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Location: हैदराबाद, तेलंगाना, India

बेहतर इंसान बनने के लिए संघर्षरत; बराबरी के आधार पर समाज निर्माण में हर किसी के साथ। समकालीन साहित्य और विज्ञान में थोड़ा बहुत हस्तक्षेप

Monday, August 09, 2010

दुविधा

विभूति नारायण राय को लेकर जो विवाद खड़ा हुआ है, उसमें उनके नया ज्ञानोदय वाले वक्तव्य के खिलाफ विरोध दर्ज करने वालों की सूची में मेरा भी नाम है। पिछले साल वर्धा में हिंदी समय समारोह में उनसे पहली बार मिला था। पहले फ़ोन पर इसी सिलसिले में बात हुई थी। साढ़े दस घंटे की ड्राइव कर वर्धा पहुँच कर ढंग की ठहरने की जगह नहीं मिली तो पहले अच्छा नहीं लगा था पर दूसरे दिन उनसे मिल कर तसल्ली हुई थी कि अच्छे व्यक्ति हैं। उनका उपन्यास कर्फ्यू पढ़ा नहीं है पर उसके बारे में पर्याप्त जानकारी थी। दो दिनों के बाद बीमार पड़ गया तो सारे दिन उनके कुलपति वाले घर के एक कमरे में पड़ा रहा। उनके भाई विकास जिनको मैं कई सालों से जानता हूँ ने मुझे दवा दी। बाद में एक बार वे हैदराबाद आए तो कुछ घंटे साथ बिताने का मौका मिला।

हमारे संस्थान की ओर से विभूति नारायण राय को विशिष्ठ व्याख्यान देने के लिए आमंत्रित किया गया है। यह आमंत्रण पहले अप्रैल में भेजा गया था। उस वक़्त नहीं आ पाए तो सितम्बर में आने के लिए मैंने निर्देशक की ओर से आग्रह करते हुए उन्हें ख़त लिखा था।

स्वाभाविक है कि ऐसी स्थिति में जब मुझसे कहा गया कि मैं भी विरोध दर्ज करुं तो मुझे दुविधा हुई। अगर मैं विरोध नहीं करता हूँ तो मैं जिन विचारों ओर मूल्यों के लिए जाना जाता हूँ, उनके प्रति मेरी प्रतिबद्धता पर सवाल उठता है। आखिर मैंने अपने विचारों को प्राथमिकता देते हुए विभूति के बयान की निंदा करना ज़रूरी समझा। अगर विभूति अगले महीने हमारे संस्थान में भाषण देने आते हैं तो उनके स्वागत में कोई कमी नहीं होगी। पहले से तय इस कार्यक्रम में हमारी अपेक्षा अब भी यही रहेगी कि वे हमें साम्प्रदायिकता और राज्य की भूमिका पर बतलाएं। पर नया ज्ञानोदय वाले बयान पर मेरा विचार यही रहेगा कि उन्होंने गलती की है।

इस प्रसंग में जो बात मुझे कहनी ज़रूरी लगती है वह है हिंदी लेखन में गाली गलौज की अवांछित अधिकता का होना। बेवजह किसी एक बात को ठीक ठहराने के लिए दूसरे चार और लोगों को बुरा कहने की एक अजीब ज़रुरत हिंदी के टिप्पणीकारों में दिखती है। इधर युवाओं में यह प्रवृत्ति और भी ज्यादा दिखने लगी है। इस तरह की बीमार परम्परा के खिलाफ एक आन्दोलन होना चाहिए।

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3 Comments:

Blogger Anup sethi said...

आपकी दुव‍िधा समझ में आ रही है. आपकी बातों से सहमत हूं. मेरा भी नाम उस सूची में है. लेकिन न‍िर्णायक फैसले कर डालने की जल्‍दबाजी पशोपेश में डालती है. लगता है असहमति की गुंजाइश ही बची नहीं रह गई है. विरोध तमतमाहट से शुरू होता है, उग्रता में बदलता है और फिर गालीगलोज में तबाह हो जाता है. बहस और विमर्श के परिंदों को तो पर भी मारने की मोहलत नहीं मिलती.

10:00 AM, August 10, 2010  
Blogger राजेश उत्‍साही said...

ऐसी एक सूची में मेरा नाम भी है। मैंने वहां तो कुछ नहीं कहा,पर बहुत सारे ब्‍लागों पर कह आया हूं और यहां आपके बहाने भी कह रहा हूं कि बात सही है जो विभूति जी ने कहा वह भाषा उचित नहीं थी। उससे भी ज्‍यादा अनुचित था कि वह एक पत्रिका में प्रकाशित कर दिया गया। उन्‍होंने गलती की है। पर इस विमर्श में असली बात कहीं नेपथ्‍य में चली जा रही है,उसे हमें भूलना नहीं चाहिए।

10:13 AM, August 11, 2010  
Blogger शरद कोकास said...

आपकी दुविधा समझ सकते हैं ।

10:40 PM, September 04, 2010  

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