Saturday, August 30, 2008

कामयाब ग़ज़ल

मैं आम तौर पर ग़ज़ल लिखता नहीं। भला हो उम मित्रों का जिन्होंने सही चेतावनी दी है समय समय पर कि यह तुम्हारा काम नहीं। पर कभी कभी सनक सवार हो ही जाती है।
तो गोपाल जोशी के सवाल का जवाब लिखने के बाद से मन में कुछ बातें चल रही थीं, उनपर ग़ज़ल लिख ही डाली। कमाल यह कि यह ग़ज़ल दोस्तों को पसंद भी आई। साथ में जो दूसरी ग़ज़लें लिखीं, उन को पढ़कर लोग मुँह छिपाते हैं, भई अब दाढ़ी सफेद हो गई है, दिखना नहीं चाहिए न कि कोई मुझ पर हँस रहा है।

तो यह है वह कामयाब ग़ज़लः


बात इतनी कि हाइवे के किनारे फुटपाथ चाहिए
कुछ और नहीं तो मुझे सुकूं की रात चाहिए

मामूली इस जद्दोजहद में कल शामिल हुआ
यह कि शहर में शहर से हालात चाहिए

आदमी भी चल सके जहाँ मशीनें हैं दौड़तीं
रुक कर दो घड़ी करने को बात चाहिए

गाड़ीवालों के आगे हैसियत कुछ हो औरों की
ज्यादा नहीं बेधड़क चलने की औकात चाहिए

कहीं मिलें हम तुम और मैं गाऊँ गीत कोई
सड़क किनारे ऐसी इक बात बेबात चाहिए

ज़रुरी नहीं कि हर जगह हो चीनी इंकलाब
छोटी लड़ाइयाँ भी हैं लड़नी यह जज़्बात चाहिए।
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तो यह तो ठहरी ग़ज़ल। अब ताज़ा हालात परः
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जाओ टिंबक्टू में शुरु कर दो एक दंगा।
फिर किसी मुसलमान ने ढूँढ लिया कि कुदरत ने बनाया है बर्फीला शिवलिंग।
करो तीर्थ, जुटाओ तामझाम कि आदमी को फिर आदमी रहने से रोका जा सके।

इतिहास लिखो राजाओं का और आदमी से कहो कि भूल जाए वह खुद को।
फिर किसी काफिर ने दी चुनौती तुम्हारे कारकुनों को।
हो जाए, बहा दो खून। मरें साले, मरने वाले, हमें क्या।
ढम ढम ढढाम ढढाम
ढम ढम ढढाम ढढाम
टिंबक्टू है देश महान
टिंबक्टू है देश महान।

8 comments:

pallavi trivedi said...

गाड़ीवालों के आगे हैसियत कुछ हो औरों की
ज्यादा नहीं बेधड़क चलने की औकात चाहिए
bahut khoob..

Anwar Qureshi said...

अच्छी ग़ज़ल है लिखते रहिये ..

दिनेशराय द्विवेदी said...

लाल्टू जी ग़ज़ल तो बेहतरीन है ही, आप का टिम्बकटूँ उस से भी जानदार है। सीधा प्रहार करता है। बधाई!
मगर यो वर्ड वेरीफिकेशन तो हटा लो जी। दो बार फेल हो ग्यो।

GopalJoshi said...

कामयाब ग़ज़ल ..लाजवाब है .. और यह अगर कभी कभी आने वाली सनक का परिणाम है तो यह सनक अक्सर आनी चाहेये... इस ग़ज़ल ने मुझे अपने एक दोस्त की याद दिला दी जो आप की ही तरह . आसपास की चीजो को एक सोच की साथ अक्ष्सरो में लिख कर हम सब तक लाता था .. अब उसकी शादी हो गयी है ..तो अब लिख नहीं पता .. हाँ भाभी जी को सुनते सुनते अब मेरी गन्दी ग़ज़ल भी सुन पता है .. आप के साथ कभी शेयर करूंगा उसकी कुछ उन्दा रचनाएँ ..
जो दूसरी ग़ज़ल आपने लिखीं, वो आपको औरो से अलग करती हैं.. लिखते रहेयेगा ...

Anonymous said...

ज़रुरी नहीं कि हर जगह हो चीनी इंकलाब
छोटी लड़ाइयाँ भी हैं लड़नी यह जज़्बात चाहिए।
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मानो हर इन्सान यही समझ पाता तो क्या बात होती ।

Ashish said...

मेरा पसंदीदा शेर
मामूली इस जद्दोजहद में कल शामिल हुआ
यह कि शहर में शहर से हालात चाहिए

यह वाकई कमाल है। आइरनी और अंडरस्टेटमेंट का बहुत ही ख़ूबसूरत नमूना।

और दूसरी कविता में ढम ढम ढढाम ढढाम की ध्वनि ... वाह वाह

Anonymous said...

क्या मस्त काम कर रहे हो लाल्टू जी बस मजा आ गया , मत फिकर करना की काफिला बन रहा है की नही ,ये तो वक्त ही बताएगा....
क्यों तलब हो हमें राह में हमराह की
काफिले बनते नही है राह में गुमराह की ......

प्रदीप कांत said...

गाड़ीवालों के आगे हैसियत कुछ हो औरों की
ज्यादा नहीं बेधड़क चलने की औकात चाहिए


अच्छी गजल है.
मै आज तक नहीं समझ पाया कि गजल लिख्नने मे बुराई क्या है?