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बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Saturday, August 28, 2010

यातना

"Reasonable people I reason with, bigots I do not talk to" - Ashley Montagu

यातना
तालस्ताय ने सौ साल पहले भोगा था यह अहसास
जो बहुत दूर हैं उनसे प्यार नहीं है
दूर देशों में बर्फानी तूफानों में
सदियों पुराने पुलों की आत्माएँ
आग की बाढ़ में कूदतीं
निष्क्रिय हम चमकते पर्दों पर देखते
मिहिरकुल का नाच

जो बहुत करीब हैं उनसे नफरत
करीब के लोगों को देखना है खुद को देखना
इतनी बड़ी यातना
जीने की वजह है दरअसल
जो बीचोंबीच बस उन्हीं के लिए है प्यार

भीड़ में कुरेद कुरेद अपनी राह बनाते
ढूँढते हैं बीच के उन लोगों को
जो कहीं नहीं हैं

समूची दुनिया से प्यार
न कर पाने की यातना
जब होती तीव्र
उगता है ईश्वर
उगती दया
उन सबके लिए
जिन्हें यह यातना अँधेरे की ओर ले जा रही है

हमारे साथ रोता है ईश्वर
खुद को मुआफ करता हुआ।

(पश्यंती-२००१)

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1 Comments:

Blogger प्रदीप कांत said...

समूची दुनिया से प्यार
न कर पाने की यातना
जब होती तीव्र
उगता है ईश्वर
उगती दया
उन सबके लिए
जिन्हें यह यातना अँधेरे की ओर ले जा रही है

PANKTIYAN GAHARE TAK UTARATI HAIN

10:19 PM, August 29, 2010  

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