हाल में Facebook पर एक फोटो साझा की थी। एक बच्ची किसानों के लंगर में रोटी परोस रही है।
(टोकरी लिए खड़ी बच्ची
पंगत में बैठे लोगों को रोटी परोस रही है)
करीब से देखो तो उसकी आँखों में दिखती है
हर किसी को अपनी तस्वीर
एक निष्ठुर दुनिया में मुस्कराने की कोशिश में
कल्पना-लोक में विचरता है हर कोई
बच्ची और उसका लंगर है
किसान इतना निश्छल हर वक्त हो न हो
अपना दुख बयां करते हुए ज़रूर होता है
खुद को फकीर कहने वाले हत्यारे को यह बात समझ नहीं आती
अचरज होना नहीं चाहिए इसमें कि सब कुछ झूठ जानकर भी
पढ़े-लिखे लोग हत्यारे के साथ हैं
पर होता ही है
और अंजाने में हमारे दाँत होंठों के अंदर मांस काट बैठते हैं
कहते हैं कि कोई हमारे बारे में बुरा सोच रहा हो तो ऐसा होता है
इस बच्ची की मुस्कान को देखते हुए
हम किसी के भी बारे में बुरा सोचने से परहेज करते हैं
मुमकिन है कि हम इसी तरह मुस्करा सकें
जब हमें पता है कि इस मुस्कान को भी हत्यारे के दलाल
विदेशी साजिश कह कर लगातार चीख रहे हैं
यह अनोखा खेल है
इस मुल्क की मुस्कान को उस मुल्क की साजिश
और वहाँ की मुस्कान को यहाँ की साजिश कह कर
तानाशाह किसी भी मुल्क में जन्म लेना अभिशाप बना देते हैं
और फिर ऐसी हँसी हँसते हैं कि उनकी साँसों से महामारी फैलती है
आस्मां में रात में तारे नहीं दिखते और धरती पर पानी में ज़हर घुल जाता है
यह मुस्कान हमें थोड़ा सा और इंसान बना रही है
हमारे मुरझाते चले चेहरों पर रौनक आ रही है
अब क्या दुख और क्या पीर
धरती के हम और धरती हमारी
हममें राम और हमीं में मुहम्मद-ईसा
सीता हम और राधा हम
माई भागो हम नानक-गोविंद भी हम
यह ऐसी मुस्कान है कि सारे प्रवासी पक्षी
इसे देखने यहाँ आ बैठे हैं
ओ तानाशाह,
इस बच्ची को देख कर हमें तुम पर भी प्यार आ जाता है
हम यह सोच कर रोते हैं कि तुम्हारी फितरत में नफ़रत जड़ बना चुकी है
और फिर कहीं मुँह में दाँतों तले मांस आ जाता है
जा, आज इस बच्ची की टोकरी से रोटी खाते हुए
तुझे हम एकबारगी माफ करते हैं।
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