मेरी
योजना इस धरती को एक आग का गोला
बनाने की है
मरता
हुआ ग्रह धधकता
हुआ
आग
आग हर ओर आग हो
कि
कायनात के कोनों से दिखे
मेरी
साँसों से निकले तेजाब की बू
भस्म
करती जाए दरख्त-दर-दरख्त
घास-पात
पानी के सोते सूख जाएँ
जलते
हुए काँपें चर-अचर
जैसे
बर्फानी तूफानों से गुज़र
रहे हों
और
मैं लंबी आरामकुर्सीनुमा
उड़नखटोले में सैर करूँ
देखता
यह कला-उन्माद
बीच-बीच
में फेंकता खंजर
बेंधता
किसी हतवाक् मानुष को
अमात्य
हँसते-हँसते
पागल होता
जैसे
कोई निरंतर हो गुदगुदाता
दूर
से भी हर कोई
देख
लेता हमारे दाँत
आग
की लपटों में
सतरंगी
चमक से भी आगे
न
दिखने वाले रंगों में चमक रहे
दाँत
खालीपन
मेरे अंदर कचोटता
कि
जलाने को एक ही धरती क्यों है
पेट
में आवाज़ें गुड़गुड़ातीं
बाक़ी
कायनात को निगलने का वर मुझे
क्यों नहीं मिला
गुरु-गंभीर
खुले दाँत गुज़रता
वायुमंडल
की ऊपरी सतह पर मैं योग-शिविर
करता।
I
plan to transform this planet into a fireball
A
dying planet glowing
Fire,
fire everywhere
Visible
from the horizons of the universe
I
shall exhale acid vapours
That
will destroy every tree
All
vegetations, all sources of water must dry away
Burning
life and inanimate shivering
As
if engulfed in a snowstorm
And
I will roam the skies in a flying easychair
Watching
this frenzy of artworks
Every
once in a while throwing a dagger
Targeting
a surprised human
My
counselor losing his head laughing crazy
As
if tickled incessantly
Even
from a distance
one
can see our fangs
In
the flames of fire
Fangs
shining in invisible colours
Beyond
the spectrum of visible seven
Emptiness
pinching me from within
Why
is there only one Earth to burn
My
stomach rumbles
Why
am I not empowered to swallow the rest of the universe
With
pensive looks I roam across
The
upper atmosphere in my Yoga postures.
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