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Showing posts from 2016

15. मैं कानून हूँ

जहाँ जाता हूँ   साथ होती एक स्याह चादर   धरती की परिक्रमा कर रहा हूँ   समूची धरती पर फैल रहा स्याह रंग   कोई कानून मुझे नहीं रोक सकता   दीगर मुल्कों में सहचर   मुझसे सीख रहे हैं गुर   स्याह चादरें दिखने लगी हैं धरती के हर कोने में   भूख धधक रही धरती पर हर ओर   कोई घास फूस खाता है   कोई प्यासा मर जाता है   हम स्याह साथ लिए चलते हैं   हमें अँधेरे की भूख है   हम अँधेरे में जीते हैं   अँधेरा खाते-पीते हैं   हमारा मकसद अँधेरे से धरती को ढँक लेना है   कई डॉक्टर, वैज्ञानिक, चिंतक, परेशान हुए   पर वे अकेले पड़ते जा रहे हैं   धीरे-धीरे हर कोई हमारे घेरे में आ रहा है   कानून की पकड़ क्या होती है   मैं ही कानून हूँ।   Wherever I go   A gloomy canopy accompanies me   I am out on globetrotting   A colour of gloom spreads across the skies   I am not restrainable by law   Fellow-travellers in several other countries   Are learning skills from ...

14. चुपचाप अट्टहास: हवा ने कहीं जाल बिछाया हो

मैं पहाड़ों पर चला तो चट्टानें फट गईं नदियों का सीना चीर डाला मैंने समूची धरती पर वनस्पति काँपती तेजाब बरसता है जहाँ मैं होता हूँ हर मिथक में एक राजकुमार होता है वह दरख्तों को उखड़ने से रोकता है उसकी चाल को हवा सुर में बाँध देती है जब वह दबोच लेता है मेरे प्राण - पखेरू मेरे पैरों तले कहीं कुछ ठोस नहीं होता अब अनगिनत राजकुमार हैं डरता हूँ ध्यान से सुनता रहता हूँ हवा ने कहीं जाल बिछाया हो मुझे किसी भँवर में डालने को। I walk on the hills and they split apart I cleave the rivers Plants shiver on the Earth Acid rains where I am A prince comes in the tale He saves the trees from being killed The wind gives chime to his gait When he catches hold of my soul I am left with no firm ground below my feet There are princes too many I fear I listen with care What if the wind laid a snare to trap me...

13. नासूर

चौंका जब पढ़ा   कि मेरे नाम पर वैज्ञानिकों ने किसी नासूर का नाम रखा है    खुद को बार बार देखा    कपड़े उतारे, बढ़ी तोंद और सख्त पाछों को घूम-घूम कर देखा   क्या सचमुच नासूर हूँ   धीरे-धीरे  समझ आया कि   सचमुच नासूर हूँ   भृकुटी सपाट हुई   मुस्कान हँसी और फिर अट्टहास में बदली   नासूर   कैसा चाकू लगेगा काट उखाड़ने में   एकबारगी अपने अट्टहास से मैं डरा।   It came as a shock   That scientists have named a kind of cancer after me   I looked at myself many times   Took off the clothes, turned my neck and saw my pot-belly and hard buttocks   Am I really malignant   Gradually it dawned on me   That I am indeed a cancer   My brows flattened   Smile changed to laughter and then into roaring laughter   Malignant tumour   ‘Wonder what scalpel they would need to remove me   For once my horse-laugh scared me.

12. अनुचर हूँ मैं उस का

कुछ नाम मुझे याद आते हैं   आखिर मैं वहीं पैदा हुआ   गलियों मैदानों में खेला   दूकान में काम किया   नाम याद आते हैं अचानक   कभी गहरी नींद से झकझोरते से   सच कि कभी-कभी पसीना आता है उन के याद आने पर   जिन्हें आग, रासायनिक या ऐसे तरीकों से   धरती से किसी और लोक में भेजा गया   कभी-कभी बू साथ आती है   जैसे कोई नाम नहीं, एक जलता हुआ शरीर है   और हाँ, कभी कोई स्त्री या बच्चा भी होता है   एक नाम अक्सर नींद से जगाते मुझे   कह जाता है मैं इतिहास हूँ   आखिर वह क्या कहना चाहता है   नाम इतिहास कैसे हो सकता है   शायद इसी दिक्कत से   नाम बदलता रहता है   हालाँकि उसका कहा कि मैं इतिहास हूँ   नहीं बदलता है   विदेशी नाम कम डराएँगे ऐसा मैं सोचता था   आखिर 'उएबर आलेस' का नारा हम भी लगाते रहे हैं   पर विदेशी गड्डमड्ड हो जाते हैं देशी नामों के साथ   कभी-कभी तो किसी अनजान भाषा में   बड़बड़ाता नींद से उठ पड़ता हूँ   बेकार मुझे ऐसे नाम याद दिलाते हो   जो रोते च...

11. जैसे कलाएँ खत्म कीं

मैं कलाकार बनना चाहता था राष्ट्र की नामी कलादीर्घाओं में मेरी कृतियाँ लटकी हों लोग देखें और कहें वाह ऐसा मैंने सोचा था जब शहर के टुच्चे कलावंत ने मेरी कला को पिछड़े सोच की कला कहा और किसी ने नहीं कहा कि वह ग़लत था मैंने साधा वर्षों तक उस एक कलाकार को जिसके पास सभी कलाओं के नामोनिशान मिटाने की कला है। मुझे देख लेने मात्र से ज़हन की उन नसों को कुतर डालते हैं कीड़े जिनमें कला के कण कुदरतन मौजूद हैं मैं आकाशगंगा देखता रहता हूँ सोचता कि इस धरती के बाद कितने और ग्रहों कितने नक्षत्रों को जला डालना है मुझे जैसे कलाएँ खत्म की हैं मैंने एक के बाद एक ग्रहों को डाला है विनाश की सूची में एक के बाद एक। I wanted to be an artist My works hanging In the famed National galleries People watching and going gaga That is how I thought. And then the good for nothing resident art critic Said ...

10. जलाने को एक ही धरती क्यों

मेरी योजना इस धरती को एक आग का गोला बनाने की है मरता हुआ ग्रह धधकता हुआ आग आग हर ओर आग हो कि कायनात के कोनों से दिखे मेरी साँसों से निकले तेजाब की बू भस्म करती जाए दरख्त - दर - दरख्त घास - पात पानी के सोते सूख जाएँ जलते हुए काँपें चर - अचर जैसे बर्फानी तूफानों से गुज़र रहे हों और मैं लंबी आरामकुर्सीनुमा उड़नखटोले में सैर करूँ देखता यह कला - उन्माद बीच - बीच में फेंकता खंजर बेंधता किसी हतवाक् मानुष को अमात्य हँसते - हँसते पागल होता जैसे कोई निरंतर हो गुदगुदाता दूर से भी हर कोई देख लेता हमारे दाँत आग की लपटों में सतरंगी चमक से भी आगे न दिखने वाले रंगों में चमक रहे दाँत खालीपन मेरे अंदर कचोटता कि जलाने को एक ही धरती क्यों है पेट में आवाज़ें गुड़गुड़ातीं बाक़ी कायनात को निगलने का वर मुझे क्यों नहीं मिला गुरु - गंभीर खुले दाँत गुज़रता वायुमंडल की ऊपरी सतह पर मैं योग - शिविर करता।    I plan to transf...

चुपचाप अट्टहास - 9

मेरे पहले आ चुके हैं पिता पितृव्य आदि जब मैं युवा था आम नज़रों से छिप कर पीते हुए उम्दा शराब वे रणनीतियाँ बनाते थे कि कैसे बदले निजाम पास बैठे छुटभइए कभी उनकी खिदमत में पेश करते थे मांसाहारी किस्म के चुटकुले वे हँसते या नहीं हँसते थे मैं आज भी ज़िंदा हूँ वे भी हैं कभी सोचते हैं क्या कि उन दिनों मेरी छँटी हुई दाढ़ी पर भी वे बतिया लेते थे यह राजनीति में असफलता की ऊब से अच्छा छुटकारा होता था मैंने कभी उस्तरे से दाढ़ी नहीं बनाई उनका मजाक होता कि मैं डरता हूँ कि कभी गले की नस पर न चल जाए काँपता हुआ उस्तरा मेरे हाथों में मैं आज ज़िंदा हूँ वे भी हैं उम्र के गुरूर या कि थकान में वे सोचते हैं कि मेरी भी तारीख तय हैं यह तो मैं भी जानता हूँ इसीलिए कदम दर कदम चला रहा हूँ लगातार धरती की नसों पर उस्तरा। Before me have come My father, uncle and others When I was young They secretly Drank go...

मैं था एक जलता शहर देखता

काँप उठता हूँ उस पहली वारदात को याद कर सचमुच मैं था खिड़की से एक जलता शहर देखता न जाने कितनी बार मैंने नकारा वह सच कहा गला फाड़ कि नहीं नहीं नहीं नहीं मैंने कोई हत्या नहीं की मेरे दामन में नहीं कोई ख़ून का धब्बा झूठ शक्ल को बदल रहा होगा स्याह पड़ रहा होगा मेरा नक्श बुझ रही होगी प्यार की आखिरी लौ नहीं नहीं नहीं मैंने हत्या नहीं की मेरे दामन में नहीं कोई ख़ून का धब्बा पाक साफ हैं लफ्ज़ जो उस ज़ुबान में हैं जो मेरी ज़बान पर तुम्हारे लिए चलती है मेरे आका के लिए भाषा कुछ और है गुलाम हूँ उसका वह मालिक कायनात के हर अंधकूप का। I shiver thinking of that first incident Indeed it was I watching the city burning down I have denied the Truth many times I have screamed aloud that no No, no, no I never killed any one My skin does not carry any blood stain Untruth must have changed my complexion My features must have turned ...

चुपचाप अट्टहास - 7

मैं अपनी गुफा से निकला मेरे दाँतों से खून टपक रहा मुझे पकड़ने की कोशिश में थक - चूर रहे लोकतंत्र के प्रहरी सूरज , लबालब कालिमा लपेटे तप रहा आधा आस्मान समेटे अमात्य खोद रहा खाइयाँ गिरते चले विरोधी शक्तिपात कर दिया है मैंने उसमें मुझसे ज्यादा ही दिखला रहा वह असर मैंने अनधुले दाँतों पर सफेद रंग चढ़ाया मुझे मिलता रहा खून का स्वाद और लोगों ने देखी मेरी धवल मुस्कान मेरी जादुई छड़ी किसी को नहीं दिखती विजय पताका फहराती किला दर किला काली घनघोर काली हवाएँ ज़हरीली साँस लिए मुड़ रहीं रोशनी काँपती - सी दूर होती जा रही।  I came out from my caves Blood dripping from my teeth And the sentries of democracy Are exhausted in their attempts to catch me The sun, drenched in darkness Stretched out hot in half the sky My minister digging pits And my rivals falling in them I have poured power in him He is even more excited than me...

हरमन-प्यारा 'साहित्यिक नहीं' गायक-गीतकार बॉब डिलन और नोबेल पुरस्कार

('समयांतर' के ताज़ा अंक में प्रकाशित लेख - पत्रिका में 'मार्कूसी' नाम ग़लती से 'मार्क्स' छपा है) बॉब डिलन को नोबेल पुरस्कार देने की घोषणा होते ही न्यूयॉर्क टाइम्स में आना नॉर्थ ने अपने आलेख में लिखा कि बॉब डिलन कोई साहित्यिक नहीं थे। साहित्य में नोबेल पुरस्कार दिया जाना चाहिए और इस साल ऐसा नहीं होगा। प्रसिद्ध पत्रिका न्यूयॉर्कर में रोज़ाना कार्टून में डेविड सिप्रेस ने ग्राफिक टिप्पणी की है - एक छोटे शहर का लड़का हाथ में बेंजो लिए सड़क पर अंगूठा उठाए खड़ा है कि कोई गाड़ी रुक जाए और वह सवारी कर सके। खयालों में वह कई सारे कामों की सूची तैयार कर रहा है - न्यूयॉर्क शहर जाना है , कुछ क्लबों में फोक ( लोक संगीत ) गाना है , कुछ गीत लिखने हैं , नोबेल पुरस्कार लेना है।   जाहिर है कि साहित्यिक दुनिया में बॉब डिलन को नोबेल पुरस्कार दिए जाने की घोषणा से तहलका मचा हुआ है। हमारे अपने अंग्रेज़ीदाँ बंधुओं ने भी लिखा है - ' द हिंदू ' में लेख आ चुका है। पर इस पर चिल्ल - पों मचाने की हिम्मत कम लोगों की है। क्योंकि सही या ग़लत , जैसा भी है , बॉब डिलन को नोबे...