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Showing posts from January, 2014

पतित-बुर्ज़ुआ और वाम

जल्दी में लिखा यह आलेख 23 जनवरी 2014 को जनसत्ता में ' वाम के समक्ष चुनौतियाँ ' शीर्षक से प्रकाशित हुआ है - भारतीय पतित - बुर्ज़ुआ और चुनौतियों के समक्ष वाम - लाल्टू समाजवादियों की शब्दावली में एक फ्रांसीसी शब्द चलता है - अंग्रेज़ी में जिसे पेटी - बुर्ज़ुआ पढ़ते हैं। फ्रांसीसी उच्चारण के बहुत करीब हिंदी में इसे पतित - बुर्ज़ुआ ( सही उच्चारण ' पातीत - बुर्ज़ुआ ' होगा ) पढ़ा जा सकता है। इस शब्द का संबंध हमारे जैसे शहरी मध्य - वर्ग के लोगों और ग्रामीण कुलीनों ( जिनका शहरी मध्य - वर्ग से घनिष्ट नाता होता है ) के लिए है जो इस अहं में तो जीते हैं कि उनकी भी कोई हस्ती है , पर सचमुच वे उच्च - अभिजात वर्गों के वर्चस्व तले जीते हैं और उनकी आकांक्षा भी अभिजात वर्गों में शामिल होने की होती है। पाखंड और झूठी नैतिकता का झंडा हमेशा इनके हाथों में होता है। इनका उदारवादी लोकतंत्र से लेकर साम्यवाद तक , हर तरह की जनपक्षधर प्रवृत्ति से विरोध होता है। ये एक तरह के ' ऐनार्किस्ट ' या ' अराजकतावादी ' हैं , पर ये ' अराजकतावाद ' ...

स्नूपिंग कथा

('समयांतर' पत्रिका के ताज़ा अंक में प्रकाशित - इसे लिखने के बाद से अमेरिका में ओबामा सरकार ने स्नूपिंग पर नियंत्रण के लिए कई महत्त्वपूर्ण निर्णय लिए हैं)   प्रसिद्ध ग्रीक फिल्म निर्देशक कोस्ता गाव्रास की एक चर्चित फिल्म है - स्टेट ऑफ सीज़। इसकी कहानी अमेरिकी खुफिया एजेंसियों द्वारा दक्षिणी अमेरिका के देश उरुग्वे में दमन कारी सरकार का विरोध करती ताकतों को खत्म करने की साजिशों पर आधारित है। ऐसी ही एक फिल्म जर्मन निर्देशक फासबिंडर की ' द थर्ड जेनरेशन ' है , जो एक सुरक्षा से जुड़े कंप्यूटर सिस्टम्स की निर्माता कंपनी द्वारा अपने उत्पाद की बड़ी तादाद में बिक्री सुनिश्चित करने के लिए जबरन आतंक और विस्फोट की घटनाएँ करवाने पर आधारित है। सत्तर के दशक की ये फिल्में महज कपोल कल्पना नहीं थीं। शत्रु देश या सरकार विरोधी ताकतों की गतिविधियों की जानकारी रखने और उन्हें नुकसान पहुँचाने के लिए गुप्तचरों द्वारा षड़यंत्र के उदाहरण इतिहास में बहुत पुराने हैं। हमारे उपमहाद्वीप में तरह - तरह के गुप्तचरों की कथाएँ मिलती हैं , जिनमें विषकन्याओं जैसे अजूबे भी हैं। अधिकतर लोग ऐसी रोम...