बड़ा दिन आ रहा है किसानों का बड़ा दिन धरती और सूरज के अनोखे खेल में उम्मीद कुलांचे भरती है दिन बड़ा हो जाएगा जाड़ा कम नहीं होगा लहर दर लहर ठंड हमारे ऊपर से गुजरेगी और तानाशाह दूरबीन से हमें लाशें उठाते देखेगा वक्त गुजरता है दरख्तों पर पत्तों के बीच में से छन कर आती सुबह की किरण हमें जगाती है एक और दिन हत्यारे से भिड़ने को हम तैयार हैं दोपहर हमारे साए लंबे होते जाते हैं फिलहाल इतना काफी है कि तानाशाह सपनों में काँप उठे कि हम आ रहे हैं उसके ख्वाब आखिर अधूरे रह जाएँगे जिन पंछियों को अब तक वह कत्लगाह तक नहीं ला पाया है हम उनको खुले आकाश में उड़ा देंगे और इस तरह वाकई एक नया साल आएगा रात - रात हम साथ हैं सूरज को भी पता है जाने से पहले थोड़ी सी तपिश वह छोड़ जाता है कि हमारे नौजवान गीत गाते रहें हम हर सुबह उठ समवेत गुंजन करते रहें कि जो बोले सो निहाल कि कुदरत है सत् श्री और अकाल !