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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Tuesday, October 26, 2010

मुझे अरुंधती से ईर्ष्या है

मैं उन करोड़ों लोगों में से हूँ, जो इस वक़्त अरुंधती के साथ हैं. ये सभी लोग अरुंधती के साथ जेल जाने की हिम्मत नहीं रखते, मैं भी डरपोक हूँ. पर इस वक़्त मैं अरुंधती का साथ देने के लिए जेल जाने को भी तैयार हूँ.
अरुंधती ने जो कहा है वह हम उन सब लोगों की तरफ से कहा है, जो निरंतर हो रहे अन्याय को सह नहीं सकते. देशभक्ति के नाम पर मुल्क के गरीबों के खून पसीने को कश्मीरियों के दमन के लिए बहा देना नाजायज है और यह कभी भी जायज नहीं हो सकता.

कश्मीर पर सोचते हुए हम लोग राष्ट्रवाद के मुहावरों में फंसे रह जाते हैं. जब इसी बीच लोग मर रहे हैं, कश्मीरी मर रहे हैं, हिन्दुस्तानी मर रहे हैं. करोड़ों करोड़ों रुपए तबाह हो रहे हैं. किसलिए, सिर्फ एक नफरत का समंदर इकठ्ठा करने के लिए.

यह सही है कि हमें इस बात की चिंता है की आज़ाद कश्मीर का स्वरुप कैसा होगा और हमारी और पकिस्तान की हुकूमतों जैसी ही सरकार आगे आजादी के बाद उनकी भी हो तो आज से कोई बेहतर स्थिति कश्मीरियों की तब होगी यह नहीं कहा जा सकता. पर अगर यह उनके लिए एक ऐतिहासिक गलती साबित होती है तो इस गलती को करने का अधिकार उनको है. जिनको यह दंभ है कि उनकी तरफ से यह निर्णय लेने का हक़ उनको है, कि सबसे बेहतर हल यही है कि कश्मीरी खुद को भारत की संप्रभुता के अधीन मान कर ही जियें, वे इतिहास में अत्याचारियों के साथ गिने जायेंगे. आज अट्टहास करने का मौक़ा उनका है, यह हमारी नियति है कि हम चीखते रहेंगे. आखिर एक दिन जीत उनकी ही होगी जो प्यार करना चाहते हैं.

मुझे अरुंधती से ईर्ष्या होती है कि जिन बातों को हम सब कहना चाहते हैं वह उनको इतने खूबसूरत ढंग से कह पाती है - उसने कहा है कि नफरत फैलाने का काम वह नहीं, भारत की सरकार और कश्मीरियों के दमन का समर्थन कर रही ताकतें कर रही हैं. उसने कहा है उसकी आवाज प्यार और मानवीय गर्व की आवाज है. सचमुच उसकी आवाज हम सब के प्यार की घनीभूत ध्वनि है.

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27 Comments:

Blogger गिरिजेश राव, Girijesh Rao said...

मेरा हाथ अरुन्धती, आप और आप जैसे सभी के विरोध में हमेशा उठा रहेगा।
उपस्थिति दर्ज कीजिए।

9:29 PM, October 26, 2010  
Anonymous Anonymous said...

ईर्ष्या मत करो, जरा उन करोड़ों लोगों के नाम बताओ कि जो अरुंधती के साथ है? किस मुल्क के वो "करोड़ों" लोग हैं वो जो अरुन्धती के साथ है? क्या करोड़ तक की गिनती नहीं जानते हो, बेबकूफ हो या बेहकूफ बनाने की कोशिश कर रहे हो, या झूठे प्रोपेगन्डा करने वाले कमीनिष्ट हो?

भारत क्या है, जमीन पर खिंची लकीरें है जिन्हें कुछ कमीन सिर्फ लकीरें समझते हैं और कुछ इनके लिये अपनी जान और खून तक कुर्बान कर देते है.

आप नहीं समझेंगे क्योंकि आपकी रगों में ...

9:47 PM, October 26, 2010  
Blogger Ashish said...

इस पोस्ट पर की दो बातों ने एकदम से ध्यान खींचा। पहली यह कि देश की जनता का मेहनत से कमाया पैसा सरकार यूँ ही कश्मीर के दमन पर खर्च कर रही है। यह एक संजीदा मसला है। हमें पूरा अधिकार है यह कहने का की हमारे पसीना खून बहा कर मत बहाओ। हमारा कर्त्तव्य है ऐसा कहना। दूसरी बात यह कि सार्थक आज़ादी वही मानी जाएगी जिसमें गलती करने की भी आज़ादी हो। मैं नफ़रत के समंदर के पक्ष में नहीं हूँ। ईमानदारी, साफ़गोई, हलीमी और खूबसूरती के साथ जो कुछ आपने लिखा है मैं उसके पक्ष में हूँ। अकेला हूँ या करोड़ों के साथ पता नहीं। पता नहीं कि अरुंधती के साथ जेल जाने को मैं तैयार हूँ या नहीं। पर ये पक्का पता है कि मुझे आपसे ईर्ष्या है।

10:28 PM, October 26, 2010  
Blogger rajiv said...

Limelight me aane ke liye Arundhati ne ye bayan diya hai. Lagta hai unaki chamak khatm ho rahi hai tabhi cheap popularity ke athkande apna rahai hain. Aur Laltu aap to shamil baza mat baniye .

10:29 PM, October 26, 2010  
Blogger भारतीय नागरिक - Indian Citizen said...

कश्मीरियों (क्योंकि मुस्लिम अलगाववादी यही कहते हैं) को पालना बन्द कर दिया जाये और ऐसे बाकी लोगों को भी. दिमाग दो दिन में ठिकाने पर.

10:38 PM, October 26, 2010  
Blogger सतीश पंचम said...

अमां यार तुम्हारे ब्लॉग का नाम पढ़ते ही अजीब सा लगता है, आइए हाथ उठाएं...लाल्टू। पढ़कर ये कत्तई नहीं लगता कि किसी बात के समर्थन में या विरोध में हाथ उठाने को कहा जा रहा है।

लगता है कोई किसी पर हाथ उठाने या मारा मारी करने की बात कर रहा है, उकसा रहा है।

आप का ब्लॉग, आप चाहे जो नाम रखिए.....लेकिन जरा करोड़ो-फरोड़ो मत गिनिए। इधर कोई करोड़ो नहीं बैठा है कि जाये और उन मुट्ठी भर कश्मीरियों का समर्थन करे कि हां बेटा सही कह रहे हो....तुम्हारी ही बात सच है वगैरह वगैरह।

कश्मीर का मुद्दा बड़ा बना है तो केन्द्र सरकार की काहिली की वजह से, उसके लापरवाह रूख और तुष्टीकरण की वजह से न कि इन वक्ती बुलबुलों की वजह से।

आप को वे कश्मीरी बहुत ज्यादा दिख रहे हैं, उनके प्रति अपने आप को बहुत संवेदनशील मानते हैं लेकिन उन कश्मीरी पंडितों के प्रति कभी आपने सोचा जिन्हें वहां से भगा दिया गया है ?

बात करते हो...करोड़ों-फरोड़ों और अरूंधति फरूंधति की!

हुंह...

10:47 PM, October 26, 2010  
Blogger shashikant said...

यदि भारत सरकार कश्मीर और कश्मीरियों के प्रति अपने रवैये में परिवर्तन नहीं लाती है तो उसे अरुंधती जैसी कई आवाजों को दबाने के लिए तैयार हो जाना चाहिए|

11:48 PM, October 26, 2010  
Blogger दीपक 'मशाल' said...

काफी हद तक सहमत हुआ जा सकता है आपसे.. यहाँ ज्यादातर वही बड़बोले बन रहे हैं जिनसे अगर कश्मीर जाने या वहाँ जाकर रहने को कह दिया जाए तो उन्हें बुखार आ जायेगा.. पोस्ट के समर्थन में एक हाथ मेरा भी..

2:43 AM, October 27, 2010  
Blogger प्रज्ञा पांडेय said...

अरुंधती ने जो कहा आप उसके समर्थन में इतनी सुविधा से खड़े हों गए .. मूल समस्या सरकार की लापरवाही .. कश्मीरी पंडितों का निष्कासन आदि आदि को छोड़कर आप भी भाग निकले आप जैसे चार इकठ्ठा हों जाएँ तो देश क्या दुनिया का कबाड़ा निकल जायेगा ....अलगाववादी भाषा न बोलिए .. बोलना है तो मूल समस्या पर बोलिए और लिखिए .. बेहतर होगा

10:44 AM, October 27, 2010  
Blogger राजीव रंजन प्रसाद said...

तरस आता है उन लेखकों (और स्वयं घोषित समाजसेवियों) पर जिन्हे अधिकार शब्द तो पता है और उसका वे "भोंपू" बजा बजा कर इस्तेमाल करते हैं लेकिन उन्हे अपने कर्तव्यों का ककहरा भी पता नहीं।

यह वही लेखिका है जिसे "तालिबानियों से बरबर माओवादी हिंसा" जायज लगती है। अर्थात यह वही लेखिका है जो बात आदिवासियों की करती है लेकिन कार्य उनके खिलाफ।

यह वही लेखिका है जिसे कश्मीर में अलगाववादियों की मांग इंसाफ लगती है। लेकिन जब कश्मीर में पंडित बरबरता से भगाये या मारे गये तब इंसाफ की बीन भैंस ले गयी थी। आज घडियाल उन्हे अपनें आँसू किराये पर दे गया है, वाह!!

यह वही लेखिका है जिसे जम्मू और कश्मीर का मतलब केवल "कश्मीर की घाटी" समझ में आता है और इंसाफ के पुजारी कश्मीर घाटी के पचास किलोमीटर के दायरे में रहने वाले लोग? लद्दाख और जम्मू भी कुछ कहते हैं महोदया? अरुंधति, बस कसर यही रह गयी कि पाकिस्तान और "आपके माओभाईयिओं के चीन" की जय जय भी कर ही लेतीं?

यह देशद्रोह है बिलकुल है लेकिन सरकार को कत्तई अरुन्धति को जेल नहीं भेजना चाहिये। वह यही चाहती है। ये जबरदस्ती के विरोध करता "महान" बनना चाहते हैं।

11:41 AM, October 27, 2010  
Blogger सुमो said...

लाल्टू महाराज करोड़ में कितनी जीरो होतीं हैं ? इत्ती लम्बी छोड़ दी कि ... वैसे ,कुछ कम्युनिष्टों में शर्म तो होती नहीं है लेकिन इस गप्प पर थोड़ी तो शर्म आपको भी आ गयी होगी.

यदि काश्मीरियों के द्वारा काश्मीर के अल्पसंख्यक काश्मीरी पंडितों का दमन करके वहां से निकाल फैंका जा सकता है तो फिर ये काश्मीरी और इनके प्रोपेगंदिस्ट किस मुंह से अन्याय अन्याय चिल्लाते हैं? एक आबादी के दमन पर आप लोग चुप्पी साध लो और दूसरे लिए अपने कपडे फाड़ कर नंगे होकर अन्याय अन्याय चिल्लाते फिरो.. ये कहाँ का गणित है? किस मूर्ख मास्टर ने आपको ये गणित सिखाया है?

भारत में आजादी है. आजादी का अर्थ किसी को क़त्ल करने, आतंकवादियों को हिंसा करने देना नहीं होता. हर देश को अपनी संप्रभुता बचाए रखने का हक़ है. हम बेईमान हत्यारे माओ की तरह किसी तिब्बत पर जबरन अधिकार नहीं करना चाहते लेकिन कुछ आतंकवादी और विदेशी पुरस्कारों के भूखे लोग भारत की अखण्डता का सौदा करें ये भी किसी भारतीय को स्वीकार्य नहीं है.

लाल्टू महाराज, कुछ एसा मत बोलो या सोचो कि आपके बेटे बेटियों को आपकी संतान होने पर शर्म आये.

3:27 PM, October 27, 2010  
Blogger Unknown said...

करोड़ों लोगो का तो पता नहीं परन्तु कश्मीर के लाखों लोग अरुंधती के साथ हैं , जो बातें अरुंधती ने दिल्ली में पूरे देश के सामने रखी वो पूरा कश्मीर बोल रहा है , अरुंधती रॉय ने कुछ अलग या नया नहीं बोला हैं | परन्तु सरकार की तरह आम आदमी भी ने कश्मीर की समस्या की तरफ से आँख मूँद रखी हैं , As Samuel Johnson had said "patriotism is the last refuge of scoundrel ". अरुंधती रॉय ने कश्मीर की कडवी सचाई को देश और दुनिया के सामने लाने की कोशिश की है जो तथाकथित राष्ट्रवादियों(self - proclaimed) को हजम नहीं नहीं हो रही हैं | आज का राष्ट्रवाद खाने के बाद का dessert बन गया है जिसे गरीब , दमित और बेरोजगार afford नहीं कर सकता | जिनके खाने का ठिकाना नहीं हैं , काम का पता नहीं , हफ्ते में १ दिन school लगती हैं, the only way to secure future is to get away from valley, हर समय यह डर बना रहता है कि न जाने कब किसकी गोली के शिकार हो जाये उनको यह राष्ट्रवाद समझ में नहीं आता | In democracy Government has to earn the loyalty of its people but in Kashmir Government has not done enough to earn that loyalty.

4:40 PM, October 27, 2010  
Blogger ZEAL said...

कश्मीरियों (क्योंकि मुस्लिम अलगाववादी यही कहते हैं) को पालना बन्द कर दिया जाये और ऐसे बाकी लोगों को भी. दिमाग दो दिन में ठिकाने पर.

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I agree with 'Indian citizen' ji.

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4:58 PM, October 27, 2010  
Blogger Unknown said...

Arundhati Roy's concerns for the well being of the people of Kashmir may be genuine, but her statements about Kashmir's debatable status in the Indian federation makes me view her motives with ample suspicion. There was no need to say something like "Kashmir has never been an integral part of India" - it is tangential to her self proclaimed cause of bringing justice to the people of Kashmir and ending Army atrocities on the innocent citizens of the state.

I have my sympathies with the people of Kashmir and I, like most other Indian citizens want the Army excesses in the state to come to an immediate end and a comprehensive dialogue process involving all the concerned parties to begin. At the same time, I reserve the right to brand Arundhati Roy's latest comments as - attention seeking, insinuating and not in any way related to the social causes she seeks to espouse.

5:26 PM, October 27, 2010  
Blogger अफ़लातून said...

कर्ण सिंह का बाप कहता था कि मेरी रियासत पाकिस्तान में शामिल होगी।
उमर अब्दुल्लाह के दादा को जवाहरलाल ने बेबात लम्बा समय जेल में रक्खा ।
भारतीय नौकरशाही में काश्मीरी पंडित कितने और बाकी कश्मीरी कितने? बाकी के शिकारा चलाने,सैलानियों को घोड़ों पर बैठा कर बर्फ़ दिखाने और पेपर मैशे के शिल्प बनाने में रहें !
जयप्रकाश नारायण जब काश्मीर, नागालैण्ड या तिब्बत पर बोलते थे तब भी राष्ट्रतोड़क राष्ट्रवादी उन्हें गद्दार कहते थे। जैसे अगस्त क्रान्ति के नायक जयप्रकाश को अंग्रेजों ने नम्बर एक गद्दार कहा था । अरुंधती के वक्तव्य में काश्मीरी पंडितों,वहां मारे जा रहे केरल के दलित फौजी और पत्थर चलाने वाले तरुणों का जिक्र है ।
चीन द्वारा पिछले हफ़्ते अरुणाचल को देश के बाहर बताया गया है- चूँ नहीं हो रही !

7:53 PM, October 27, 2010  
Blogger अफ़लातून said...

काश,अरुंधती के वक्तव्य में आपतिइजनक,देश विरोधी अंश कोई टिप्पणी के रूप में देता !
काश्मीर में मारे गये कुडलूर के दलित युवा , काश्मीरी पंडितों और पत्थर चलाने वाले तरुण की व्यथा का जिक्र !
कोई कर्ण सिंह के बाप द्वारा रियासत को पाक शामिल करने की मंशा,नेहरू द्वारा ओमर अब्दुल्लाह के दादा शेरे काश्मीर शेख अब्दुल्लाह को लम्बे समय जेल में रखने का इतिहास याद रखता है?
हाफ़ पैन्टियों की तो बात छोड़ो वे काश्मीर,नागालैण्ड , तिब्बत पर जयप्रकाश नारायण को गद्दार कहते थे । अगस्त क्रांति के नायक को १९४२ में अंग्रेज जैसे गद्दार कहते थे।

8:11 PM, October 27, 2010  
Blogger भारत भूषण तिवारी said...

The message is clear- if you do not agree with or conform to official position of state (or nationalistic/patriotic sentiments), you will be inundated with hate comments, put in jail and ultimately trampled upon.
Cry, The Beloved Country!

11:35 PM, October 27, 2010  
Blogger Ek ziddi dhun said...

निसार मैं तेरी गलियों के अए वतन, कि जहाँ
चली है रस्म कि कोई न सर उठा के चले
जो कोई चाहनेवाला तवाफ़ को निकले
नज़र चुरा के चले, जिस्म-ओ-जाँ बचा के चले

1:35 AM, October 28, 2010  
Blogger Ek ziddi dhun said...

यह बदकिस्मती ही है कि इस मुल्क में जो लोग देश को तोड़ने वाले हैं, वही राष्ट्रवादी हैं। क्या देश के विभाजन के लिए हिन्दू कट्टरवादी ताकतें जिम्मेदार नहीं थीं जो द्विराष्ट्र के सिद्धांत की जनक थीं और जिनके मौजूदा संगठन भी इस लाइन की पैरोकारी करते रहे हैं। कश्मीर की बात करते हुए कश्मीरियत की बात भी करनी पड़ेगी। लंबे समय तक कश्मीरियत को नष्ट करके की मुहिम चलाने वाले कश्मीर को भारत का हिस्सा कहकर समस्या का हल नहीं कर सकते। कश्मीरी पंडितों के पलायन और उन पर हिंसा को स्वीकारने के बावजूद कोई भी इस बात से इन्कार कैसे कर सकता है कि कश्मीर में एक तरह का मिलट्री राज है, वहां बड़ी संख्या में फर्जी एनकाउंटर हुए हैं। पूर्वोत्तर का क्या यही हाल नहीं है? `राष्ट्रवादी` बात-बात में हिन्दू मानस और विशाल हिन्दू भावना की बातें तो चिल्लाते हैं और इस आधार पर न्यायालय तक में न्याय की बलि दे दी जाती है पर कोई नहीं कहता कि मणिपुर के लोगों से भी उनकी भावना पूछ ली जाए। दिल्ली में पूर्वोत्तर की युवतियां चिंकी जैसी फब्तियों का शिकार होती रहती हैं।
फिर बंदूक के बल पर चीजों को लम्बे वक्त तक थामा नहीं जा सकता है और न हकीकत को और न हकीकत को बयां करने वाले किसी लेखक को झुठलाया जा सकता है।

7:32 AM, October 28, 2010  
Blogger nitesh said...

वामपंथियों की इज्जत इसी तरह की सोच के कारण अब दो कौडी की नहीं रह गयी है। जब जबाब देते नहीं बनता तो कभी सवाल करने वालों को दक्षिणपंथी घोषित करते हैं तो कभी राष्ट्रवादी। लालटू जी अरुन्धति में या आप की जलन में गूदा होता तो आप केवल उन करोड के साथ नहीं बल्की उन निनानबे करोड की जमात के साथ होते जो देशद्रोहियों के साथ नहीं। ज्यादा समय नहीं बीता जब उसी घाटी से रोज का सच था बलात्कार और निर्मम हत्या और करने वाले वही निरीह और मासूम पत्थरबाज जिन्हे केवल एक तरह की कौम को घाटी में आबाद रखना था तब आप सब की बोलतीयाँ कहाँ बंद थी?

जाने दीजिये आप लोगों के दोमुहेपन और मुखौटे कौन नहीं जानता है।

8:27 AM, October 28, 2010  
Blogger Champak Khurmi said...

Kudos to Arundhati for walking tall. She has a strong backbone.

10:37 AM, October 28, 2010  
Blogger Ham-Kalam said...

I fully endorse Laltu's comment about Arundhati Roy's speech and right to self-determination is a fundamental right in all democratic struggles,thus, any one who believes in democracy can not deny it for Kashmir and its people. Why Kashmir and north-eastern states always are treated as in the category of 'state of exception' in the times of brute globalisation, war and democracy. Kudo to Arundhati and to all those who believe in "Azadi".

Lallan Baghel

1:22 PM, October 28, 2010  
Blogger अनिल कुमार said...

कम्युनिष्ट-कम्युनिष्ट मौसेरे भाई।
तूने कही और मैने गायी
धन्य धन्य अरुन्धति माई।
तुम तो खोदो घर में खाई।

1:57 PM, October 28, 2010  
Blogger Unknown said...

http://www.countercurrents.org/sahi271010.htm
yah lekh 'sedition' ke pravdhan ko par ungali uthata hae aur yaad dilaata hae ki kaesey 'Aemadabad Trial'ke roop mein is desh ka sabsey prasidhh sedition case Gandhi ji ke khilaaf chalaya gaya thha aur unhoaney 'zurm' sweekar kartey huye kya aetihaasik bayaan diya thha.
Waesey 1962 ke Keshav Nath faesley mein supreme court ki 6 sadayeey peeth ne is kanoon ko kharij toh nahi kiya par iska daayra kafi chhota kar diya.
Mae us din LTG auditorium mein thhi. Arundhati ne aesa kuchh bhi nahi kahaa jisasey koi nyaaysangat vyakti ittefaaq na rakh sakey. Humara haath daman ke khilaaf Azadi ke liye sangharshrat har insaan ke saath hae!

4:32 PM, October 28, 2010  
Blogger डॉ .अनुराग said...

भ्रमित संद्रर्भो में आदर्श अपना न्यूट्रल विज़न खो देता है .....कभी कभी किसी विचार को सपोर्ट करने के अतिरेक उत्साह में लोग उन लोगो के हाथो का टूल बन जाते है जो एक स्वस्थ समाज के लिए हानिकारक है .सवाल कश्मीर के मर्म को समझने का नहीं है.......सवाल सच कहाँ कैसे ओर किन परिस्थितियों में किस नीयत से बोला गया ये महत्वपूर्ण है .मै नहीं जानता की अपराधी किस विचारधारा का है उससे उसके अपराध की इंटेस सिटी कैसे मापी जाती है ? पर दुर्भाग्य से बुद्दिहीन अनुसरण के अलावा एक प्लांड बौदिक अनुसरण भी हो रहा है ... जहाँ बोलने वाले व्यक्ति को देख लाभ हानि तौल के लोग बोलते है .....
अभिव्यक्ति एक मोहक शब्द है .....ओर अरुंधती एक रोमांटिक चिन्तक....किसी लोक तांत्रिक सरकार के खिलाफ बोलने में ज्यादा सहूलियत है...क्यूंकि अव्वल तो विरोध होगा नहीं .होगा भी तो आप शहीदों में शामिल..... एक अजीब तरह की भाषाई हिंसा है....यदि आप हमारी बात से सहमत नहीं तो कट्टर राष्टवादी हिन्दू ...... सबके पास अपने हिस्से का सच होता है....सब उसे अपनी सहूलियत के मुताबिक इस्तेमाल करते है .........वैसे अरुंधति ने ये बयान किसी साहत्यिक पत्रिका को या किसी लेख मे... लिख कर नहीं दिया है एक ऐसे व्यक्ति के साथ साझे मंच पर दिया है जो ऐसी पार्टी का नेतृत्व करता है ..आइये उस व्यक्ति के बारे में बात करे जिसके साथ बैठकर सिद्दांतो ओर नैतिक ताओ को यूँ याद किया जा रहा है......गिलानी....जिसका दाहिना हाथ सल्लाउद्दीन नाम का शख्स रहा है ...जो फिलहाल पाकिस्तान में एक आतंकवादी संघठन चलाता है कल ही उसने पाकिस्स्तान के मुर्शिदाबाद में एक बड़ी रैली की है......कश्मीर के पूर्व राजनैतिक नेता लोन के क़त्ल में गिलानी का हाथ माना जाता है .....केवल कुपवाड़ा .सोपोर ओर कुछ ग्रामीण इलाको के अलावा गिलानी को कोई पूछता नहीं है.....वे प्रो पाकिस्तानी नुमाइंदे है ...जाहिर है वे इसे धार्मिक रंग देते है तो भीड़ जुट जाती है .....जाहिर है गिलानी धार्मिक आधार पर एक राज्य को किसी देश से अलग करने में यकीन रखते है ........

अभी किसी ने ऊपर कहा के कश्मीर क्या कोई गया है ....बहुत से लोग गए है .....ऐसा नहीं के कश्मीर की समस्या पर देश के बुद्दिजीवियो ने बात रखी नहीं ....पहले भी बहुत से लोगो ने कश्मीर के मर्म को समझने की बात की है .......
वर्तमान समय में वहां सिखों के अपने पर्सनल सेंसेक्स के तहत तकरीबन ७८००० सिख है .जिन्हें धमकी मिलती रहती है ...ओर कहा जाता है के इसे इंटर नेशनल मोवमेंट बनाना है इसलिए तुम्हे सहन किया जा रहा है ....करीब पांच लाख हिन्दू वहां से पलायन कर चुके है .....अब गिने चुने हो तो हो.....किसी भी सियासत वाले नेता का कश्मीरी पंडित या सीखो के लिए कोई स्पष्ट ब्यान नहीं आया है .....कश्मीर पर उनका भी तो हक बनता है .या सिद्दांत भी सलेक्टिव होते है ....?
दुर्भाग्य से एक नेशलिस्ट मूवमेंट की सोच रखने वाले लोगो को समझदारी के स्टंट मेनो के इन बयानों से झटका लगा है .....
दूसरी ओर जरूरी बात अरुंधती अपने जिस बयान में शोपिया काण्ड का जिक्र करती है ....आम कश्मीरी को भी मालूम है उनमे से एक लड़की का आना जाना कश्मीरी पोलिस के लोगो के साथ था ,...उन्ही के बन्दों ने ये काम किया है .सेन्ट्रल फ़ोर्स का इसमें कोई हाथ नहीं है .ये मै नहीं श्रीनगर के निवासी कहते है ......
इसका ये मतलब नहीं के आर्म्ड फ़ोर्स से वहां कोई गलती नहीं हुई......पर चूँकि वे सन्दर्भ इसे केस का दे रही है इसलिए मैंने बात रखी है.......

7:55 PM, October 28, 2010  
Blogger डॉ .अनुराग said...

ओर हाँ एक बात ओर ....

क्या लेखक मानवीय गुण दोषों से परे होता है .....?
क्या इस देश में केवल लेखक के जींस के भीतर ही समझदारी के अमीनो एसिड सिक्वेंस में होते है ?

7:58 PM, October 28, 2010  
Blogger kesharsingh said...

Hadd ho gayee. Is desh ke loktantra ki ab to izzat karo, jisame itana kah kar bhi aazaad ghoom rahe ho.

8:10 PM, December 07, 2010  

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