चूँकि मैं किसी ईश्वर में विश्वास नहीं करता, इसलिए कह सकता हूँ - हे ईश्वर! मेरी इच्छा शक्ति को क्या हो गया। छुट्टी की घोषणा कर दी और फिर बेहया से वापस लौट आए। बहरहाल भाई ने गरियाया तो औरों को, पर मुझे इतना हिलाया कि मैं वापस आ गया। चिट्ठा चर्चा में यह तो लिख दिया कि मैंने छुट्टी की घोषणा कर दी (पुरानी कविताओं का तर्क देकर!) पर यह नहीं लिखा कि कुछ बातें और भी कह गया हूँ - साधारण सी ही, जैसे शिक्षा व्यवस्था पर और शिक्षकों के मूल्यांकन पर। पर महज इतना हिलने भर से हम कहाँ इस अवसाद से लबालब आठ ही बजे पाँच डिग्री सेल्सियस पहुँची रात को एक किलोमीटर चल के दफ्तर पहुँचते कि चिट्ठा लिखें। सच यह है कि मुझे हिन्दी चिट्ठाकारों से प्यार हो गया है। भले लोग हैं। भाई मनोज, सच है कि अनुनाद सिंह ने आड़ंबड़ंबड़ंबड़ंबड़ं... जैसा कुछ लिखा था, जो ई-मेल नैशनलिस्टों की मुहावरेबाजी का हल्का सा नमूना था, पर यह भी तो है न कि उसने लिखा तो। अब हम हैं कि रोते रहते हैं यार टाइम नहीं, टाइम नहीं, किसी का पढ़ा तो टिप्पणी नहीं छोड़ी, बदतमीज़ तो हम ही हुए न? वैसे इस आड़ंबड़ंबड़ंबड़ंबड़ं... एपिसोड से एक पुराना चुटकुला याद...