयान किसी साहत्यिक पत्रिका को या किसी लेख मे... लिख कर नहीं दिया है एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझे मंच पर दिया है जो ऐसी पार्टी का नेतृत्व करता है ..आइये उस व्यक्ति के बारे में बात करे जिसके साथ बैठकर सिद्दांतो ओर नैतिक ताओ को यूँ याद किया जा रहा है......गिलानी....जिसका दाहिना हाथ सल्लाउद्दीन नाम का शख्स रहा है ...जो फिलहाल पाकिस्तान में एक आतंकवादी संघठन चलाता है कल ही उसने पाकिस्स्तान के मुर्शिदाबाद में एक बड़ी रैली की है......कश्मीर के पूर्व राजनैतिक नेता लोन के क़त्ल में गिलानी का हाथ माना जाता है .....केवल कुपवाड़ा .सोपोर ओर कुछ ग्रामीण इलाको के अलावा गिलानी को कोई पूछता नहीं है.....वे प्रो पाकिस्तानी नुमाइंदे है ...जाहिर है वे इसे धार्मिक रंग देते है तो भीड़ जुट जाती है .....जाहिर है गिलानी धार्मिक आधार पर एक राज्य को किसी देश से अलग करने में यकीन रखते है ........
अभी किसी ने ऊपर कहा के कश्मीर क्या कोई गया है ....बहुत से लोग गए है .....ऐसा नहीं के कश्मीर की समस्या पर देश के बुद्दिजीवियो ने बात रखी नहीं ....पहले भी बहुत से लोगो ने कश्मीर के मर्म को समझने की बात की है .......
वर्तमान समय में वहां सिखों के अपने पर्सनल सेंसेक्स के तहत तकरीबन ७८००० सिख है .जिन्हें धमकी मिलती रहती है ...ओर कहा जाता है के इसे इंटर नेशनल मोवमेंट बनाना है इसलिए तुम्हे सहन किया जा रहा है ....करीब पांच लाख हिन्दू वहां से पलायन कर चुके है .....अब गिने चुने हो तो हो.....किसी भी सियासत वाले नेता का कश्मीरी पंडित या सीखो के लिए कोई स्पष्ट ब्यान नहीं आया है .....कश्मीर पर उनका भी तो हक बनता है .या सिद्दांत भी सलेक्टिव होते है ....?
दुर्भाग्य से एक नेशलिस्ट मूवमेंट की सोच रखने वाले लोगो को समझदारी के स्टंट मेनो के इन बयानों से झटका लगा है .....
दूसरी ओर जरूरी बात अरुंधती अपने जिस बयान में शोपिया काण्ड का जिक्र करती है ....आम कश्मीरी को भी मालूम है उनमे से एक लड़की का आना जाना कश्मीरी पोलिस के लोगो के साथ था ,...उन्ही के बन्दों ने ये काम किया है .सेन्ट्रल फ़ोर्स का इसमें कोई हाथ नहीं है .ये मै नहीं श्रीनगर के निवासी कहते है ......
इसका ये मतलब नहीं के आर्म्ड फ़ोर्स से वहां कोई गलती नहीं हुई......पर चूँकि वे सन्दर्भ इसे केस का दे रही है इसलिए मैंने बात रखी है.......
क्या लेखक मानवीय गुण दोषों से परे होता है .....?
क्या इस देश में केवल लेखक के जींस के भीतर ही समझदारी के अमीनो एसिड सिक्वेंस में होते है ?