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10. जलाने को एक ही धरती क्यों


मेरी योजना इस धरती को एक आग का गोला बनाने की है

मरता हुआ ग्रह धधकता हुआ

आग आग हर ओर आग हो

कि कायनात के कोनों से दिखे


मेरी साँसों से निकले तेजाब की बू

भस्म करती जाए दरख्त-दर-दरख्त

घास-पात पानी के सोते सूख जाएँ

जलते हुए काँपें चर-अचर

जैसे बर्फानी तूफानों से गुज़र रहे हों


और मैं लंबी आरामकुर्सीनुमा उड़नखटोले में सैर करूँ

देखता यह कला-उन्माद

बीच-बीच में फेंकता खंजर

बेंधता किसी हतवाक् मानुष को

अमात्य हँसते-हँसते पागल होता

जैसे कोई निरंतर हो गुदगुदाता


दूर से भी हर कोई

देख लेता हमारे दाँत

आग की लपटों में

सतरंगी चमक से भी आगे

न दिखने वाले रंगों में चमक रहे दाँत


खालीपन मेरे अंदर कचोटता

कि जलाने को एक ही धरती क्यों है

पेट में आवाज़ें गुड़गुड़ातीं

बाक़ी कायनात को निगलने का वर मुझे क्यों नहीं मिला

गुरु-गंभीर खुले दाँत गुज़रता

वायुमंडल की ऊपरी सतह पर मैं योग-शिविर करता। 
 

I plan to transform this planet into a fireball

A dying planet glowing

Fire, fire everywhere

Visible from the horizons of the universe


I shall exhale acid vapours

That will destroy every tree

All vegetations, all sources of water must dry away

Burning life and inanimate shivering

As if engulfed in a snowstorm


And I will roam the skies in a flying easychair

Watching this frenzy of artworks

Every once in a while throwing a dagger

Targeting a surprised human

My counselor losing his head laughing crazy

As if tickled incessantly


Even from a distance

one can see our fangs

In the flames of fire

Fangs shining in invisible colours

Beyond the spectrum of visible seven


Emptiness pinching me from within

Why is there only one Earth to burn

My stomach rumbles

Why am I not empowered to swallow the rest of the universe


With pensive looks I roam across

The upper atmosphere in my Yoga postures.

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