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13. नासूर

चौंका जब पढ़ा
 

कि मेरे नाम पर वैज्ञानिकों ने किसी नासूर का नाम रखा है
 

 खुद को बार बार देखा
 

 कपड़े उतारे, बढ़ी तोंद और सख्त पाछों को घूम-घूम कर देखा
 

क्या सचमुच नासूर हूँ

 

धीरे-धीरे  समझ आया कि
 

सचमुच नासूर हूँ
 

भृकुटी सपाट हुई
 

मुस्कान हँसी और फिर अट्टहास में बदली

 

नासूर
 

कैसा चाकू लगेगा काट उखाड़ने में
 

एकबारगी अपने अट्टहास से मैं डरा।

 

It came as a shock
 

That scientists have named a kind of cancer after me
 

I looked at myself many times
 

Took off the clothes, turned my neck and saw my pot-belly and hard buttocks
 

Am I really malignant

 

Gradually it dawned on me
 

That I am indeed a cancer
 

My brows flattened
 

Smile changed to laughter and then into roaring laughter

 

Malignant tumour
 

‘Wonder what scalpel they would need to remove me
 

For once my horse-laugh scared me.

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