Monday, August 16, 2010

याहू-याहू, याहू-याहू

देशभक्ति की धारणा पर अक्सर इस ब्लॉग पर मैंने कुछ लिखा है। अन्य संस्थानों की तरह हमारे संस्थान में भी १५ अगस्त और २६ जनवरी को झंडोत्तोलन के साथ उच्च अधिकारियों के भाषण आदि होते हैं। चूंकि चार पांच लोगों ने नियमित बोलना ही होता है; दिवस की गरिमा का तकाजा है, और तब तक छात्र पर्याप्त रूप से ऊब चुके होते हैं, इसलिए जब भी मुझे बोलने को कहा गया है, मैंने इंकार कर दिया है. पर मैं कल्पना तो करता ही हूँ कि अगर बोलना पड़े तो क्या बोलता । हैदराबाद आने के बाद कक्षा में विषय पढ़ाने के अलावा या पेशेगत शोधकार्य आदि पर भाषण देने के अलावा सामान्य विषयों पर व्याख्यान कम ही दिए हैं.
तो इस बार १५ अगस्त के लिए भी कुछ सोच रहा था कि वह भाषण जो मैं कभी नहीं देता वह कैसा होगा. पर फिर वही वक्त की समस्या - बस सोचते रह जाते हैं - लिख नहीं पाते. इसी बीच यह साईट देखी: http://lekhakmanch.com/2010/08/13/कवियों-शायरों-की-नजर-में-आ/
इसमें विष्णु नागर की कविता देखकर दंग रह गया -एक खतरनाक ख़याल दिमाग में आ रहा है कि पाखंडों से भरे इस मुल्क में ऐसा लिख कर वे बच कैसे गए :

जन-गण-मन अधिनायक जय हे
जय हे, जय हे, जय जय हे
जय-जय, जय-जय, जय-जय-जय
जय-जय, जय-जय, जय-जय-जय
हे-हे, हे-हे, हे-हे, हे-हे, हे
हें-हें, हें-हें, हें-हें, हें
हा-हा, ही-ही, हू-हू है
हे-है, हो-हौ, ह-ह, है
हो-हो, हो-हो, हो-हौ है
याहू-याहू, याहू-याहू, याहू है
चाहे कोई मुझे जंगली कहे।

बस पढ़कर यही मन करता है कि याहू-याहू, याहू-याहू,...
कहीं याहू कंपनी उनसे कापीराईट का दावा ना कर बैठे.

6 comments:

मसिजीवी said...

राष्‍ट्रवाद और धर्म को पर्याप्‍त रूप से प्राब्‍लमटाईज किया जाने की जरूरत है... जितना हो सके, जितना जल्‍दी हो सके।

* कवि का नाम संभवत विष्‍णु नागर होना चाहिए :)

लाल्टू said...

शुक्रिया मसिजीवी.
नज़र कमजोर पड़ती जा रही है, अक्सर गलतियाँ रह जाती हैं.
अब ठीक कर लिया है.

लाल्टू said...

मेरा मतलब टंकन की गलतियों से है. विष्‍णु नागर जी से अच्छी तरह परिचित हूँ.

iqbal abhimanyu said...

एक वाकया याद आ रहा है, जब मैं १२वी कक्षा में था, तो हमारे स्कूल में सब छात्रों ने मिलकर मुख्य अतिथि महोदय ( जो स्थानीय विधायक थे) के भाषण में समय कुसमय इतनी तालियाँ बजायीं थी कि उन्हें अपना भाषण सस्ते में ही समेटना पड़ा था. मुझे आज भी समझ में नहीं आता कि स्कूली बच्चों की कतारें हर 'राष्ट्रीय' कार्यक्रम की सफलता के लिए क्यों ज़रूरी हैं. बहरहाल याहू..ss

Anonymous said...

yah sab hamare rajnitikon aur any sattadhariyon ke anpadh-nirakshar hone ke karan hee sambhav ho saka hai.iske liye kya unhen dhanyawad den? vaise kavita jaisee cheez unhen samajh men bhee naheen aatee jab tak ki vah hasya kavita na ho, halanki vah bhee samajh men hee aa jatee hogee, ismen gahara sandeh hai.

शरद कोकास said...

विष्णु नागर जी पर इसीलिये पत्रिकाओं के विशेषांक निकलते हैं ।