मेरे पिछले चिट्ठे पर गौतम राजरिशी की टिप्पणी है: "कमाल है कि एक कथित रूप से संवेदनशील कवि भी ऐसा नजरिया रखता है.....!!!"
गौतम राजरिशी सेना का मेजर जिसने शायदा के चिट्ठे पर लिखा था कि वह तकरीबन इस घटना का (बच्चे की मौत) चश्मदीद गवाह है और सचमुच हुआ यह कि फ़ौज के लोगों ने बच्चे को उठाया और अस्पताल पहुँचाया जहां उसकी मौत हुई।
मैं 'कथित रूप से संवेदनशील कवि' ही सही, पर यह सब लोग जान लें कि गौतम राजरिशी सेना का मेजर ही है - कथित रूप से नहीं, सचमुच. जानने पर यह बात समझ में आ जायेगी कि मैं क्यों इस टिप्पणी का जवाब नहीं दे रहा. शुक्र है कि मैं कविहूँ, गौतम राजरिशी के मातहत काम कर रहे सिपाहियों में से नहीं हूँ । नहीं तो पता नहीं कैसे विशेषण मिलते।
बहरहाल वक्त के मिजाज को देखते हुए यह कविता बकवास
कुछ पन्ने बकवास के लिए होते हैं
जो कुछ भी उन पर लिखा बकवास है
बकवास करते हुए आदमी
बकवास पर सोच रहा हो सकता है
क्या पाकिस्तान में जो हो रहा है
वह बकवास है
हिंदुस्तान में क्या उससे कम बकवास है
क्या यह बकवास है
कि मैं बीच मैदान हिंदुस्तान और पाकिस्तान की
धोतियाँ खोलना चाहता हूँ
निहायत ही अगंभीर मुद्रा में
मेरा गंभीर मित्र हँस कर कहता है
सब बकवास है
बकवास ही सही
मुझे लिखना है कि
लोगों ने बहुत बकवास सुना है
युद्ध सरदारों ध्यान से सुनो
हम लोगों ने बहुत बकवास सुना है
और यह बकवास नहीं कि
हम और बकवास नहीं सुनेंगे।
(पश्यंतीः 2000)
गौतम राजरिशी सेना का मेजर जिसने शायदा के चिट्ठे पर लिखा था कि वह तकरीबन इस घटना का (बच्चे की मौत) चश्मदीद गवाह है और सचमुच हुआ यह कि फ़ौज के लोगों ने बच्चे को उठाया और अस्पताल पहुँचाया जहां उसकी मौत हुई।
मैं 'कथित रूप से संवेदनशील कवि' ही सही, पर यह सब लोग जान लें कि गौतम राजरिशी सेना का मेजर ही है - कथित रूप से नहीं, सचमुच. जानने पर यह बात समझ में आ जायेगी कि मैं क्यों इस टिप्पणी का जवाब नहीं दे रहा. शुक्र है कि मैं कविहूँ, गौतम राजरिशी के मातहत काम कर रहे सिपाहियों में से नहीं हूँ । नहीं तो पता नहीं कैसे विशेषण मिलते।
बहरहाल वक्त के मिजाज को देखते हुए यह कविता बकवास
कुछ पन्ने बकवास के लिए होते हैं
जो कुछ भी उन पर लिखा बकवास है
बकवास करते हुए आदमी
बकवास पर सोच रहा हो सकता है
क्या पाकिस्तान में जो हो रहा है
वह बकवास है
हिंदुस्तान में क्या उससे कम बकवास है
क्या यह बकवास है
कि मैं बीच मैदान हिंदुस्तान और पाकिस्तान की
धोतियाँ खोलना चाहता हूँ
निहायत ही अगंभीर मुद्रा में
मेरा गंभीर मित्र हँस कर कहता है
सब बकवास है
बकवास ही सही
मुझे लिखना है कि
लोगों ने बहुत बकवास सुना है
युद्ध सरदारों ध्यान से सुनो
हम लोगों ने बहुत बकवास सुना है
और यह बकवास नहीं कि
हम और बकवास नहीं सुनेंगे।
(पश्यंतीः 2000)
Comments
मेरे लिये तो यही बहुत बड़ी बात है कि मेरे प्रिय कवि ने मेरा नाम उच्चरित किया....
एक बार फिर से क्षमा। यक़ीन मानिये कुछ "राक्षसप्रवृति" वाले लोगों में भी संवेदनायें होती हैं और ये इस क्षमा की गुहार उसी संवेदना से उपजी है...