Sunday, May 27, 2007

दो बढ़िया फिल्में

पिछले दो दिनों में दो बढ़िया फिल्में देखीं| पहली आलेहांद्रो गोन्सालेज इनारीतू की 'आमोरेज पेरोस (प्रेम एक कुतिया है)' और दूसरी जाक्स देरीदा पर किर्बी डिक और एमी त्सियरिंग कोफमान का वृत्तचित्र|

पहली फिल्म मेक्सिको की समकालीन परिस्थितियों पर आधारित तीन अलग-अलग किस्मत के मारे व्यक्तियों की कहानी है| शुरू से आखिर तक फिल्म ने मुझे बाँधे रखा - जो कि इन दिनों मेरे साथ कम ही होता है| प्रेम, हिंसा और वर्ग समीकरणों का अनोखा मिक्स, जो अक्सर मेक्सिको व दक्षिण अमरीका की फिल्मों में होता है, इसमें है| इंसानी जज्बातों और अंतर्द्वंदों को दिखलाने के लिए कुत्तों का बढ़िया इस्तेमाल किया गया है|

देरीदा पर बनी फिल्म भी बहुत अच्छी लगी| खूबसूरती यह है कि देरीदा जो कहता है उसमें अब नया कुछ नहीं लगता - लगता है यह सब तो हम लंबे अरसे से सोच रहे हैं, पर धीरे धीरे बातें जेहन तक जाती हैं और अचानक ही लगता है कि ये बातें ठीक ऐसे कही जानी चाहिए; पर पहले किसी ने इस तरह कहा नहीं| देरीदा की सबसे बडी सफलता भी यही है कि सुनने वाले को उसकी बातें सहज सत्य लगें| डीकंस्ट्रक्सन की धारणा पर देरीदा बार बार कहता है कि यह कोई बाहरी औजार नहीं जिसे किसी संवाद या कथानक पर इस्तेमाल करते हैं, कथ्य में ही विखंडन की प्रक्रिया मौजूद है| इसी को जरा और खींचें तो हम देख सकते हैं कि हमारी सोच में वह सब छिपा है जो यह महान दार्शनिक हमें बतलाता है|

महान लोगों की महानता उनकी साधारणता में है - हम जैसे साधारण होते हुए भी वे ऐसी बातें कह जाते हैं जो हमने कही नहीं है| यह 'कहा जाना' कोई चमत्कार नहीं, हमारे ही जैसे एक साधारण व्यक्ति की वर्षों की मेहनत, अध्ययन और शोध से उपजी बातें हैं| फिल्म में मुझे ऐसी बातें ज्यादा अच्छी लगीं, जिनमें हम देरीदा की साधारणता देख पाते हैं, घरेलू माहौल, उसका यह कहना कि जिस दिन घर से बाहर नहीं निकलना हो, उस दिन पाजामा पहने ही काम निकालता है, आदि|


इस प्रसंग में कह दूँ कि साधारणता को रेखांकित करना महानता के खिलाफ मेरी पुरानी लड़ाई है| बुजुर्गियत के लिए छोड़ कर किसी एक व्यक्ति के लिए 'वे' और इसके समांतर क्रियारुप से मैं परहेज करता हूँ| कईबार अटपटा लगता है, पर कोशिश यही रहती है कि 'देरीदा कहते हैं' की जगह 'देरीदा कहता है'लिखूँ| यह बात कहानियों के चरित्रों की उक्तियों के लिए लागू नहीं होती, पर चर्चा या आलोचना में यह कोशिश रहती है|

4 comments:

azdak said...

बंधु, देरीदा वाली डॉक्‍यूमेंट्री की कोई पब्लिक स्‍क्रीनिंग थी, डीवीडी पर देखी या नेट से डाउनलोड किया था?.. डिटेल बताइयेगा तो खोजने का हम भी ज़रा कष्‍ट करें. धन्‍यवाद.

अनामदास said...

दोस्त
आपको नारद पर कम ही देखा है, पहली बार टिप्पणी कर रहा हूँ. आप मेरी दिलचस्पी के आदमी मालूम होते हैं. कोशिश करता हूँ, मिल गईं तो ये फ़िल्में देखूँगा. धन्यवाद

मसिजीवी said...

'महान लोगों की महानता उनकी साधारणता में है - हम जैसे साधारण होते हुए भी वे ऐसी बातें कह जाते हैं जो हमने कही नहीं है'

अच्‍छा कहा।
अब कुछ नियमित हुए दिख रहे हैं, बने रहें।

लाल्टू said...

प्रिय प्रमोद,
यह साइट देखिए:
http://derridathemovie.com/home.html